नयी दिल्ली, 19 जनवरी (वार्ता) अमेरिका एवं अन्य देशाें में कैंसर पर लगातार हो रहे शोध और नयी दवाओं की खोज के बावजूद न तो मरीजों की संख्या कम हो रही है और न ही मौतों का सिलसिला थम रहा है । इसके उलट सुरसा के मुंह की तरह इस ‘महाकाल’ का आकार बढ़ता जा रहा है लेकिन मेडिकल साइंस की इन असफलताओं के बीच नोेबल पुरस्कार के लिए सात बार चयनित होने वाली डॉ़ जॉहाना बडविग की वैकल्पिक उपचार विधि से उम्मीदों के दीप जल रहे हैं और कई जिन्दगियां चहचहा रहीं हैं । जर्मनी की ‘पीपुल्स अगेंस्ट कैंसर’ सोसायटी के संस्थापक एवं कैंसर के परम्परागत एवं वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के क्षेेत्र में जाने-माने शोधकर्ता लोथर हरनाइसे ने यूनीवार्ता से आज विशेष बातचीत में ‘बडविग थेरेपी’के माध्यम से विश्वभर में कैंसर पर विजय के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्हाेंने कहा कि बर्लिन के महान जीव रसायन शास्त्री डॉ. ओटो वारबर्ग ने कैंसर पर उस समय विजय का अर्द्ध शंखनाद किया था जब उन्होंने इसके कारण की पहचान कर ली थी। उन्हें इस खोज के लिए वर्ष 1931 नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। डाॅ़ वारबर्ग ने कई शोधों के माध्यम से यह साबित किया कि यदि कोशिकाओं में ऑक्सीजन की मात्रा को 48 घंटे के लिए 35 प्रतिशत कम कर दिया जाए तो वे कैंसर कोशिकाओं में परिवर्तित हो जाती हैं। सामान्य कोशिकाएं अपनी जरुरतों के लिए ऑक्सीजन की उपस्थिति में ऊर्जा बनाती है, लेकिन ऑक्सीजन के अभाव में कैंसर कोशिकाएं ग्लूकोज को फर्मेंट करके ऊर्जा प्राप्त करती हैं। कैंसर पर कई पुस्तकें लिखने वाले लोथर हरनाइसे ने कहा कि यदि कोशिकाओं को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती रहे तो कैंसर का अस्तित्व संभव नहीं है। उन्होंने कहा, “ हमें मालूम है कि जीवों मेें हो रही अनेक रासायनिक प्रतिक्रियाओं में शामिल कार्बनिक यौगिक एडीनोसीन ट्राइफास्फेट (एटीपी) में एडीनीन , राइबोस और तीन फास्फेट वर्ग होते हैं । इसका कोशिकाओं की विभिन्न क्रियाओं के लिए ऊर्जा बनाने में विशेष महत्व है। हमारे शरीर की ऊर्जा एटीपी है और ऑक्सीजन की उपस्थिति में ग्लूकोज के एक अणु से 38 एटीपी बनते हैं लेकिन फर्मेंटेशन से सिर्फ दो एटीपी प्राप्त होते हैं। डॉ़ वारबर्ग और अन्य शोधकर्ता मान रहे थे कि कोशिका में ऑक्सीजन को आकर्षित करने के लिए दो तत्व जरूरी होते हैं, पहला सल्फरयुक्त प्रोटीन जो कि पनीर में पाया जाता है और दूसरे कुछ फैटी एसिड्स की पहचान नहीं हो पा रही थी। डॉ़ वारबर्ग भी अपने जीवनकाल में इन रहस्यमय फैट्स को पहचानने में सफल नहीं रहे। ”
डॉ हरनाइसे ने कहा,“ विश्व विख्यात जर्मन बायोकेमिस्ट और चिकित्सक डॉ़ जॉहाना बडविग ने डॉ़ वारबर्ग के शोध को अंजाम तक पहुंचाने का वीणा उठाया । उन्होंने फिजिक्स, बायोकेमिस्ट्री तथा फार्मेसी में मास्टर और नेचुरापेथी में पी.एच.