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भारत की नारी शक्ति के आगे चीनी ड्रैगन की आग पड़ी ठंडी

भारत की नारी शक्ति के आगे चीनी ड्रैगन की आग पड़ी ठंडी

लखनऊ 06 अगस्त (वार्ता) भारतीय बाजार में वर्चस्व कायम रखने की चीन की कोशिशों को भारत की नारी शक्ति ने त्योहारी सीजन में पहला झटका दिया है। डाेकलाम विवाद में आंखे तरेरने और आतंकी सरगना अजहर मसूद के मामले में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की कोशिश को नाकाम करने वाले पड़ोसी देश में निर्मित उत्पादों के बहिष्कार की मुहिम का खासा असर रक्षाबंधन में देखा जा रहा है। देश के अन्य राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश में इस साल बाजार से स्टाइलिश चीन निर्मित राखियां नदारद हैं। रक्षाबंधन की पूर्व संध्या पर राखी के खरीददारों से बाजार गुलजार रहे। राजस्थानी, गुजराती और पंजाबी नक्काशी की एक से बढ़कर एक राखियां बहनों को लुभा रही थीं वहीं बच्चों के प्रिय कार्टून करेक्टर छोटा भीम, मोटू पतलू, डोरेमान और नोतिवा की शक्ल सूरत वाली राखियों से बाजार पटा पड़ा है। लखनऊ, कानपुर, मुरादाबाद, हरदोई, बरेली, इलाहाबाद, वाराणसी, देवरिया और आजमगढ़ समेत सूबे के हर जिलों में राखियों की खरीददारी चरम पर है। एक रूपये के धागे से लेकर 400 रूपये तक की राखियों से बाजार सजे हुये हैं। बाजारों में भीड़भाड़ के चलते कई जगह यातायात में मामूली फेरबदल भी किया गया है। हालांकि हर साल की तरह चीनी राखियों के प्रति खरीददारों की रूचि नगण्य थी वहीं चीन के रवैये से खफा दुकानदार भी चीन निर्मित राखियों से दूरी बनाये हुये हैं। यहां तक अधिकतर दुकानदारों ने नफे नुकसान की परवाह किये बिना लाखों रूपये मूल्य का पुराना स्टाक भी दुकान में सजाने से मना कर दिया है।


पिछले करीब एक दशक से भारतीय बाजार में तेजी से पांव पसार रहे चीन उद्यमियों के लिये रक्षाबंधन एक अशुभ संकेत बनकर उभरा है। एक अनुमान के मुताबिक उत्तर प्रदेश में रक्षाबंधन के मौके पर चीन करीब एक अरब रूपये का व्यापार करता था। इसके बाद गणपति पूजा, नवरात्र और दीपावली तक चलने वाले त्योहारी सत्र में चीन के उत्पादों की पूछ सर चढ़कर बोलती है। इस दौरान चीन कई अरब का व्यापार कर लेता है। लखनऊ विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के पूर्व प्रवक्ता एम जफर ने कहा कि देशभक्ति का इससे बड़ा नमूना और क्या होगा जब शहर से लेकर गांव तक आधी आबादी ने चीन को कमजोर करने के लिए हर स्तर पर संघर्ष करने की ठान ली है। शिक्षक, व्यापारी, किसान, युवा, महिला और मजदूर देश की सुरक्षा के मामले में लामबंद हो गये हैं। इसका सीधा असर चीन की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। चीनी हुक्मरानों के लिये यह बेहद छोटा लेकिन असरदार झटका साबित होगा। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया से लेकर गली नुक्कडों में चीन के विरोध में जबरदस्त लहर है। चीन उत्पादों का दुनिया में बेशक बड़ा बाजार है मगर भारत में उसके कदम लड़खड़ाने का मतलब कई मोर्चों पर एक साथ पड़ेगा। इसका परोक्ष असर खुद को स्वालंबी करना और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मेक इन इंडिया की मुहिम की सार्थकता पर पड़ना तय है। महिलाओं का कहना है कि अपने देश के विकास को गति देने के लिए यह जरूरी है कि हम यहां की निर्मित उत्पादों का अधिक से अधिक प्रयोग करें। जरूरत इस बात की है कि समाज का हर वर्ग आगे आए और चीन को सबक सिखाने तथा सीमा पर तैनात जवानों के भीतर उत्साह का संचार करने के लिए एकजुट हो।


