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उत्तर प्रदेश में जल को सहेजने के उपाय नाकाफी

उत्तर प्रदेश में जल को सहेजने के उपाय नाकाफी

लखनऊ, 30 जून (वार्ता) भूजल स्तर में लगातार गिरावट के बीच पीने के पानी की जबरदस्त किल्लत का सामना कर रहे उत्तर प्रदेश में अच्छे मानसून के पूर्वानुमान ने बुंदेलखंड समेत समूचे राज्य में किसानों के चेहरे भले खिला दिये हैं मगर सूबे में वर्षा जल संचयन के तमाम जतन करने के बावजूद इस साल भी अमूल्य प्राकृतिक संपदा का बडा हिस्सा नदी नालों के जरिये समंदर में समा जाने की संभावना है। भूजल विभाग की सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के अधिकांश जिलों विशेषकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। मेरठ में सबसे अधिक 91 सेमी. प्रतिवर्ष जल स्तर में गिरावट दर्ज की जा रही है। इस मामले में गाजियाबाद दूसरे और गौतमबुद्ध नगर तीसरे स्थान पर है। उधर, मौसम विभाग ने प्रदेश में अच्छे मानसून की भविष्यवाणी की है। लखनऊ स्थित मौसम आंचलिक केन्द्र के निदेशक जे पी गुप्ता के अनुसार प्रदेश में इस साल 106 से 110 फीसदी वर्षा का अनुमान है। श्री गुप्ता ने बताया कि जून के दूसरे पखवाडे दक्षिण पश्चिम मानसून लगभग तय समय पर आया है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में अच्छी वर्षा हो रही है और जुलाई के पहले सप्ताह में लगभग समूचे राज्य में जोरदार बारिश के आसार हैं। राज्य की अखिलेश यादव सरकार ने भूजल की गिरावट को गंभीरता से लेते हुये हाल ही में सूखाग्रस्त बुंदेलखंड में तालाबों की खुदाई का वृहद अभियान चलाया जबकि कई अन्य स्वंयसेवी संगठनों ने सरकार के इस कदम की सराहना करते हुये जिला स्तर पर इस अभियान को गति देने का नेक काज किया।


                           राज्य सरकार के इस कवायद के कई इलाकों में इसके सुखद परिणाम भी देखने को मिले। मानसून की पहली बरसात में नये नवेले पोखर और तालाब में वर्षा जल का लबालब भर गये हालांकि वर्षा जल संचयन की दिशा में सरकारी आैर निजी क्षेत्र का यह प्रयास ऊंट के मुंह में जीरा की कहावत को सिद्ध करने वाला है। भूजल दोहन के अनुपात में संचयन की मात्रा अब तक न/न के बराबर है। विशेषज्ञ इसके लिये अंधाधुंध शहरीकरण और तालाबों और पार्को में कब्जे को जिम्मेदार मानते हैं। इसके अलावा सरकारी और अधिक क्षेत्रफल के निजी इमारतों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को कडाई से लागू न/न कर पाने की वजह से वर्षा जल नदी नालों के जरिये बेकार होने की पूरी संभावना है। यहां यह दिलचस्प तथ्य है कि उत्तर प्रदेश का अधिकांश क्षेत्र ‘गंगा-यमुना‘ नदियों के मैदानी भूभाग के अन्तर्गत आता है, जो विश्व में भूजल के धनी भण्डारों में से एक है हालांकि पिछले कुछ सालों में इस राज्य में जल की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये भूगर्भ जल संसाधनों पर निर्भरता अत्यधिक बढ़ी है। भूजल विभाग की रिपोर्ट के अनुसार भूगर्भ जल सम्पदा ने हाल के वर्षो में प्रमुख सिंचाई साधन के रूप में एक विशिष्ट स्थान बना लिया है। प्रदेश में लगभग 70 प्रतिशत सिंचित कृषि मुख्य रूप से भूगर्भ जल संसाधनों पर निर्भर है। पेयजल की 80 प्रतिशत तथा औद्योगिक सेक्टर की 85 प्रतिशत आवश्यकताओं की पूर्ति भी भूगर्भ जल से ही होती है।