डी. की डिग्री हासिल की । जर्मन सरकार के फेडरल इंंस्टीट्यूट ऑफ फैट्स रिसर्च में ‘सीनियर एक्सपर्ट ’थीं। उन्होंने फैट्स और कैंसर उपचार के लिए बहुत शोध किए। डॉ. बडविग ने 1949 में पेपर क्रोमेटोग्राफी तकनीक विकसित की जिससे कोशिकाओं में ऊर्जा उत्पादन की गुत्थी सुलझ गयी यानी उन्होंने ‘ रहस्यमय फैट्स’ की पहचान करने में कामयाबी हासिल कर ली जिसकी दुनिया भर के वैज्ञानिक खोज कर रहे थे । ” देशभर में घूम-घूम कर बडविग थेरेपी की अलख जगाने के महती काम में लगे लोथर हरनाइसे ने कहा कि डाॅ़ बडविग ने ओमेगा-3 फैट के मुखिया ‘अल्फा लिनोलेनिक एसिड’और ओमेगा-6 फैट के मुखिया ‘लिनोलिक एसिड’ फैट्स की पहचान की। ये अलसी(फ्लेक्स सीड्स) के कोल्ड-प्रेस्ड तेल में भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। ये हमारे शरीर में नहीं बन सकते इसलिए इन्हें ‘असेंशियल फैट्स’ का दर्जा दिया गया है। ये इलेक्ट्रोन युक्त अनसेचुरेटेड फैट्स हैं। इनमें सक्रिय, ऊर्जावान और नेगेटिवली चार्ज्ड इलेक्ट्रोन्स की अपार संपदा होती है। इलेक्ट्रोन्स वजन में हल्के होते हैं और इसलिए डाॅ़ बडविग ने इन्हें ‘इलेक्ट्रोन क्लाउड’ नाम दिया । उन्होंने अपने पेपर क्रोमेटोग्राफी में इसका गहन अध्ययन करने के बाद घोषणा की कि इलेक्ट्रोन्स ही कोशिकाओं में ऑक्सीजन खींचते हैं। डाॅ़ बडविग ने अपनी पुस्तक में यह भी लिखा है कि फैट्स हमारे शरीर के लिए सबसे जरूरी तथा सजीव तत्व हैं। मानव शरीर में भरपूर इलेक्ट्रोंस होते हैं, उसमें सूर्य के फोटोन्स को आकर्षित और संचय करने की क्षमता सबसे ज्यादा होती है। जब तक हमारे शरीर में भरपूर फैटी एसिड्स तथा ऑक्सीजन रहती है, सारी जीवन क्रियाएं सुचारु रूप से चलती हैं। इसके विपरीत अवसाद एवं शोक में रहने वाले व्यक्तियों में इलेक्ट्रोंस बहुत कम होते हैं। वे ऊर्जाहीन तथा कमजोर होते हैं। उनकी जीवन क्रियाएं शिथिल रहती हैं और वे विभिन्न रोगों से ग्रस्त रहते हैं ।”
उन्होंने कहा कि डाॅ़ बडविग ने यह भी लिखा है कि हमारा सूर्य से प्रेम संयोग मात्र नहीं है। हमारे शरीर की लय सूर्य की लय से इतनी मिलती है कि हम सूर्य की ऊर्जा का सबसे अधिक अवशोषण करते हैं। हाइली सेचुरेटेड फैटी एसिड्स का सेवन करने से यह क्षमता आैर बढ़ जाती है । इनमें भरपूर इलेक्ट्रोंस होते हैं जिनका विद्युत-चुंबकीय प्रभाव सूर्य से निकले फोटोंस को आकर्षित करता है। ‘क्वांटम फिजिक्स’ के महान वैज्ञानिक डेस्यौर ने लिखा है कि यदि मनुष्य के शरीर में सूर्य के फोटोन्स की मात्रा 10 गुना बढ़ा दी जाये तो मनुष्य की उम्र 10,000 वर्ष हो जाएगी । वर्ष 1998 से 2003 तक डॉ़ बडविग के छात्र रहे लोथर हरनाइसे ने कहा, “ पेपर क्रोमेटोग्राफी से यह भी स्पष्ट हो गया कि ट्रांसफैट से भरपूर वनस्पति और गर्म करके बनाए गए रिफाइंड तेलों में ऊर्जावान इलेक्ट्राॅन्स गायब थे और वे श्वसन विष साबित हुए। डाॅ़ बडविग ने इन्हें स्यूडो फैट की संज्ञा दी । इनको इंसान का सबसे बड़ा शत्रु बताया और उन्होंने इन्हें प्रतिबंधित करने की पुरजोर वकालत भी की थी। डॉ़ बडविग को कोशिकाओं में ऑक्सीजन को आकर्षित करने के लिए दोनों जरूरी तत्वों की जानकारी हो गयी थी और उन्होंने अपनी उपचार विधि शुरु कर दी। उन्होंने कैंसर के 640 मरीजों के खून के नमूने लिए और मरीजों को अलसी का तेल तथा पनीर मिला कर देना शुरू कर दिया। तीन महीने बाद फिर उनके खून के नमूने लिए गए। उन्हें अपने‘प्रयोग’ का चौंका देने वाला परिणाम मिला। मरीजों का हीमोग्लोबिन बढ़ गया था। वे ऊर्जावान