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गीता प्रेस जल्द प्रकाशित करेगा तेलगू भाषा में ‘महाभारत’

गीता प्रेस जल्द प्रकाशित करेगा तेलगू भाषा में ‘महाभारत’

गोरखपुर, 30 मई (वार्ता) धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन में लगभग एक सदी से लगे उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित गीता प्रेस ने अपने इतिहास में एक नया अध्याय जोडा है। संस्थान ने संसार के सर्वश्रेष्ठ मार्ग दर्शक ग्रन्थों में शुमार .महाभारत. का तेलगू भाषा में अनुवाद कराया है जो तेलगू भाषियों के लिए वरदान साबित होगा।

गीता प्रेस के उत्पाद प्रबंधक डा. लाल मनि तिवारी ने आज ‘यूनीवार्ता’ से बातचीत में कहा कि तेलगू भाषा में अनुवाद करने के लिए लगभग सात साल लगे हैं और इसमें हिन्दी, संस्कृत और तेलगू भाषा के विद्वानों का सहयोग लगातार बना रहा तथा इसे सात खंडों में उपलब्ध कराया जायेगा।

उन्होंने बताया कि प्रत्येक खंड की दो-दो हजार पुस्तकें प्रकाशित होंगी और अभी प्रथम खंड का प्रकाशन शुरू हुआ है जो आगामी 15 दिन में प्रकाशित हो जायेगी तथा आगामी अगस्त माह तक सभी खंडों के प्रकाशन का लक्ष्य रखा गया है।

डा. तिवारी ने कहा कि इस लोक मान्यता व अंधविश्वास जैसी भ्रान्तियों को गीता प्रेस तोडने का प्रयास किया है कि महाभारत ग्रन्थ घरों में नहीं रखना चाहिए और इससे लडायी झगडे व कलह का जन्म होता है जबकि महाभारत ग्रंथ कर्म से बल देता है इसलिए इस कर्म प्रधान ग्रन्थ को लोगों के लिए सुलभ कराना समय की मांग थी।

उन्होंने बताया कि तेलगू भाषा में प्रकाशित होने वाले इस महाभारत ग्रन्थ के प्रत्येक खंड की कीमत चार सौ रूपये

है जबकि सभी सात खंडों की कीमत 2800 रूपये है। पुस्तक की लम्बायी 10.5 इंच व चौडायी 7.5 इंच है। तेलगू महाभारत में संस्कृत के श्लोकों का तेलगू में रूपांतरण किया गया है।

      वर्ष 1955 में गीता प्रेस ने महाभारत का हिन्दी संस्करण छह खंडों में प्रकाशित किया। प्रथम खंड के 17 संस्करण,

द्वितीय खंड के 15, तृतीय खंड के 14, चतुर्थ, पंचम व षष्टम खंड के 15-15 संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इनकी अभी

तक चार लाख 75 हजार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और हिन्दी संस्करण के सभी खंडों की पुन: प्रकाशन की योजना है।

नीति, अनुशासन, धर्म और नैतिकता जैसे लोककल्याणकारी विषयों पर भी लागत से कम मूल्य पर पुस्तकें प्रकाशित कर गीताप्रेस दिनोदिन प्रगति की राह पर निरन्तर अग्रसर है मगर इसके लिए यह संस्था किसी प्रकार के चन्दे या आर्थिक सहायता की याचना नहीं करती है। यह अनोखी पुस्तक जो पूरे विश्व में ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाली आज भी तीन रूपये की मामूली कीमत पर दुनिया में धर्म और अध्यात्म के ज्ञान का प्रचार-प्रसार कर रही है।

शताब्दी के तीसरे दशक में मात्र कुछ की संख्या में पुस्तक के प्रकाशन से आरम्भ होकर पिछले एक सदी से निरन्तर प्रकाशन-कार्य करने वाली संस्था अपने सीमित संसाधनों से हालांकि आरम्भ हुयी थी कोलकाता में, लेकिन आज इन धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन का मुख्य केन्द्र गीता प्रेस गोरखपुर है।

सन 1923 ई0 में गीता प्रेस के संस्थापक श्री जयदयालजी गोयन्दका ने हिन्दी-अनुवाद के साथ इस धार्मिक पुस्तक ‘ गीता ’ का प्रकाशन किया था जो आज 15 भाषाओं में प्रकाशति हो रही है जिसमें प्रमुख रूप से हिन्दी और संस्कृत

हैं। इसके अलावा बंगला, मराठी, गुजराती, मलयालम, पंजाबी, तमिल, कन्नड, असमिया, ओडिया, उर्दू, अंग्रेजी व नेपाली भाषा में है। उर्दू भाषा में केवल गीता का प्रकाशन होता है।


      गीता प्रेस की स्थापना वर्ष 1923 में हुयी और तबसे लेकर अब तक यहां प्रकाशित लगभग 86 करोड पुस्तके बिक चुकी है। देश में ढाई हजार बुकसेलर गीता प्रेस की पुस्तकें बेंचते हैं और हर प्रान्त में गीता प्रेस की पुस्तकें बिकती हैं। इसके अतिरिक्त विदेशों में भी बडे पैमाने पर पुस्तकों की मांग होती है। खास बात यह है कि गीता प्रेस आर्डर पर पुस्तकें नहीं छापता है बल्कि पहले से प्रकाशित कर रखी गयी पुस्तकों से ही मांग पूरी करता है।

डा. लालमणि तिवारी बताते हें कि इन पुस्तकों की ज्यादा बिक्री के पीछे तीन कारण प्रमुख है। एक कारण पुस्तकें सस्ती हैं, दूसरा छपायी में शुद्धता रहती और तीसरे यह प्रमाणिक होती हैं। यहीं कारण है कि आज भी गीता प्रेस की इन पुस्तकों पर लोगों का विश्वास अधिक है।

गीता प्रेस के आध्यात्मिक पत्रिकाओं में प्रमुख सबसे पुरानी .. कल्याण...पत्रिका अपने 94 वर्ष पूरी कर रही है। इस दौरान पत्रिका ने सबसे लम्बी अवधि तक छपने के कीर्तिमान का गौरवमयी सम्मान प्राप्त किया है। इस पत्रिका का प्रकाशन सन 1925 ई0 में मुम्बई में शुरू हुआ और वर्तमान में सबसे अधिक बिकने वाली तथा सबसे पुरानी आघ्यत्मिक-सास्कृतिक पत्रिका बन गयी।

लेटर प्रेस द्वारा छपायी शुरू करके आज अत्याधुनिक आफसेट प्रिटिंग प्रेस पर छपने वाली इस पत्रिका का सम्पादन प्रख्यात समाज सेवी श्री हनुमान प्रसाद पोद्यार ने किया। इस गौरवमयी पत्रिका को प्रकाशित करने का श्रेय भी गीता प्रेस, गोरखपुर को ही है।

 

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