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गांधी ने सिखाया था राजेन्द्र बाबू, कृपलानी और अनुग्रह बाबू को भोजन बनाना

गांधी ने सिखाया था राजेन्द्र बाबू, कृपलानी और अनुग्रह बाबू को भोजन बनाना

(चंपारण सत्याग्रह के सौ साल पर विशेष)


नयी दिल्ली 14 अप्रैल (वार्ता) आजादी के आंदोलन को नयी दिशा एवं गति देने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ऐतिहासिक चंपारण सत्याग्रह की एक विशेषता यह भी है कि राष्ट्रपिता ने राजेंद्र बाबू,आचार्य कृपलानी और अनुग्रह बाबू को इस दौरान भोजन बनाना भी सिखा दिया था। गांधी जी ने उस इलाके में दस महीने रहकर ऐतिहासिक चंपारण आन्दोलन की शुरुआत की जो देश की आज़ादी का पहला सत्याग्रह साबित हुआ। इस दौरान गांधी जी ने राजेंद्र बाबू, आचार्य कृपलानी और अनुग्रह बाबू जैसे नेताओं को अपना काम नौकरों से करवाने की आदत छुड़वा दी और उन्हें खाना बनाना, अपने कपड़े खुद धोना एवं घर के अन्य काम खुद करना सीखा दिया। चंपारण आन्दोलन के दौरान गांधी जी ने चार स्कूल खोले और एक गोशाला भी खोली। यह कहना है चंपारण आन्दोलन की अध्येता, लेखिका एवं समाजसेविका डॉ सुजाता चौधरी का,जिन्होंने चंपारण के आन्दोलन का न केवल इतिहास लिखा है बल्कि गांधी जी से जुड़ी सात किताबें भी लिखीं है और हाल ही में राजकुमार शुक्ल पर उनका एक उपन्यास ‘सौ साल’ भी आया है। रासबिहारी मिशन ट्रस्ट की संचालिका डॉ चौधरी ने आज यूनीवार्ता को बताया कि जब गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से लौटकर स्वदेश आये तो राजकुमार शुक्ल की लखनऊ कांग्रेस में गांधी जी से मुलाकात हुई थी। वहां गांधी जी से ब्रज किशोरे बाबू भी मिले जो बाद में राजेंद्र बाबू के समधि और जय प्रकाश नारायण के ससुर बने । राजकुमार शुक्ल ने ही गांधी जी को चंपारण में निलहें किसानों पर अंग्रेजो के अत्याचार की दर्दनाक कथा सुनायी थी तभी गांधी जी ने राजकुमार शुक्ल को चंपारण आने का वादा किया था। इसलिए उन्होंने शुक्ल जी को टेलीग्राम किया कि आप कोलकत्ता आ जाएँ वहां से हम आपके साथ चंपारण चलेंगे। कोलकाता में गांधी जी राजेंद्र बाबू से मिले लेकिन राजेंद्र बाबू को पुरी जाना था इसलिए वे पटना नहीं आये। गांधी जी के बेटे हरिलाल गांधी ने दो टिकट पटना के लिए करायी थी। गांधी जी का टिकट नंबर का पता नहीं लेकिन शुक्ल जी ने अपनी डायरी में अपना टिकट नंबर 3950 लिखा। दोनों नौ अप्रैल को कोलकत्ता से चले ट्रेन तीन बजकर 26 मिनट पर रवाना हुई। गांधी जी जब 10 अप्रैल 1917 को पटना स्टेशन पर बिहार के किसान राजकुमार शुक्ल जी के साथ आये थे तो वहां कोई व्यक्ति उनके स्वागत में नहीं आया था। किसी को उनके आने की जानकारी भी नहीं थी। उन्होंने बताया कि शुक्ल जी गांधी जी को ठहराने के लिए उन्हें लेकर राजेंद्र बाबू की अनुपस्थिति में उनके घर ले आये जो उन दिनों किराये के एक मकान में रहते थे, लेकिन राजेंद्र बाबू के नौकर ने उन्हें कमरे में ठहरने और गुसलखाने का इस्तेमाल करने से मना कर दिया क्योंकि गांधी जी जाति के बनिया थे। तब शुक्ल जी मौलाना मज्ररुल हक के पास गए और उन्हें यह बात बताई तब मौलाना साहब खुद अपनी मोटर गाडी से गांधी जी को लेकर अपने घर आये। गांधी जी ने लिखा है कि इस तरह का अपमान उनके जीवन की पहली घटना नहीं थी। बाद में राजेंद्र बाबू को इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने गांधी जी से इसके लिए माफी माँगी। उन्होंने बताया कि मौलाना साहब ने 10 अप्रैल को गांधी जी को पटना में घुमाया और गंगा नदी भी ले गए ।उसी दिन गांधी जी स्टीमर से हाजीपुर गए और फिर वहां से मुजफ्फरपुर पहुंचे । तब आचार्य कृपलानी लंगट सिंह कालेज में शिक्षक थे वे छात्रों के साथ उनका स्वागत करने स्टेशन पर पहुंचे । कृपलानी जी नारियल फोड़कर उनका स्वागत करने के लिए खुद नारियल के पेड़ पर चढ़कर नारियल तोड़ लाये और छात्र स्टेशन से हॉस्टल ले जाने के लिए बैल से चलने वाली फिटन ले आये और बैलों को हटाकर खुद फिटन खींचने लगे तब गांधी जी ने उन्हें इस तरह भावुक होकर काम करने से मना कर दिया।