और स्वस्थ दिख रहे थे और उनकी गांठे छोटी हो गई थी। अलसी के तेल का ‘जादुई’ नतीजा चमत्कृत करने वाला था। डाॅ़ बडविग ने अलसी के तेल और पनीर के मिश्रण और स्वस्थ आहार-विहार को मिला कर कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया। यह “बुडविग प्रोटोकोल”के नाम से विख्यात हुआ। यह उपचार क्वांटम फिजिक्स पर आधारित है। तीस सितम्बर 1908 को जन्मी डाॅ़ बुडविग ने वर्ष 1952 से 2002 तक कैंसर के हजारों रोगियों का सफलतापूर्वक इलाज किया। उन्हें हर तरह के कैंसर में 90 प्रतिशत सफलता मिली। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भी अपने कैंसर के उपचार के लिए बडविग पद्धति का सहारा लिया था। यूनान के ‘फादर ऑफ मेडिसिन’ हिपोक्रेटस ने कहा था कि आधुनिक युग में भोजन ही दवा का काम करेगा और डॉ़ बडविग ने इसे साबित कर दिया। बडविग उपचार से मधुमेह, उच्च रक्तचाप, गठिया, ह्रदयाघात अस्थमा, अवसाद आदि बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं। डॉ़ बडविग ने अपनी इस खोज के बारे में कई देशों में व्याख्यान दिया। उन्होंने ‘फैट सिंड्रोम’, ‘डेथ आॅफ ए ट्यूमर”, ‘फ्लेक्स आयल – ए ट्रू एड अगेन्स्ट अार्थराइटिस’, ‘हार्ट इन्फार्कशन’, ‘कैंसर एंड अदर डिजीज़ेज’,‘आयल प्रोटीन कुक बुक’, आैर ‘कैंसर – द प्रोबलम एण्ड द सोल्यूशन’ पुस्तकें भी लिखीं। नोबल पुरस्कार के लिए उन्हें सात बार नामित किया गया लेकिन अपनी उपचार विधि में कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी को शामिल करने की शर्त को मानने से इन्कार करने के कारण उन्हें इस पुरस्कार से वंचित रखा गया। नोबल पुरस्कार देने ‘वालों’ को डर था बडविग उपचार विधि को मान्यता मिलने से 200 बिलियन डालर का कैंसर व्यवसाय रातों रात धराशाही हो जायेगा। डाॅ़ बडविग ने जर्मन रेडियो पर वर्ष 1965 में एक साक्षात्कार में कहा था, “यह अचरज की बात है कि मेरे उपचार से कैंसर तेज़ी से ठीक होता है। एक महिला को तीन साल से कोलोन में कैंसर था जो लीवर और आमाशय में फैल चुका था। पेट में मायोमा भी हो चुका था। वह स्विटजरलैंड से गोटिंजन सर्जरी क्लीनिक पर आई थी। उसे क्लीनिक के कई डाॅक्टर ने देखा और क्रिसमस के दिन उसकी सर्जरी होने जा रही थी। उन्हें डर था कि उसके कैंसर की गांठ आंत को पूरी तरह ब्लॉक कर देगी लेकिन मेरी सलाह पर डाॅक्टर ने ऑपरेशन नहीं किया। मैंने उसे ऑयल-प्रोटीन डाइट देना शुरू किया। सात हफ्ते में उसकी गांठ पूरी तरह ठीक हो गई और हमने उसे घर भेज दिया। आश्चर्य की बात यह थी कि पासपोर्ट में उसकी फोटो देख कर स्विट्जरलैंड के कस्टम अधिकारी विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि यह पासपोर्ट इसी महिला का है क्योंकि उसकी शक्ल बिलकुल बदल चुकी थी। ”
