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स्वराज इंडिया की चुनाव चिह्न देने की याचिका उच्च न्यायालय ने खारिज की

स्वराज इंडिया की चुनाव चिह्न देने की याचिका उच्च न्यायालय ने खारिज की

नयी दिल्ली, 29 मार्च (वार्ता) योगेन्द्र यादव के अगुवाई वाले स्वराज इंडिया को आज उस समय बड़ा झटका लगा जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने राजधानी के तीनों निगमों के होने वाले चुनाव के लिये उसके उम्मीदवारों को एक चुनाव चिह्न देने की याचिका को खारिज कर दिया। पार्टी ने कहा है कि न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ अपील करेगी। नवगठित स्वराज इंडिया ने राज्य चुनाव आयोग के पार्टी को चुनाव चिह्न देने के अनुरोध को खारिज करने के बाद इसे चुनौती देते हुये न्यायालय में याचिका दायर की थी। न्यायाधीश हीमा कोहली ने याचिका पर आज सुनवाई करते हुये इसे खारिज कर दिया। न्यायाधीश ने स्वराज इंडिया की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण और राज्य चुनाव की तरफ से पेश हुये वकील सुमित पुष्करणा की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। आयोग की दलील थी कि गैर मान्यता प्राप्त अपंजीकृत पार्टी को चुनाव चिह्न आवंटित नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने आयोग के आदेश को बरकरार रखते हुये स्वराज इंडिया की याचिका को खारिज कर दिया। आम आदमी पार्टी (आप) से निष्कासित होने के बाद श्री यादव ने स्वराज इंडिया नाम से राजनीति दल गठन किया था। पार्टी ने तीनों निगमों के चुनाव के लिये बड़ी संख्या में उम्मीदवार उतारे हैं। एक चुनाव चिह्न नहीं मिलने से अब स्वराज इंडिया के उम्मीदवारों को निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ना होगा। तीनों निगमों के लिये 23 अप्रैल को मतदान होना है। श्री यादव ने न्यायालय के पार्टी को चुनाव चिह्न नहीं दिये जाने के आदेश पर निराशा जतायी है। पार्टी इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगी। उन्होंने कहा कि पार्टी निगमों के चुनाव के लिये शुरू किया गया “साफ दिल साफ दिल्ली एमसीडी” अभियान जारी रखेगी। स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनुपम ने आरोप लगाया कि राज्य चुनाव आयोग के चुनाव चिह्न से संबंधित नियम बदलने के निवेदन को दिल्ली सरकार ने दो साल से इसलिए रोके रखा कि उनकी पार्टी को नुकसान हो। उन्होंने कहा कि आयोग के पूर्व आयुक्त राकेश मेहता ने दिल्ली सरकार को पत्र लिखकर इस संबंध में निवेदन भी किया था किन्तु आम आदमी पार्टी की सरकार आयुक्त के पत्र पर कार्रवाई करने बजाय इसको दबाये रखा। उन्होंने कहा जिस पार्टी को पंजीकृत दलों के लिये एक चुनाव चिह्न का सबसे पहला लाभ मिला, वहीं पार्टी जब सत्तारूढ हुयी तो इस कदर बेशर्म और अलोकतांत्रिक हो गयी यह इसका ज्वलंत उदाहरण है। मिश्रा, उप्रेती नंद (वार्ता)

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