नयी दिल्ली 23 सितम्बर (वार्ता) केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने सोमवार को कहा कि देश में प्रत्येक वर्ष करीब पांच लाख बच्चे ऐसे पैदा होते हैं जो किसी न किसी वंशानुगत तथा जन्मजात बीमारियों से ग्रस्ति होते हैं और बच्चों की इस पीड़ा को करीब से समझने वाले चिकित्सकों को अपने अंदर के वैज्ञानिकों को जगाना होगा तभी इस विषय पर गहन एवं सटीक शोध हो सकेगा और एक दिन पोलियो की तरह वंशानुगत बीमारियों पर भी देश विजय पा सकेगा।
डॉ हर्षवर्धन ने यहां लेडी हार्डिंग कॉलेज के ऑडोटाेरिम में यूनिक मेथड्स ऑफ मैनेजमेंट एंड ट्रीटमेंट ऑफ इन्हेरिटेड डिसऑर्डर्स (उम्मीद) की शुरुआत की और नेशनल इन्हेरिटेड डिसऑर्डर्स एडमिनिस्ट्रेशन (निदान) केन्द्र का उद्घाटन किया।
उन्होंने कहा, “ मैं इस स्टेडियम में आकर भावुक हो जाता हूं। मैं सात अप्रैल 1995 विश्व स्वास्थ्य दिवस के मौके पर इस ऑडोटोरियम में आया था और पोलिया पर चर्चा की थी। पोलिया के खिलाफ वर्ष 1994 में हमनें जो जंग शुरु की थी ,हम चाहते थे कि यह राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचे। हमने इसके लिए बहुत मेहनत की थी और संयोग से विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच ओ) ने 1995 का थीम पोलियो रखा था। पोलियो पर विजय हमारे देश के लिए यह बहुत कठिन माना जा रहा था लेकिन हमारी मेहनत रंग लायी। दिल्ली के सभी मेडिकल काॅलेज ने इस मुहिम को सफल बनाने के लिए खूब काम किया, खासकर लेडी हार्डिंग कॉलेज और उसमें भी छात्रों ने बहुत मेहनत की। इस कॉलेज के नेतृत्व में एक मार्च निकाली गयी थी जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी भी काफी दूर तक पैदल चले थे। उस समय पोलियाे से मुक्ति को कठिन माना जा रहा था और आज हम 2019 में खड़े हैं जब भारत पोलियो से पूरी तरह से मुक्त हो चुका है। डब्ल्यू एच ओ से वर्ष 2014 में हमें ‘पोलियो मुक्त भारत’का सर्टिफिकेट मिल गया।”
उन्होंने कहा ,“ आज जब हम वंशानुगत एवं जन्मजात बीमारियों से ग्रस्ति बच्चों को देखते तो ऐसा लगता है कि हम इनके लिए क्या कर सकते हैं लेकिन जब हम गहरायी से सोचेंगे, संवेदनशील होकर सोचेंगे,एक चिकित्सक,एक वैज्ञानिक के भाव से सोचेंगे, इसके निदान और रोकथाम पर शोध के भाव से देखेंगे , तो इसके लिए भी हम विशेष कर सकते हैं।”
उन्होंने कहा कि देश में प्रति वर्ष चार लाख 95 हजार बच्चें डाउन सेंड्रोम एवं थैलिसीमिया समेत किसी -न- किसी ने किसी वंशानुगत बीमारियों के साथ जन्म लेते हैं। इनका भी अधिकार है कि इन्हें सही प्रकार का इलाज मिले और ऐसे बच्चों की संख्या को कम करने की दिशा गहन शोध की जरुरत है। इस संबंध में माता -पिता को सलाह दी जा सकती है और इसके क्या -क्या पहलू हो सकते हैं ,विचार करना होगा। इस दिशा में शोध का काम सबसे ज्यादा है। बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने इस दिशा में पहल की है और यह काम अपने हाथ में लिया है। यह बहुत सराहनीय कदम है।
डॉ़ हर्षवर्धन ने कहा कि ‘उम्मीद’ से उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है। यह ‘उम्मीद’ जोधपुर के एम्स और दिल्ली के आर्मी अस्पताल समेत पांच राज्यों में निदान केन्द्र के रुप में काम कर रही हैं।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अनूठी पहल करते हुए आजादी के 70 साल के बाद भी सबसे पिछड़े जिलों का पता लगाने के लिए एक विशेष दल बनाया और ऐसे सात जिलों की पहचान हो जाने के बाद उन्हें देश के साथ चलने के लिए तैयार करने के वास्ते एक हजार अधिकारियों को बारी-बारी से उन जिलों की जिम्मेदारी दी। ऐसे जिलों का ‘एसपिरेशनल डिस्ट्रिक्टस’ नाम दिया गया जिनमें राजस्थान के मेवात, कर्नाटक के यादगीर, उत्तराखंड के हरिद्वार, महाराष्ट्र के वाशिम, झारखंड के रांची ,उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती और महाराष्ट्र के ही नंदुरबार शामिल हैं। प्रत्येक वर्ष इन जिले की 10 हजार गर्भवती महिलाओं और पांच हजार नवजात शिशुओं की जांच और उसके बाद उन्हें पूरी चिकित्सकीय मदद मुहैया कराने के लिए चुना गया है।
आशा टंडन
वार्ता