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वैभव की दास्तां सुनाता गिद्धौर का राजमहल

वैभव की दास्तां सुनाता गिद्धौर का राजमहल

जमुई/पटना 10 जून (वार्ता) बिहार के जमुई जिले में धर्म-संस्कृति, शिक्षा एवं कृषि के अविस्मरणीय विकास के साथ ही स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों के दांत खट्टे करने की रणनीति का गवाह बना गिद्धौर का राजमहल अपने खंडित स्वरूप के साथ आज भी वैभव की दास्तां सुना रहा है।

       चंदेल वंश के राजाओं के शासनकाल के गवाह इस राजमहल के आगे निर्मित भव्य मिन्टो टावर तथा मुख्य द्वार पर रखे दो तोपों की चमक-दमक आज भी पूरी तरह से सुरक्षित है। राजमहल एवं उसकी भव्यवता को बयान करते इन निर्माण को एतिहासिक धरोहर के रूप में आज भी देखा जा सकता है।

       मध्य प्रदेश महोबा के कालिंजर गढ़ से आये चंदेल राजा वीर विक्रम वर्ष 1266 में गिद्धौर के प्रथम शासक हुए और वर्ष 1938 तक इस राज परिवार शासन कायम रहा। इस वंश के करीब 680 वर्ष के शासन में कुल 22 राजा हुये। इस वंश के शासक महाराजा राव रावणेश्वर सिंह के शासनकाल को चंदेलराज का स्वर्णिम काल माना जाता है। उनके शासन काल मे जनहित के दृष्टिकोण से, भैतिक, शैक्षणिक, आध्यात्मिक क्षेत्रों में एतिहासिक प्रगति हुई। सिंचाई की ठोस व्यवस्था के साथ-साथ शिक्षा क्षेत्र भी जबरदस्त विकास हुआ।

       महाराजा रावणेश्वर सिंह के शाससनकाल में कई अद्भुत मंदिरों का निर्माण हुआ जो आज पूरी दुनिया के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इस दौरान निर्मित धार्मिक स्थलों जैसे बैद्यनाथधाम मंदिर देवघर, त्रिपुर सुन्दरी मंदिर गिद्धौर, बंगलामुखी मंदिर (चट्टानों से आच्छादित) गिद्धेश्वर नाथ मंदिर खैरा, महादेव सिमेरिया का शिव मंदिर (सिकन्दरा),पंच मंदिर गिद्धौर को देखा जा सकता है। ये आज भी धरोहर के रूप मे विद्यमान है।

       चंदेलवंशी शासकों के राजमहल के निकट ही वर्ष 1906-07 में मिन्टो टावर का निर्माण हुआ, जो दस किलोमीटर दूर से देखा जा सकता है। जमुई मुख्यालय अवस्थित कुमार कालिका मेमोरियल कालेज और गिद्धौर अवस्थित चन्द्रचूडमणि उच्च विद्यालय इस बात का प्रमाण है कि यहां के राजा को शिक्षा के विकास के साथ ही उसके प्रसार से काफी लगाव था। गिद्धौर को कुमार कालिका सिंह के भूमि के नाम से भी जाना जाता है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कुमार कालिका सिंह ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई और आजादी की लड़ाई के सर्मथक बने। इसके चलते उन्हे जमुई जेल मे सजा काटनी पड़ी थी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने गिद्धौर कि निकट बनझिलिया आश्रम रहकर अंग्रेजो के खिलाफ मोर्चा खोला था।

         चंदेल वंश के पराभव के समय के अंतिम शासकों में महाराजा चन्द्रमौलेश्वरी (1923-1937) एवं महाराजा चन्द्रचूड़ सिंह (1937-1938) का नाम लिया जाता है। देश को आजादी मिलने के बाद राजतंत्र समाप्त होने से इस वंश के वंशज प्रताप नारायण सिंह तत्कालीन कलकत्ता (कोलकाता) चले गये और लगातार वहीं रहे। इस कारण गिद्धौर राजाओं का यह एेतिहासिक राजमहल, तोप और मिन्टो टावर के रखरखाव की आज पूरी तरह से अनदेखी हो रही है। प्रताप नारायण सिंह के निधन के बाद उनके इकलौते पुत्र कुंवर जी भी स्थाई रूप से कोलकाता में ही निवास करते है। ऐसे में इस एेतिहासिक धरोहर को बचाये रखने की जिम्मेदारी सरकार की बनती है।



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