राज्यPosted at: Jun 10 2018 5:36PM बलरामपुर में पर्यावरण संरक्षक गिद्धों के लिये खुला भोजनालय
बलरामपुर 10 जून (वार्ता) उत्तर प्रदेश में देवी पाटन मंडल के श्रावस्ती और बलरामपुर जिलों में 452 वर्ग किलोमीटर में फैले सोहेलवा वन्य जीव संरक्षित क्षेत्र में विलुप्त हो रहे गिद्धों की संख्या में इजाफा करने के लिये वन विभाग ने मृत जीवों का भोजन गिद्धों को परोसने के लिये विशेष भोजनालयों की शुरुआत की है।
वनाधिकारी रुस्तम परवेज ने आज यहां ‘यूनीवार्ता’ को बताया कि पिछले करीब बीस वर्षों से गिद्धों के विलुप्त होने से मृत जानवरों का शीघ्र भक्षण नहीं हो पा रहा है। दूषित वातावरण चिन्ता का विषय बनता जा रहा है। हाल ही में सोहेलवा में दूर से आये गिद्धों के एक झुंड से उम्मीद की किरण जगी है। गिद्धों की संख्या में इजाफा करने के लिये प्रयास किये जा रहे हैं। वन क्षेत्र को दुर्गन्ध, संक्रमण तथा दुष्प्रभावों से बचाने के लिये पूर्वी सोहेलवा वन्यजीव प्रभाग के बरहवा रेंज में गब्बापुर के पास मृत जानवरों के मांस के भक्षण का अस्थायी भोजनालय की शुरुआत की गयी है।
उन्होंने बताया कि जंगली इलाके में मरणोपरांत जीवों के शवों को गिद्धों द्वारा भक्षण कर अतिशीघ्र सफाये के लिये भोजनालय में लाया जाता है। पीड़ित जानवरों में दर्द कम करने के लिये डाइक्लोफिनाक औषधि का इस्तेमाल किया जाता है। गिद्धों द्वारा पीड़ित मरे जानवार का मांस खाने के कुप्रभाव से गिद्धों की मृत्यु तक हो जाती है। इस भोजनालय में गिद्धों को जानवरों के भक्षण से पहले दवा के असर को अन्य औषधियों से समाप्त कर दिया जाता है।
श्री परवेज ने बताया कि जंगल के अन्य इलाकों में भी इस तरह के भोजनालय प्रस्तावित हैं। इसके लिये एक कार्ययोजना बनाकर काम किया जा रहा है। सोहेलवा वन जीव क्षेत्र 452 वर्ग किलोमीटर में फैला है। गिद्धों के भाेजनालय बनने से इस प्रजाति के संरक्षण में मदद मिलेगी।
गौरतलब है कि बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएचएस) के विश्लेषण के अनुसार डिक्लोफेनाक का पशु-चिकित्सा में उपयोग भारत में गिद्धों के लिए मुख्य खतरा है। डिक्लोफेनाक एक गैर–स्टेरॉयडल सूजन–रोधी दवा है।
यह दवा पशुओं पर भी समान रूप से प्रभावी होती है। दवा बीमार पशुओं को दी जाती है। इससे उनके जोड़ों का दर्द कम हो जाता है और उन्हें अधिक समय तक कामकाजी बनाए रखता है। पशुओं में दर्द निवारक के तौर पर डिक्लोफेनाक का बड़े पैमाने पर प्रयोग भारत में गिद्धों की मौत की वजह माना गया है।
भारत में गिद्धों की तेजी से कम होती आबादी एक गंभीर समस्या बन चुकी है। देश में गिद्धों की आबादी 40 हजार से भी कम रह गई है।