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हरियाणा में भाजपा और कांग्रेस को अपनी साख बचाने की चुनौती

हरियाणा में भाजपा और कांग्रेस को अपनी साख बचाने की चुनौती

चंडीगढ़, 11 अप्रैल(वार्ता) हरियाणा में 12 मई को होने वाला लोकसभा इस बार चुनाव केंद्र और राज्य में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विपक्षी कांग्रेस के लिये अपनी साख बचाने की कसौटी के रूप में देखा जा रहा है।

इन दो प्रमुख दलों के अलावा यहां अन्य दलों अन्य दलों इंडियन नेशनल लोकदल(इनेलो) और इसके दोफाड़ होने से अस्तित्व में आई जननायक जनता पार्टी(जजपा), भाजपा के बागी सांसद राज कुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी (लोसुपा), बहुजन समाज पार्टी(बसपा), आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय लोकस्वराज पार्टी, शिव सेना आदि दल भी इस चुनाव में ताल ठोंक रहे हैं और इनके समक्ष भी खाता खोलने की चुनौती होगी।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी लहर के बाद राज्य की राजनीति में भाजपा ने अपनी मजबूत बुनियाद कायम की है जिससे समीकरण भी बदले हैं। ऐसे में अन्य राजनीतिक दलों की मौजूदगी के बीच भाजपा के समक्ष राज्य में जहां अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने वहीं कांग्रेस के लिये भी फिर से राजनीतिक पैठ कायम करने की चुनौती है। हालांकि दोनों की दल एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोपों के सहारे दस की दस सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं। दूसरी ओर अन्य दल भी इसी उम्मीद और दावे के साथ मैदान में हैं कि जनता ने भाजपा और कांग्रेस का राज देखा है और वह इनसे तंग आ चुकी है और ऐसे में वह इन दोनों के अलावा विकल्प की ओर देख रही है।

हरियाणा के राजनीतिक मिजाज पर अगर गौर करें तो इसका रूख देश की सियासी हवा के साथ रहा है। राज्य के मतदाताओं का रूझान अक्सर उन राजनीतिक दल के साथ रहा है जिसकी केंद्र में सरकार बनने की सम्भावना रही है। राज्य में लोकसभा चुनावों का इतिहास भी इसी ओर इंगित करता है। वर्ष 1952(हरियाणा संयुक्त पंजाब का हिस्सा) से लेकर वर्ष 2014 तक के लोकसभा चुनावों के इतिहास पर अगर नजर डालें और केंद्र में जिस भी राजनीतिक दल की सरकार बनी है राज्य के मतदाताओं का समर्थन भी लगभग उसे ही गया है। इनमें से कुछेक चुनावों को छोड़ अधिकतर में कांग्रेस का ही परचम लहराता रहा है।

देश में वर्ष 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में संयुक्त पंजाब का हिस्सा रहे हरियाणा क्षेत्र में कांग्रेस ने सभी पांचों सीटों पर कब्जा किया था। वर्ष 1957 के चुनाव में भी कांग्रेस ने सभी छह सीटों पर कब्जा किया था। गुड़गांंव लोकसभा सीट पर हुये उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी की जीत हुई थी। वर्ष 1962 के चुनाव में संयुक्त पंजाब में हरियाणा में हिस्से की चार सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा किया था। दो सीटें भारतीय जनसंघ(बीजेएस) और एक सोश्लिस्ट पार्टी ने जीती थी। इन तीनों चुनावों में केंद्र में श्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकारें बनीं।

एक नवम्बर 1966 को संयुक्त पंजाब से अलग होकर हरियाणा नये राज्य के रूप में अस्तित्व में आया और इसके उपरांत वर्ष 1967 में हुये लोकसभा चुनाव में यहां नौ सीटों में कांग्रेस ने सात, बीजेएस और निर्दलीय उम्मीदवार ने एक-एक सीट हासिल की। वर्ष 1971 के चुनावों में नौ सीटों में से कांग्रेस ने सात, बीजेएस और विशाल हरियाणा पार्टी ने एक-एक सीट हासिल की। इन दोनों लोकसभा चुनावों के बाद केंद्र में श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्च में कांग्रेस की सरकारें बनीं।

श्रीमती गांधी के प्रधानमंत्री रहते पच्चीस जून 1975 से लेकर 21 मार्च 1977 तक 21 माह तक देश में आपातकाल लागू किये जाने के बाद वर्ष 1977 के लाेकसभा चुनाव में बदली राजनीतिक फिजां में कांग्रेस राज्य की सभी दस सीटों पर चुनाव हार गई। यहां सभी सीटों पर जनता पार्टी-भारतीय लोकदल गठबंधन ने जीत दर्ज की। इस बार केंद्र में श्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व में केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी थी लेकिन इसके बीच में ही गिर जाने से वर्ष 1980 में पुन: लोकसभा चुनाव हुये और इस बार राज्य में कांग्रेस ने पांच, जनता पार्टी(एस)-चार और जनता पार्टी ने एक सीट पर जीत दर्ज की।

 

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