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उन्होंने कहा कि दिल्ली के स्कूलों में शिक्षा क्रांति की यह यात्रा 2015 में शुरू हुई। हमारी नई-नई सरकार बनी थी। मैं और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया बैठकर सोच रहे थे कि क्या करें और कैसे करें। सपना तो था, मंजिल तो थी, लेकिन रास्ता आसान नहीं था। हमने पहला निर्णय यही लिया कि शिक्षा को बजट खूब देते हैं। पहले शिक्षा को 5-10 फीसद बजट दिया जाता था, लेकिन हमने एकदम से शिक्षा का बजट बढ़ाकर 25 फीसद कर दिया और सारे स्कूलों का इंफ्रास्ट्रक्चर ठीक करने का काम शुरू कर दिया। उससे एक माहौल बनने लगा। सारे शिक्षकों, अभिभावकों और बच्चों को लगने लगा कि यह सरकार स्कूलों पर कुछ तो कर रही है। अगला काम जो मुश्किल था, वह शिक्षकों को पढ़ाने के लिए के लिए कैसे प्रेरित किया जाए। फिर शिक्षकों पर काम शुरू किया गया और उनको प्रशिक्षण देने के लिए बाहर भेजा गया। शिक्षकों से सभी मसलों को ठीक किया गया। जब शिक्षक अमेरिका, कनाडा, अमेरिका, लंदन, सिंगापुर से प्रशिक्षण लेकर वापस लौटे, तो उनका भी हौसला बढ़ा हुआ था। उनको भी लगने लगा कि अब कुछ कर के दिखाना है। धीरे-धीरे नतीजे अच्छे आने लगे। बच्चों के उत्तीर्ण होने के प्रतिशत बढ़ने लगे। इस साल 12वीं कक्षा में 99.6 फीसदी नतीजे आए हैं, लोगों को यकीन नहीं होता है। दिल्ली के निजी स्कूलों से कहीं ज्यादा अच्छे नतीजे आए। हम सुना करते थे कि 50-70 फीसदी सरकारी स्कूलों में नतीजे आते हैं। बच्चे फेल होते हैं।
उन्होंने कहा कि अब हम अगले कदम पर जा रहे हैं। बच्चों को अभी जो पढ़ाया जाता था, उसको ठीक किया, लेकिन अब क्या पढ़ाया जाता है, हमारे बच्चे पढ़कर जो निकलते हैं, उनकी क्वालिटी कैसी है। इसमें तीन चीजों पर काम किया जा रहा है। एक, दिल्ली के स्कूलों से जो भी हमारे बच्चे निकलें, वो अच्छे इंसान बनें। उसके लिए हैप्पीनेस क्लासेस शुरू की गई है। उनको थोड़ी सी मेडिटेशन कराया जाता है। उनको थोड़ी सी मोरल स्टोरी सुनाते हैं। उनको अच्छा इंसान बनाने की कोशिश की जा रही है। यह केवल औपचारिकता भर नहीं है। जो बच्चे हैप्पीनेस क्लस ले रहे हैं, उनके अभिभावक आकर बता रहे हैं कि बच्चों के अंदर कितना व्यापक परिवर्तन आ रहा है। घर जाकर वही बच्चे जब अपने माता-पिता से बात करते हैं, जो बच्चे आज तक अपने माता-पिता से लड़ा करते थे, अब वो अपने माता-पिता की इज्जत करने लगे हैं। हमारे बच्चों में बहुत बड़ा परिवर्तन आ रहा है। दूसरा, एंटरप्रिन्योरशिप क्लास शुरू किया। हमारे यहां बच्चे डिग्री पर डिग्री लेते हैं। डिग्रियां लेने पर नौकरी मिलती नहीं है। अगर शिक्षा पूरी करने के बाद भी बच्चा दो रोटी न कमा पाए, अपने परिवार को न पाल पाए, तो शिक्षा का क्या फायदा हुआ। हम 9वीं कक्षा से ही बच्चों को बिजनेस करना सीखा रहे हैं। बच्चे अब 24 घंटे यह सोचते हैं कि मैं क्या बिजनेस करूंगा, कैसे बिजनेस करूंगा। अब हमारे बच्चे कहते हैं कि मुझे नौकरी लेने वाला नहीं, नौकरी देना वाला बनना है। यह सोच में जो बदलाव आया है, यह बहुत बड़ी बात है। तीसरा, जो बच्चा हमारे स्कूलों से निकले, वो कट्टर देशभक्त होना चाहिए। अपने देश के लिए मर-मिटने को तैयार होना चाहिए। इसके लिए हम लोगों ने अपने स्कूलों में देशभक्ति क्लास शुरू की है।
श्री केजरीवाल ने कहा कि एक और बड़ी बात हुई है। हमने दिल्ली में अपना स्कूल एजुकेशन का बोर्ड शुरू किया है। उसका गठजोड़ अंतर्राष्ट्रीय एजुकेशन बोर्ड से किया है, जो पूरी दुनिया का एजुकेशन बोर्ड है। इंटरनेशनल एजुकेशन बोर्ड एक ऐसा बोर्ड है, जिससे पढ़ने के लिए अमीरों के बच्चे तरसते हैं। अब दिल्ली के बच्चे इंटरनेशनल एजुकेशन बोर्ड की शिक्षा प्राप्त किया करेंगे। यह बहुत बड़ी बात हुई है। हम टीचर यूनिवर्सिटी बना रहे हैं। दिल्ली अब पूरे देश के लिए शानदार शिक्षक तैयार करेगी। मैं सोच रहा था कि आज बाबा साहब की आत्मा जहां कहीं पर भी होगी और उपर से देख रही होगी, तो हमें जरूर खूब आशीर्वाद दे रही होगी। मैं सोच रहा था कि अगर आज बाबा साहब जिंदा होते, तो हमें खूब आशीर्वाद देते। हमें गले से लगा लेते।
उन्होंने कहा कि आज गणतंत्र दिवस के अवसर पर मैं यह ऐलान करता हूं कि दिल्ली सरकार के हर दफ्तर के अंदर, बाबा साहब अंबेडकर और शहीद-ए-आजम की तश्वीरें लगाई जाएंगी। अब हम नेताओं की तश्वीरें नहीं लगाएंगे। अब मुख्यमंत्री की तस्वीर नहीं लगानी है। अब हमें इन दो महानुभावों बाबा साहब डॉ. अंबेडकर और भगत सिंह की तश्वीरें लगानी हैं। इन दोनों के वसूलों के उपर हमारी दिल्ली सरकार चलेगी और ये दोनों हम लोगों को हर कदम पर प्रेरणा देते रहेंगे।
आजाद टंडन
वार्ता
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