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लोकरुचि


मैं मर नहीं रहा बल्कि आजाद भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हूं

मैं मर नहीं रहा बल्कि आजाद भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हूं

 (17 दिसम्बर को लाहिड़ी के शहादत दिवस पर विशेष)


गोंडा 16 दिसम्बर (वार्ता ) काकोरी कांड के जरिये अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिला देने वाले महान क्रांतिकारी राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने फांसी पर तख्त पर मुस्कराते हुये कहा था ‘मै मर नही रहा बल्कि स्वतंत्र भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हूँ। ’


क्रांतिकारी की जुनून भरी हुंकार को सुनकर भयभीत अंग्रेज सरकार ने आजादी के इस मतवाले सिपाही को 17 दिसम्बर 1927 को गोंडा जेल में फांसी दे दी थी हालांकि उन्हे अहसास था कि लाहिड़ी की फाँसी के बाद अब रणबांकुरे उन्हे चैन से जीने नही देंगे।

शहीद लाहिड़ी के बलिदान को अक्षुण्य बनाये रखने और उनकी अन्त्येष्टि स्थल की पहचान के लिये जेल के समीप टेढ़ी नदी के तट पर उनके रिश्तेदार, मनमथनाथ गुप्त ,लाल बिहारी टंडन, ईश्वरशरण और अन्य ने एक बोतल ज़मीन में गाड़ दी थी। इस स्थल का हालांकि अभी तक सही पता नही चल पाया है।

लाहिड़ी को देशप्रेम और निर्भीकता विरासत में मिली थी। मात्र आठ वर्ष की आयु में ही काशी से बंगाल अपने मामा के यहाँ आ गये और वहाँ से वह सचिन्द्रनाथ सान्याल के सम्पर्क में आये। लाहिड़ी के फौलादी इरादे, राष्ट्रभक्ति व दीवानगी को देखते हुये क्रांतिकारियो ने उन्हे अपनी टोली में शामिल कर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिवोल्यूशन आर्मी पार्टी बनारस का प्रभारी बना दिया। वह बलिदानी जत्थों की गुप्त बैठकों में बुलाये जाने लगे ।

        इस बीच क्रान्तिकारियों के चल रहे आंदोलन को गति देने के लिये तात्कालिक धन की व्यवस्था करनी थी। इसके लिये उन्होने शाहजहांपुर बैठक में अँग्रेजी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनाई। इसे अंजाम देने के लिये नौ अगस्त 1925 को शाम छह बजे लखनऊ के काकोरी से छूटी आठ डाउन ट्रेन में जा रहे अँग्रेजी सरकार के खजाने को लूटने के लिये राम प्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्लाह खा और ठाकुर रौशन सिंह समेत 19 क्रांतिकारियों के साथ धावा बोल दिया।

बौखलायी फिरंगी हुकूमत ने सभी क्रान्तिकारियों पर काकोरी षडयंत्र कांड दिखाकर सशस्त्र युद्ध छेड़ने और खजाना लूटने का आरोप लगाते हुये अभियोग लगाया। इस कांड में लखनऊ की स्पेशल कोर्ट ने छह अप्रैल 1927 को जलियांवाला बाग दिवस पर रामप्रसाद बिस्मिल ,अशफाकउल्ला खाँ और रोशन सिंह को एक साथ फांसी की सजा सुनाई लेकिन भारतीयों में आक्रोश के भयवश लाहिड़ी को गोण्डा कारागार भेजकर 17 दिसम्बर 1927 को फांसी दी ।

लाहिड़ी का जन्म 23 जून 1901 को पूर्वी बंगाल के पावना जिले के मोहनापुर गांव में हुआ था। यह स्थान अब बंगलादेश में है। उस वक्त लाहिड़ी के पिता क्षितिज मोहन लाहिड़ी व बड़े भाई बंग भंग आंदोलन में सजा काट रहे थे। उनकी माता का नाम बसंत कुमारी था। रणबांकुरे लाहिड़ी के 91 वें बलिदान दिवस को गोंडा जिला जेल में हवनपूजन ,राजकीय सम्मान के साथ श्रद्धा पूर्वक मनाया जाता है ।

जिलाधिकारी जितेन्द्र बहादुर सिंह ने आज यूनीवार्ता से कहा कि 17 दिसम्बर को 91 वां बलिदान दिवस पर फाँसी स्थल लाहिड़ी उद्यान मे सलामी देने के साथ आर्य समाज की विधि विधान से हवन पूजन किया जायेगा। इसके अतिरिक्त लाहिड़ी की स्मृति मे रैली ,देशभक्ति के कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे।

 

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