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भावपूर्ण गीतों से श्रोताओं को दीवाना बनाया गुलशन बावरा ने

भावपूर्ण गीतों से श्रोताओं को दीवाना बनाया गुलशन बावरा ने

( जन्मदिन 12 अप्रैल के अवसर पर ) मुंबई. 12 अप्रैल (वार्ता)बॉलीवुड में गुलशन बावरा को एक ऐसे गीतकार के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने अपने भावपूर्ण गीतों से लगभग तीन दशकों तक श्रोताओं को अपना दीवाना बनाया। हिन्दी भाषा और साहित्य के करिश्मायी व्यक्तित्व गुलशन कुमार मेहता उर्फ गुलशन बावरा का जन्म 12 अप्रैल 1937 को लाहौर शहर के निकट शेखपुरा में हुआ था। महज छह वर्ष की उम्र से हीं उनका रूझान कविता लिखने की ओर था। उनकी मां विधावती धार्मिक कार्यकलापों के साथ-साथ संगीत में भी काफी रूचि रखती थी। वह अक्सर मां के साथ भजन, कीर्तन जैसे धार्मिक कार्यक्रमों में जाया करते थे । देश के विभाजन के बाद हुये सांप्रदायिक दंगों में उनके माता-पिता की पिता की हत्या उनकी नजरों के सामने ही हो गयी। इसके बाद वह अपनी बड़ी बहन के पास दिल्ली आ गये। उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई दिल्ली विश्वविद्यालय से पूरी की। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान उनकी रूचि कविता लिखने में हो गयी । अपने परिवार की घिसी पिटी परंपरा को निभाते हुये गुलशन मेहता ने वर्ष 1955 में अपने करियर की शुरूआत मुंबई में एक लिपिक की नौकरी से की। उनका मानना था कि सरकारी नौकरी करने से उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा। लिपिक की नौकरी उनके स्वभाव के अनुकूल नहीं थी।


           गुलशन मेहता ने रेलवे में लिपिक की नौकरी छोड़ दी और अपना ध्यान फिल्म इंडस्ट्री की ओर लगाना शुरू कर दिया। फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा और कई छोटे बजट की फिल्में भी की जिनसे उन्हें कुछ खास फायदा नहीं हुआ। इस बीच गुलशन की मुलाकात संगीतकार जोड़ी कल्याण जी-आनंद जी से हुयी जिनके संगीत निर्देशन में लिये गुलशन मेहता ने फिल्म सट्टा -बाजार के लिये “तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे” गीत लिखा लेकिन इस फिल्म के जरिये वह कुछ खास पहचान नही बना पाये। फिल्म “सट्टाबाजार” में उनके गीत को सुनकर फिल्म के वितरक शांतिभाई दबे काफी खुश हुये। उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि इतनी छोटी सी उम्र में कोई व्यक्ति इस गीत को इतनी गहराई के साथ लिख सकता है। शांति भाई ने गुलशन मेहता को “बावरा” कहकर संबोधित किया। इसके बाद से गुलशन मेहता “गुलशन बावरा” के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में प्रसिद्ध हो गये। लगभग आठ वर्ष तक मायानगरी मुंबई में उन्होंने अथक परिश्रम किया। आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और उन्हें कल्याण जी-आनंद जी के संगीत निर्देशन में निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार की फिल्म “उपकार” में गीत लिखने का मौका मिला। मनोज कुमार ने गुलशन बावरा के साथ फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष किया था और दोनों में काफी घनिष्ठता थी। 


            मनोज कुमार ने गुलशन बावरा से गीत की कोई पंक्ति सुनाने के लिए कहा। तब गुलशन बावरा ने “मेरे देश की धरती सोना उगले” गाकर सुनाया। गीत के बोल सुनने के बाद मनोज कुमार बहुत खुश हुये और उन्होंने गुलशन बावरा से फिल्म “उपकार” में गीत लिखने की पेशकश की। फिल्म उपकार में अपने गीत “मेरे देश की धरती सोना उगले” की सफलता के बाद गुलशन बावरा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। गुलशन बावरा को इसके बाद कई अच्छी फिल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गये। वर्ष 1969 में प्रदर्शित फिल्म “विश्वास” में कल्याण जी आनंद जी के हीं संगीत निर्देशन में गुलशन बावरा ने “चांदी की दीवार ना तोड़ी” जैसे भावपूर्ण गीत की रचना कर अपना अलग ही समां बांधा। इसके बाद उन्होंने सफलता की नयी बुलंदियों को छुआ और एक से बढ़कर एक गीत लिखे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी गुलशन बावरा ने कई फिल्मों मे अभिनय भी किया है। इन फिल्मों मे उपकार, विश्वास, पवित्र पापी, बेइमान, जंजीर, अगर तुम ना होते, बीवी हो तो ऐसी, इंद्रजीत आदि प्रमुख है। इसके अलावा गुलशन बावरा ने पुकार, सत्ते पे सत्ता में पार्श्वगायन भी किया। गुलशन बावरा को दो बार फिल्म फेयर के सर्वश्रेष्ठ गीतकार से नवाजा गया। इनमें वर्ष 1967 में प्रदर्शित फिल्म “उपकार” का गीत “मेरे देश की धरती सोना उगले” वर्ष 1973 मे प्रदर्शित फिल्म जंजीर का गीत “यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी” शामिल है। अपने रचित गीतों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाले गुलशन बावरा 07 अगस्त 2009 को इस दुनिया को अलविदा कह गये।


 

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