उन्होंने कहा था, “वर्ष 1978 में उल्म के मशहूर डॉ़ अर्नस्ट को पेट का कैंसर हुआ, जो पूरे पेट में फैल चुका था। उनकी मेजर सर्जरी हुई। दो साल बाद कैंसर ने फिर अपना असर दिखाया और पूरे पेट में फैल गया। उन्होंने कीमो नहीं ली और मुझसे उपचार करवाया। वह स्वस्थ हो गये। मेरे उपचार से कैंसर के वे रोगी भी ठीक हो जाते हैं, जिन्हें रेडियोथैरेपी और कीमोथैरेपी से कोई लाभ नहीं होता है और जिन्हें यह कह कर छुट्टी दे दी जाती है कि अब उनका कोई इलाज संभव नहीं है। इन रोगियों में भी मेरी सफलता 90 प्रतिशत है। ” लोथर हरनाइसे ने कहा कि कैंसर रोधी डॉ. बडविग उपचार पद्धति एक पूरी तरह से अलग जीवन शैली है। संक्षिप्त में कहा जाये तो इसमें अलसी का तेल और खास रूप से तैयार पनीर के साथ-साथ ताजा, इलेक्ट्रॉन्स युक्त और ऑर्गेनिक आहार शामिल हैं जिनमें अधिकांश खाद्य पदार्थ सलाद और जूस के रूप में लिये जाते है ताकि रोगी को भरपूर एंजाइम्स मिले। इस उपचार में सुबह सबसे पहले प्रो-बायोटिक्स से भरपूर सॉवरक्रॉट (खमीर की हुई पत्ता गोभी) का जूस या छाछ लेना होता है। इसमें भरपूर एंजाइम्स और विटामिन सी होते हैं। नाश्ता से आधा घंटा पहले बिना चीनी की गरम हर्बल या ग्रीन टी दी जाती है । इसके अलावा करीब 20 मिनट तक मरीज को धूप का सेवन अनिवार्य रखा गया है। इससे मरीज के शरीर में विद्यमान इलेक्ट्रॉन्स सूर्य के फोटोन्स को आकर्षित करते हैं और ये फोटोन्स शरीर में पहुंच कर सेहत में निखार लाते हैं। इस पद्धति में योग,प्राणायाम एवं ध्यान को विशेष स्थान दिया गया है। ‘कीमोथेरेपी हील्स कैंसर एंड वर्ल्ड इज फ्लैट ’नाम की किताब लिखने वाले लोथर हरनाइसे ने व्यंग्य किया है कि कीमोथेरेपी से कैंसर का इलाज उतना ही सत्य है जितना यह बताना कि धरती चपटी है। डॉ़ बडविग अविवाहित थीं और उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं है। उनकी बडविग उपचार विधि रूपी ‘विरासत’ को जन-जन तक पहुंचाने की मुहिम छेड़ने वाले श्री लोथर हरनाइसे ने कई पुस्तकें लिखीं हैं लेकिन यह पुस्तक कुछ माह के अंदर बेस्टसेलर बन गयी। इसमें उन्होंने 100से अधिक वैकल्पिक कैंसर चिकित्सा प्रणालियों पर वर्षों तक किए गए शोध ,कैंसर से जंग जीतने वाले लोगों तथा मरीजों के साक्षात्कार और अनुभव के बारे में विस्तार से बताया है। उन्होंने कैंसरमुक्त जीवन के लिए ‘तीन ई’ कार्यक्रम को शामिल किया है। पहला उत्तम आहार(इट राइट) दूसरा उत्सर्जन (इलिमिनेट टॉक्सिन) और तीसरा ऊर्जा(एनर्जी)। उन्होंने कहा कि भारत में डॉ़ ओम प्रकाश वर्मा बडविग प्रोटोकॉल से कैंसर रोगियों का सफल इलाज कर रहे हैं। राजस्थान के कोटा में मरीज उनसे संपर्क करके नयी जिंदगी पा रहे हैं । इस इलाज में तीन माह के अंदर अंतर सामने आने लगता है। उन्होंने कहा कि ‘बडविग कैंसर उपचार,अलसी महिमा,दैविक रसायन अलसी एवं कैंसर काॅज एंड क्योर समेत कई पुस्तकें लिखने वाले डॉ़ वर्मा ने यह ठानी है कि जब तक देश के सारे कैंसर अस्पताल बंद नहीं हो जाते बडविग उपचार विधि के बारे में लोगों काे जागरुक करने की उनकी ‘तपस्या’जारी रहेगी। डॉ़ वर्मा ने अलसी और पनीर के मिश्रण का नाम ‘ओमखंड’ रखा है। डॉ़ वर्मा ने कहा “बडविग आहार का सबसे मुख्य व्जंजन सूर्य की अपार ऊर्जा और इलेक्ट्रॉन्स से भरपूर ओमखंड है जो अलसी के कोल्ड-प्रेस्ड तेल और लो-फैट पनीर को ब्लेंड करके बनाया जाता है। बडविग उपचार पद्धति से कैंसरमुक्त भारत बनाने का सपना सच किया जा सकता है।” डॉ़ वर्मा ने यह भी कहा कि लोथर हरनाइसे ने 19 मई 2003 में अपने गुरु डॉ़ जॉहाना बडविग के निधन के बाद उनके अधूरे कामों को पूरा के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया है । आशा.श्रवण वार्ता