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लोकरुचि


मयूराक्षी नदी के तट पर आदिवासियों का हिजला मेला शुरू

मयूराक्षी नदी के तट पर आदिवासियों का हिजला मेला शुरू

(सूरज कुमार सिंह से)


दुमका, 16 फरवरी (वार्ता) झारखंड के संतालपरगना क्षेत्र में जनजातीय समुदाय के लोगों के रास-रंग को प्रदर्शित करने वाला हिजला मेला आज से शुरू हो गया।


आठ दिनों तक चलने वाले इस मेले की शुरुआत वर्ष 1890 में दुमका के तत्कालीन अंग्रेज उपायुक्त आर. कास्टेयर्स ने की थी। तब से यह मेला संतालपरगना के सुदूर ग्रामीण इलाकों में रहनेवाले जनजातीय समुदाय के लोगों के रास-रंग को प्रदर्शित करने का माध्यम बन गया है।

दुमका शहर से चार किलोमीटर दूर मयूराक्षी नदी के तट और हिजला पहाड़ी के बीच की मनोरम भूमि पर आदिवासी पारंपरिक वाद्ययंत्र सिंगा और सकवा के वादन, झिंझरी गायन और पायका नृत्य के साथ इस मेले की शुरुआत हुई। परंपरा के अनुसार मेले का उद्घाटन इस बार भी हिजला के ग्राम प्रधान ने किया। मेला इस बार 128 साल का सफर पूरा करने जा रहा है। यह मेला 16 फरवरी से 23 फरवरी तक चलेगा।

       हिजला मेला महोत्सव की सफलता के लिए गुरुवार को हिजला परिसर में स्थित दिसोम मरांग बुरू थान में दिसोम मरांग बुरु संताली अरीचली आर लेगचार आखड़ा के बैनर तले हिजला, धतीकबोना, हड़वाडीह समेत आसपास के गांव के ग्रामीणों ने विशेष पूजा-अर्चना की। दिसोम मारंग बुरु थान के नायकी सीताराम सोरेन ने कहा वर्षों पहले यहां आदिवासी बोंगा, दारी, पूजने वाला पेड़, सारजोम व सखुवा पेड़ के नीचे पूजा और पंचायत के जरिए फैसला करते थे। यहां वही मामले आते थे जिनका फैसला गांवों में नहीं हो पाता था। उन्होंने बताया कि अंग्रेजी हुकूमत ने ग्रामीण आदिवासियों की एकजुटता को खत्म करने के उद्देश्य से ही हिजला मेला परिसर से सारजोम सखुआ के वृक्ष कटवाए थे इसलिए आज भी यहां उस वृक्ष के कटे हुए तना के फॉसिल्स के रूप में तब्दील हो चुके हिस्से की विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है।

ब्रतानी हुकूमत के खिलाफ वर्ष 1855 में संताल विद्रोह हुआ था, जिसका अंग्रेज प्रशासन ने दमन कर दिया था। इससे प्रशासन और आदिवासी समाज के बीच बनी दूरी को कम करने के लिए इस मेले की शुरुआत की गई थी। तब से यह मेला हर साल इसी स्थान पर लगता आ रहा है। इस मेले की खास बात यह है कि आजादी के पहले तक यह मेला संतालपरगना के विकास के लिए नियम और योजना बनाने के महत्वपूर्ण अवसर माना जाता था। साथ ही आदिवासियों के जंगल और जमीन को सुरक्षित रखने वाला संतालपरगना काश्तकारी (एसपीटी) कानून भी इसी मेले में हुये बहस का परिणाम था।

मेला आयोजन समिति ने बताया कि मेले में इस साल भी कृषि, पशुपालन, हस्तशिल्प, ग्रामीण विकास, सूचना, स्वास्थ्य और तकनीक से संबंधित प्रदर्शनी लगायी गयी है। मेला क्षेत्र में झारखंड और दूसरे राज्यों के कलाकार दल सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत करेंगे।

      दुमका के उपायुक्त सह मेला आयोजन समिति के अध्यक्ष मुकेश कुमार ने जिले के वरीय अधिकारियों के साथ हिजला मेला महोत्सव की तैयारियों का जायजा लेने के बाद यहां बताया कि मेले की तैयारी में लगे संबंधित अधिकारियों को मेला क्षेत्र में सुरक्षा के साथ ही पेयजल की व्यापक व्यवस्था करने का निर्देश दिया गया है। उन्होंने कहा कि मेला में आने वाले लोगों को किसी प्रकार के परेशानी का सामना नही करना पड़े इसका ध्यान रखा जाये।

श्री कुमार ने अधिक से अधिक लोगों के मेले में आने और यहां आयोजित होने वाली प्रतियोगिता में भाग लेकर मेले को सफल बनाने की अपील की। उन्होंने कहा कि एक सप्ताह तक चलने वाले इस मेले में यहां की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। यह मेला इस क्षेत्र के लोगों के लिए खास है। सांस्कृतिक कार्यक्रम के माध्यम से यहां की संस्कृति को दिखाया जायेगा।

उपायुक्त ने बताया कि मेले में विभिन्न विभागों की ओर से स्टाॅल लगाये जा रहे हैं। इसके माध्यम से सरकार की योजनाओं की जानकारी आमलोगों तक पहुंचायी जायेगी। बाली फुटवेयर का भी स्टाॅल लगाया जायेगा। इस दौरान फैशन प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जायेगा। उन्होंने संबंधित अधिकारी को मेला के दौरान मेला क्षेत्र में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखने का निर्देश दिया और लोगो से मेला परिसर को स्वच्छ रखने की अपील की।

 

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