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प्रकृति की खातिर हर साल 21 दिन का लॉकडाउन जरूरी: पर्यावरणविद

प्रकृति की खातिर हर साल 21 दिन का लॉकडाउन जरूरी: पर्यावरणविद

इटावा, 24 मई (वार्ता) कोरोना संक्रमण के चलते देशव्यापी लाकडाउन ने सरकार और आम आदमी की मुश्किलों में इजाफा किया है लेकिन आपदा की इस घड़ी ने प्रकृति के सौंदर्य को बरकरार रखने के लिये नियमित अंतराल में मानव दखलदांजी पर रोक लगाने को लेकर एक नयी बहस को जन्म दे दिया है।

लाकडाउन के तीसरे चरण की समाप्ति तक वायु और जल प्रदूषण में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गयी। इस दौरान न सिर्फ नदियां पवित्र और निर्मल हाे गयी बल्कि हवा भी साफ स्वच्छ हो गयी। जल और नभ में आक्सीजन के स्तर में बढोत्तरी दर्ज की गयी वहीं पराबैगनी किरणों को धरती पर आने से रोकने वाली ओजोन पर्त में सुधार देखने को मिला। पिछले कुछ दशकों से अप्रैल के महीनें से ही पड़ने वाली गर्मी इस वर्ष मई के मध्य तक महसूस की गयी।

पर्यावरणविद संजय सक्सेना ने यूनीवार्ता से कहा कि बेशक दुनिया भर में फैले कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन से आम आदमी मुसीबत में हो लेकिन इसके बावजूद प्रकृति के सुधार के लिए हर साल कम से कम 21 लॉकडाउन जरूर बनता है।

इटावा महोत्सव में आयोजित होने वाली पर्यावरण छात्र संसद के संयोजक संजय ने कहा कि कोरोना वायरस के दुनिया संकट में है लेकिन पर्यावरण को लेकर यह लॉकडाउन वरदान बनकर सामने आया। पर्यावरण की स्थिति सुधरी है प्रदूषण दूर हुआ है,हरियाली बढ़ रही है तथा तापमान पर भी अंतर पड़ रहा है। पिछले वर्षों में तापमान में लगातार बढ़ोतरी हो रही थी जिसके चलते लोग परेशान थे। हर बार यह उम्मीद रहती थी कि शायद इस बार पारा कम चढ़े लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा था। हर साल होने वाला पौधारोपण अभियान भी पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने में बहुत ज्यादा कामयाब नहीं हो सका।

पर्यावरणविद ने बताया कि पिछले करीब दो महीने से देश में लॉकडाउन की स्थिति चल रही है वह पर्यावरण के लिए काफी हितकर है। स्थिति यह है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष मई के महीने में तापमान में दो से तीन डिग्री की कमी आई है। इसे देखकर ऐसा महसूस होने लगा है कि अब भारत ही नहीं समूचे विश्व में हर साल कम से कम 21 दिन का लॉकडाउन जरूर होना चाहिए। इसका असर पड़ेगा कि वर्ष भर हम सब मिलकर प्रकृति को वन्यजीवों को पक्षियों को तो नुकसान पहुंचाते हैं उसकी काफी हद तक भरपाई हो जाएगी और वातावरण फिर से शुद्ध हो जाएगा। 

पिछले दिनों से वातावरण में प्रदूषण इतना ज्यादा था कि लोग परेशान होने लगे थे, बीमार होने लगे थे। लॉकडाउन भले ही कोरोना से बचने के लिए लगाया गया हो लेकिन इसके चलते पर्यावरण पर जो सकारात्मक प्रभाव पड़ा है उसकी कुछ दिनों पहले तक कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।

पर्यावरण और वन नदियों पर मंडरा रहे खतरे को लेकर लोग काफी समय से चिंता जता रहे थे। पर्यावरणविद भी चिंतित थे कि इस पर कैसे कंट्रोल किया जाए। इसके साथ ही नदियां मैली होती जा रही थी और भूजल का स्तर भी नीचे गिरता चला जा रहा था जिसके कारण और कठिनाई बढ़ती जा रही थी पानी खत्म होने तक की अटकलें लगाई जाने लगी थी। लेकिन इस लॉकडाउन में भूजल का स्तर नीचे गिरना कम हो गया है।

उन्होने कहा कि गर्मी के मौसम में भी भूजल का स्तर ज्यादा नीचे नहीं गया है बल्कि ऐसी संभावना है कि जून के मध्य में जब बरसात शुरू हो जाएगी तो भूजल का यह स्तर ऊपर आ जाएगा और पानी के लिए ज्यादा खुदाई नहीं करनी पड़ेगी। इसके साथ ही हरियाली भी बढ़ रही है क्योंकि प्रदूषण का खतरा नहीं है और लगाये गये पौधे निश्चिंता के साथ आगे बढ़ रहे हैं।


पर्यावरणविद ने बताया कि पिछले सप्ताह तक मौसम आमतौर पर सुहाना रहा है और अब नौतपा में एसी या कूलर चलाने की नौबत आयी है। लॉकडाउन के चलते ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण थम गया। इससे भी बड़ी बात यह है कि नदियां साफ हो रही है। कारखाने बंद है गंदा पानी नदियों में नहीं जा रहा है इसके चलते नदियां साफ हो रही हैं नदियों का पानी अब आचमन लायक हो गया है जो कि अरबों रुपए खर्च करने के बाद भी नहीं हो पाया था।

उन्होंने बताया कि इस बदले मौसम में वन्यजीव और पशु-पक्षी भी काफी खुश हैं और इस मौसम का आनंद उठा रहे हैं। मई के महीने में तितलियां विलुप्त हो जाया करती थी लेकिन इस वर्ष ऐसे प्रदूषण दूर होने और शुद्ध पर्यावरण का ही प्रभाव माना जाएगा कि इटावा सफारी पार्क में हजारों की संख्या में तितलियां मई के महीने में भी अठखेलियां कर रही हैं। इसके अलावा गौरैया प्रजाति की जो चिड़िया विलुप्त होती जा रही थी और गौरैया के संरक्षण के लिए अभियान चलाए जा रहे थे वह गौरैया भी अब दिखाई देने लगी है और पेड़ों पर घोसले भी बनाने लगी है।

सक्सेना ने बताया कि अलग-अलग जिलों में जो प्रवासी मजदूर आए हैं, उन्हें रोजगार देने के लिए मनरेगा में काम दिया जा रहा है। गर्मी का मौसम है और बरसात से पहले तालाबों को तैयार करना है।इसके चलते इन मजदूरों को काम भी मिल गया है और गांवों में तालाब की दशा भी ठीक होती चली जा रही है। इन तालाबों में जब बरसात का पानी भरेगा तो भूजल का स्तर भी सुधरेगा बल्कि भूजल और ऊपर मिलेगा तथा ज्यादा खुदाई भी नहीं करनी पड़ेगी। इससे दो बातें साफ हो रही हैं एक तो मजदूरों को मजदूरी मिल रही है अपने गांव में काम मिल रहा है और दूसरे तालाब जैसी तथा चकरोड जैसी गांव की व्यवस्थाएं भी प्रस्तुति चली जा रही है। 

लॉकडाउन के साइड इफेक्ट पर्यावरण को लेकर काफी अच्छे रहे हैं और इसके चलते इस प्रयोग को हर वर्ष दोहराए जाने की जरूरत है ताकि प्रकृति का के नुकसान की भरपाई की जा सके।

सं प्रदीप

वार्ता

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