                     भूजल स्रोतों पर बढ़ती निर्भरता का आकलन भूजल विभाग के आकडों से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2000 में प्रदेश में भूजल विकास/दोहन की दर 54.31 प्रतिशत एवं वर्ष 2009 में 72.16 प्रतिशत आंकी गयी थी, जो बढ़कर वर्ष 2011 में 73.65 फीसदी हो गयी है। लघु सिंचाई सेक्टर में 41 लाख उथले नलकूप, 25730 मध्यम नलकूप व 25198 गहरे नलकूप तथा 29595 राजकीय नलकूपों से बडे़ पैमाने पर भूजल का दोहन हो रहा था। रिपोर्ट के मुताबिक पेयजल योजनाओं के अन्तर्गत 630 शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन 5200 मिलियन लीटर तथा ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन लगभग 7800 मिलियन लीटर से अधिक भूजल का दोहन किया जा रहा है। परिणामस्वरूप, प्रदेश के अनेक ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में अतिदोहन की स्थिति उत्पन्न हो गयी है और यह प्राकृतिक संसाधन अनियंत्रित दोहन के साथ-साथ प्रदूषण व पारिस्थितिकीय असंतुलन के कारण गम्भीर संकट में है। भूजल के गिरते स्तर के बीच राजधानी लखनऊ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी की हालत भी चिंताजनक है। इसके बाद औद्योगिक नगरी कानपुर और इलाहाबाद का नंबर है। औद्योगिक इकाइयों द्वारा अत्यधिक भूजल दोहन और भूजल रिचार्ज सिस्टम के अभाव को इसका उत्तरदायी माना जा रहा है। मेरठ में बड़ी आबादी वाले ब्लॉक डार्क जोन में हैं। जिले के पांच ब्लॉक रजपुरा, खरखौदा, माछरा, परीक्षितगढ़, मेरठ में क्रिटिकल स्थिति है। दौराला और हस्तिनापुर ब्लॉक भी सेमी क्रिटिकल जोन में है। रजपुरा ब्लॉक की स्थिति सबसे अधिक खराब है। यहां भूजल स्तर में सर्वाधिक गिरावट दर्ज की गई है।


                           रिपोर्ट के मुताबिक गौतमबुद्ध नगर में हर साल 79 सेमी भूजल की गिरावट दर्ज की जा रही है जबकि लखनऊ में यह आंकडा 70 सेमी,वाराणसी में 68 सेमी, कानपुर में 65 सेमी, इलाहाबाद में 62 सेमी,मुजफ्फरनगर में 49 सेमी और आगरा में 45 सेमी है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार उत्तर प्रदेश में लगातार गिर रहे भूजल स्तर से राज्य में खाद्यान्न का कटोरा माने जाने वाले जिलों बागपत, हाथरस, जालौन और जौनपुर में कृषि उत्पादन पर असर पड़ेगा। कृषि विभाग के सूत्रों ने बताया कि बागपत, गाजियाबाद, वाराणसी, मेरठ, हाथरस, मथुरा, सहारनपुर, बांदा, जालौन, जौनपुर और हमीरपुर में भूजल स्तर में भारी गिरावट हुई है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि भूजल के बेरोकटोक दोहन और सूख रही झीलों और तालाबों को बचाने के लिए सरकार ने प्रभावी कदम उठाये है हालांकि इस प्रयास में निरंतरता बहुत जरूरी है। अधिकारियों का मानना है कि बेतरतीब विकास प्रतिमान और जल निकायों का पुनर्भरण नहीं होने से भूजल स्तर में तेजी से गिरावट हुई है। सूत्रों ने बताया कि सूखा और भूजल स्तर में गिरावट उत्तर प्रदेश के लिए कोई नई बात नहीं है। राज्य सरकार ने पिछले साल नवंबर में 75 में से 50 जिलों को सूखा प्रभावित घोषित किया था मगर वर्तमान स्थिति तुरंत सुधारात्मक उपायों की मांग कर रही है। इस संदर्भ में सरकार सभी उपायों पर विचार करेगी, जिनमें कुछ क्षेत्रों में प्रयोग के तौर पर किसानों को कुछ वर्षो तक धान की खेती की जगह सब्जियों और दलहन की खेती करने का सुझाव देना चाहिए।


