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हाईकोर्ट ने कार्बेट में बाघों की मौत की जांच सीबीआई को सौंपी

हाईकोर्ट ने कार्बेट में बाघों की मौत की जांच सीबीआई को सौंपी

नैनीताल 04 सितम्बर (वार्ता) उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कार्बेट पार्क में वन्य जीवों खासकर बाघों की सुरक्षा को लेकर मंगलवार को काफी सख्त रुख अख्तियार किया। न्यायालय ने इस मामले में कई अहम निर्देश जारी किये हैं।

न्यायालय ने कार्बेट पार्क के ढिकाला जोन में जिप्सियों पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया है। अदालत ने कार्बेट पार्क में हुई बाघों की मौत की जांच के लिये सीबीआई की वन्य जीव शाखा को संस्तुति कर दी है। अदालत ने कार्बेट पार्क एवं रामनगर वन विभाग के अधिकारियों की संपत्ति की भी जांच करने के निर्देश प्रवर्तन निदेशालय को दिये है। यही नहीं प्रस्तावित अमानगढ़ एवं धुलवा जोन को भी एक माह के अंदर सीटीआर प्रशासन को अपने संरक्षण में लेने के निर्देश दिये हैं।

बाघों की सुरक्षा को लेकर चल रहे मामले की मंगलवार को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा एवं न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की युगल पीठ में सुनवाई हुई। अदालत ने सरकार एवं शासन के अधिकारियों पर तीखे तंज कसे। पीठ ने शासन को निर्देश दिये कि वह कार्बेट पार्क के बफर जोन में रह रहे वन गुजरों की बेदखली में तेजी लाये।

सुनवाई के दौरान शासन की ओर से अदालत को बताया गया कि बाघों की सुरक्षा के लिये अस्थायी रूप से विशेष बाघ संरक्षण बल का गठन किया जा चुका है जिसमें भूतपूर्व सैनिकों की नियुक्ति की गयी है। अदालत ने इस पर संतुष्टि जताते हुए अधिकारियों को निर्देश दिया है कि प्रस्तावित फोर्स में उन्हीं पूर्व सैनिकों को प्राथमिकता दें जिनकी उम्र चालीस साल से कम हो।

इसके अलावा अदालत ने सीटीआर में मृत बाघों की बिसरा रिपोर्ट बुधवार को अदालत में पेश करने को कहा है। अदालत ने अपने महत्वपूर्ण निर्णय में कार्बेट पार्क के ढिकाला जोन में जिप्सियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है। याचिकाकर्ता गौरी मौलखी ने अदालत को बताया गया कि केन्द्र सरकार की अधिसूचना के अनुसार कार्बेट पार्क के महत्वपूर्ण ढिकाला जोन में जिप्सियों से पर्यटकों के भ्रमण पर रोक लगायी गयी है।

अधिसूचना के अनुसार सिर्फ बसों एवं टैंकरों के माध्यम से ही पर्यटकों को पहुंचाया जा सकता है। इसके बाद पीठ ने कार्बेट पार्क के ढिकाला जोन में जिप्सियों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। साथ की सीटीआर प्रशासन को अधिसूचना का पालन करने को कहा हैं।

इसके अलावा हिमालयन युवा ग्रामीण संस्था की ओर से पीठ को बताया गया कि कार्बेट पार्क में दो और जोनों को शामिल किया जाना प्रस्तावित है लेकिन ये दो जोन सीटीआर ने अपने संरक्षण में नहीं लिये हैं। मामले की सुनवाई के बाद अदालत ने प्रस्तावित ठुलवा एवं अमानगढ़ जोन को एक माह के अंदर सीटीआर प्रशासन को अपने संरक्षण में लेने के निर्देश दिये हैं।

पीठ ने 2016 में देश के बाहर पाये गये पांच बाघों की खालों के मामले में भी सख्त रूख अख्तियार किया है। पीठ ने इन बाघों की मौत की जांच सीबीआई की वन्य जीव शाखा को सौंप दिया है। दरअसल आपरेशन ‘आई आफ द टाइगर इंडिया’ के राजीव मेहता की ओर से इस मामले में एक याचिका दायर की गयी है।

याचिकाकर्ता की ओर से इस मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की गयी है। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि शासन इस मामले में दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर रहा है। इन खालों की जांच भारतीय वन्य जीव संस्थान से करायी गयी और संस्थान ने अपनी जांच में बाघ की इन खालों को कार्बेट पार्क के बाघों की बताया है।

पीठ ने कार्बेट की सुरक्षा को लेकर वन विभाग व सीटीआर के अधिकारियों के रवैये पर भी प्रश्नचिह्न लगाये हैं और यहां तैनात अधिकारियों की सम्पत्ति की जांच प्रवर्तन निदेशालय से कराने के निर्देश दिये हैं। यही नहीं पीठ ने निजी होटलों एवं रिसाॅर्टों से वन विभाग के संरक्षण में लिये गये दो बीमार हाथियों की विशेष देखभाल करने को कहा है। अदालत ने कहा कि इन दो हाथियों को अलग से रखा जाए और विशेष चिकित्सा मुहैया करायी जाए।

रवीन्द्र, उप्रेती

वार्ता

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