नयी दिल्ली, 20 मई (वार्ता) केंद्र सरकार ने बांस के चारकोल पर से निर्यात हटा लिया है। इससे कच्चे बांस का उपयोग सुधरने और बांस उद्योग को अधिक लाभ होने की उम्मीद है।
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि बांस के चारकोल का निर्यात बांस के कचरे का संपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करेगा और इस तरह बांस के कारोबार को और अधिक लाभदायक बनाएगा। कच्चे माल के रूप में बांस के चारकोल की अमेरिका, जापान, कोरिया, बेल्जियम, जर्मनी, इटली, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में काफी संभावनाएं हैं।
विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) की अधिसूचना में कहा गया है कि बांस के चारकोल के निर्यात को अनुमति उचित दस्तावेज या मूल प्रमाण पत्र के आधार पर दी जाती है, इस दस्तावेज से पता लगना चाहिए की यह चारकोल बनाने के लिए उपयोग में लाया गया बांस वैध स्रोतों से प्राप्त किया गया है।
खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना ने कहा कि इस निर्णय से कच्चे बांस की उच्च लागत में कमी आएगी और ज्यादातर दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित बांस आधारित उद्योग को आर्थिक रूप से लाभ होगा।
उन्होंने कहा, “अंतरराष्ट्रीय बाजार में बांस के चारकोल की भारी मांग है और सरकार द्वारा निर्यात पर से प्रतिबंध हटाने से भारतीय बांस उद्योग इस अवसर का लाभ उठाने और वैश्विक स्तर पर भारी मांग का फायदा उठाने में सक्षम होगा। यह बांस के कचरे का अधिकतम उपयोग भी सुनिश्चित करेगा और इस प्रकार प्रधानमंत्री के कचरे से धन (वेस्ट टू वेल्थ) की परिकल्पना को साकार करने में योगदान देगा।”
मंत्रालय ने कहा कि भारतीय बांस उद्योग वर्तमान में बांस के अपर्याप्त उपयोग के कारण अत्यधिक उच्च लागत की समस्या से जूझ रहा है। देश में बांस का उपयोग ज्यादातर अगरबत्ती के निर्माण में किया जाता है। अगरबत्ती के निर्माण के क्रम में अधिकतम 16 प्रतिशत बांस का उपयोग बांस की छड़ें बनाने के लिए किया जाता है, जबकि शेष 84 प्रतिशत बांस पूरी तरह से बेकार हो जाता है।
गोल बांस की छड़ियों के लिए बांस की लागत 25,000 रुपये से लेकर 40,000 रुपये प्रति टन के दायरे में है, जबकि बांस की औसत लागत 4,000 रुपये से लेकर 5,000 रुपये प्रति टन है।
अभिषेक.श्रवण
वार्ता