                       सूत्रों के अनुसार, कुछ साल पहले उत्तर प्रदेश के कृषि उत्पादन आयोग ने अपनी रपट में केद्र सरकार को इस आशय का सुझाव दिया था क्योंकि धान की खेती में अधिक पानी खर्च होता है। राष्ट्रीय स्तर पर भी पानी की स्थिति चिंताजनक है। केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, देश भर के 91 बड़े जलाशयों का जलस्तर एक दशक में सबसे निचले स्तर पर है। इतना ही नहीं महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में सूखा या सूखे जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है। बुन्देलखण्ड में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 100 परम्परागत तालाबों के पुनर्जीवन की घोषणा की थी जिसमें 50 तालाब महोबा में थे। मनरेगा के तहत बुन्देलखण्ड में 4,000 हजार अन्य तालाबों के पुनर्जीवन की भी घोषणा भी श्री यादव ने की थी और इस पर जोरशोर से काम भी हुआ। राज्य के कई इलाकोें में हालात बुंदेलखंड के माफिक ही हैं। इनमे से एक प्रतापगढ़ में पानी की विषम परिस्थितियों वाला जिला है। जिले के कुण्डा, बाबागंज और बिहार विकासखण्ड के कई इलाके जल प्लावन से हलकान रहता है, तो सदर तहसील का इलाका भूजल स्तर के लगातार नीचे जाने के खतरे से परेशान है।


                      आधिकारिक सूत्रो के अनुसार शिवगढ़ विकासखण्ड, भूजल में बढ़ते फ्लोराइड और इसके कारण फ्लोरोसिस बीमारी से प्रभावित गाँवों की बढ़ती संख्या वाला विकासखण्ड है। जिला प्रतापगढ़ के कई गाँवों के भूजल स्रोत खारे हो चुके हैं। कई में भारी धातु तत्व सीमा लाँघ गया है। प्रतापगढ़ से गुजरने वाली मुख्य नदी-सई, प्रदूषण से जूझ रही है। बकुलाही नदी का मूल स्रोत जलाभाव के संकट से ग्रस्त है। सूखे और पानी की किल्लत झेल रहे बुंदेलखण्ड के वासियों के लिए एक राहत की बात यह है कि बुंदेलखण्ड क्षेत्र में (आईडब्ल्यूएमपी) योजना के तहत चार माह में बनाए गए 2000 नए और 1500 पुराने तलाबों के सुदृढ़ीकरण से दशा-दिशा में बदलाव आएगा। खास बात यह है कि बनाए गए नए तालाबों के निर्माण पद्धति परम्परिक शैली से किया गया है। जिससे बरसात के समय जल का अधिक संरक्षण होगा। साथ ही वाटर रिचार्जिंग में भी सहूलियत मिलेगी।इस योजना पर लगभग 43 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। कुछ जिलों को छोड़कर अधिकतर जिलों में नए और पुराने तालाबों का निर्माण कार्य लगभग पूरा हो चुका है। इन तालाबों के निर्माण का डिजाइन परम्परगत तलाबों के आधार पर किया गया है। जिससे स्थाई और प्राकृतिक तौर पर जल का संरक्षण हो सके और वाटर रिचार्जिंग भी हो सके जिससे पानी की किल्लत खत्म की जा सके।

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