अमीनाबाद में राखी के काराेबारी जमील अख्तर ने कहा “ इसमें कोई शक सुबह नहीं कि चीन निर्मित राखियां सस्ती होने के साथ साथ आकर्षक होती हैं। कम लागत में अधिक माल लाकर बेचा जा सकता है। हम इस बात के कभी पक्षधर नहीं रहे कि हमारे यहां ऐसे देशों के उत्पाद लाकर बेचे जाएं जो हमें नीचा दिखाने का प्रयास करते हों। हमारे देश ने दुनिया के तमाम बड़े देशों को व्यापार करने का अवसर दिया है। लाभ हानि छोड़कर आज हमें सिर्फ देश की सुरक्षा को मजूबत करने का प्रयास करना चाहिए।” विकासनगर क्षेत्र की निवासी और अलीगंज बाजार में खरीददारी करने निकली गृहिणी रीमा भारद्वाज ने कहा कि देश के विकास को आगे बढ़ाने तथा सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए जरूरी है कि सभी नागरिक अपना योगदान दें। चीन की हरकतों से सभी देशवासी सतर्क और गंभीर हैं। हमारा संकल्प है कि देशहित में इस बार किसी भी भाई की कलाई पर चीनी राखी नहीं होगी। कानपुर में ग्वालटोली क्षेत्र की निवासी हेमलता श्रीवास्तव ने कहा “ मेरा एक भाई सेना में है। उसे हर साल रक्षाबंधन पर मेरी राखी का इंतजार रहता है। हमें अपनी परंपरा पर गर्व है। चाइनीज उत्पादों का विरोध जारी रहेगा। भाई को अपने हांथों की बनी राखी ही भेजूंगी। चीन के उत्पादों का विरोध हर भारतीय को करना ही होगा।


कौशाम्बी के प्राथमिक विद्यालय में तैनात शिक्षिका सीमा गुप्ता ने कहा “ देश की एकता और सुरक्षा में सेंध लगाने की कोशिश करने वाले को हर स्तर पर सबक सिखाने की जरूरत है। देश के हर नागरिक को चीन के सभी उत्पादों का बहिष्कार करना होगा। उसे आर्थिक चोट पहुंचाकर भी हम अपने देश की सेवा कर सकते हैं। कानपुर में राखी के थोक कारोबारी भगतराम ने कहा कि सात वर्ष पहले से चीन से राखियां आनी शुरू हुई थीं। कुछ व्यापारियों के पास चीन की राखियां पड़ी हैं, लेकिन चीन की राखियों के विरोध के चलते उस स्टॉक को नहीं निकाला गया है। राखी का अर्थ रक्षा का वचन देना होता है, लेकिन जब चीन हर जगह हमारे विरोध में ही खड़ा है और लगातार हमारे खिलाफ षड़यंत्र कर रहा है तो हम क्यों उसकी राखियां बेचें और क्यों लोग उसकी राखी बांधें। उन्होंने कहा कि चीन की राखियों की आवक इस वर्ष ठप होने के बाद कोलकाता और मुंबई ही राखी निर्माण के सबसे बड़े केंद्र बन गए हैं। यहीं से सबसे ज्यादा राखी कानपुर आ रही हैं। कानपुर के थोक बाजार से लखनऊ, अलीगढ़, कन्नौज, फर्रुखाबाद, बांदा, औरैया, इटावा, फतेहपुर, उरई समेत करीब दो दर्जन जिलों में राखियों की बिक्री होती है। प्रदीप नरेन्द्र अवधेश वार्ता

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