डॉ चौधरी ने बताया कि गांधी जी 11,12,13 अप्रैल को मुज़फ्फरपुर रहकर कमिश्नर और प्लांट एसोसिएशन के लोगों से मिलकर नील की खेती के बारे में जानकारी लेते रहे और फिर 14 अप्रैल को वहां के गरीब लोगों से मिलते जुलते रहे। वह 15 अप्रैल को तीन बजे मोतिहारी पहुंचे जहां से वह वकील गोरख प्रसाद के घर गए। गांधी जी को 16 अप्रैल को लोमराज़ सिंह के गाँव जसौली पट्टी हाथी पर जा रहे थे तो लेकिन बीच रस्ते में दारोगा ने कमिश्नर का नोटिस गांधी जी को दिया। गांधी बीच रस्ते से मोतिहारी लौट गये। लोमराज़ सिंह पर बहुत अत्याचार हुए थे और उन्होंने आत्महत्या की धमकी भी दी थी। गांधी जे ने मोतिहारी पहुँच कर निलहें किसानों से मिलकर उनका बयान लेना शुरू कर दिया और उनके नाम गिरफ्तारी वारंट जारी हो गया जिसके बाद 18 अप्रैल को उन्हें अदालत में पेश किया गया। अदालत में राजेंद्र बाबू और दीनबंधु एंडरूएज़ भी थे। गांधी जी ने अदालत में कहा कि वह सत्य का पता लगाने आये हैं और अगर सच का पता लगाना अपराध है तो मैं अपराधी हूँ, जज गांधी जी के साहस और बेबाकी को देखकर पानी पानी हो गया और उसे पसीना भी आने लगा, बाद में 20 अप्रैल को मुकदमा ख़ारिज हो गया। गांधी जी ने 20 अप्रैल को सत्याग्रह की पहली विजय मनायी। 18 जून को पत्नी कस्तूबा गांधी अौर पुत्र देवदास गांधी भी चंपारण आये थे। इस दौरान गांधी जी जी ने राजेंद्र बाबू कृपलानी आदि के नौकरों को भगा दिया और सबको अपना काम खुद करने को कहा । कृपलानी रोटी बनाने लगे और राजेंद्र बाबू अनुग्रह बाबू खुद खाना बनाने लगे । इस तरह दस महीने उस इलाके में रहकर गांधी जी ने यह लडाई लड़ी। इस दौरान वह बीच बीच में रांची और पटना जाते रहे और एक बार अहमदाबाद भी गए। गांधी जी ने सात अक्तूबर को बेतिया में गोशाला भी खोली और 14 नवंबर को बडहरवा में स्कूल की नींव भी रखी। अंत में वह 24 जून 1918 को सत्याग्रह समाप्त कर बिहार से चले गए इस दस माह के आन्दोलन से पूरे देश में उनकी ख्याति फ़ैल गयी और वे आज़ादी की लड़ाई के नायक बन गए । इस तरह चंपारण की ऐतिहासिक लडाई लड़ी गयी । जिसे सौ साल बाद पूरा देश याद कर रहा है।

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