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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी


जीआरसी ने की महिला वैज्ञानिकों की संख्या बढ़ाने की वकालत

नयी दिल्ली 27 मई (वार्ता) दुनिया भर के 44 देशों के अनुसंधान संस्थानों के 100 से अधिक प्रतिनिधियों ने शोध एवं अनुसंधान कार्यों में महिला वैज्ञानिकों की हिस्सेदारी बढ़ाने की वकालत की है। ग्लोबल रिसर्च काउंसिल (जीआरसी) के 25 से 27 मई के दौरान यहाँ आयोजित पाँचवें वार्षिक सम्मेलन में वैज्ञानिक अनुसंधान की वांछनीय दिशा, इस क्षेत्र की चुनौतियों और विसंगतियों पर चर्चा की गई। सम्मेलन में इस साल जिन मुद्दों पर चर्चा की गई उनमें वैज्ञानिक अनुसंधान में लिंग विषमता तथा बहु-विषयिक अनुसंधान प्रमुख थे। सम्मेलन का आयोजन इंडियन साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च (एसईआरबी) तथा ब्रिटेन के रिसर्च काउंसिल्स यूके (आरसीयूके) ने संयुक्त रूप से किया था। सम्मेलन के बाद आयोजित प्रेस वार्ता में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सचिव आशुतोष शर्मा ने कहा कि पारिवारिक कारणों तथा मातृत्व की जिम्मेदारियों के कारण कई मौकों पर महिला वैज्ञानिकों को लंबी छुट्टी लेनी पड़ती है। साथ ही कई बार शादी के बाद उन्हें एक शहर से दूसरे शहर में जाना पड़ता है। इन सभी कारणों से विज्ञान के क्षेत्र में जो महिलाएँ आती भी हैं उनमें बड़ी संख्या में यहाँ काम जारी नहीं रख पातीं। उन्होंने बताया कि विज्ञान के क्षेत्र में तकनीक आदि इतनी तेजी से बदलती है कि डेढ़ या दाे साल यदि आप इससे अलग रहते हैं तो फिर वापसी मुश्किल होती है। इसके अलावा आम तौर पर भी देश में वैज्ञानिक अनुसंधान में महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले कम है। प्रो. शर्मा ने प्रेस वार्ता से इतर यूनीवार्ता को बताया कि इन सक्रिय अनुसंधान का करियर छोड़ने के बावजूद इन महिला वैज्ञानिकों को विज्ञान के क्षेत्र से जोड़े रखने के लिए सरकार ने बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) में उन्हें एक साल का प्रशिक्षण दे रही है। आज आईपीआर के क्षेत्र में काम करने वाली 10 प्रतिशत महिलाएँ इसी योजना के तहत प्रशिक्षित हैं। इसके अलावा एक शहर से दूसरे शहर में स्थायी रूप से बस जाने वाली महिला वैज्ञानिकों को स्थायी नौकरी मिलने तक विश्वविद्यालयों एवं अन्य वैज्ञानिक संस्थानों में अस्थायी नौकरी दिलाने में भी मदद की जाती है ताकि वह अपने क्षेत्र से जुड़ी रह सकें। आरसीयूके के पूर्व चेयर रिक राइलेंस ने कहा कि अगले एक-दो दिन में जीआरसी अपनी वेबसाइट पर वैज्ञानिक अनुसंधान में लैंगिक विषमता और बहु-विषयिक अनुसंधान पर बयान जारी करेगी। उन्होंने कहा कि विज्ञान के क्षेत्र में प्रतिभाओं को आकर्षित करने में हम कामयाब हो रहे हैं, लेकिन उन्हें अनुसंधान से पूरे करियर जोड़े रखना कठिन हो रहा है। यह भारत की ही नहीं, पूरी दुनिया की समस्या है। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि जो प्रतिभा अनुसंधान क्षेत्र छोड़ देती है वह विज्ञान में अपना योगदान नहीं देती। कई बार लोग अनुसंधान संस्थानों की बजाय निजी कंपनियों में अपना करियर शुरू कर देते हैं और वहाँ योगदान देते रहते हैं। अजीत . टंडन वार्ता

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