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मनोरंजन


भारतीय सिनेमा जगत के युगपुरूष ताराचंद बड़जात्या

भारतीय सिनेमा जगत के युगपुरूष ताराचंद बड़जात्या

(पुण्यतिथि 21 सितंबर के अवसर पर)

मुंबई 20 सितंबर(वार्ता) भारतीय सिनेमा जगत के युगपुरूष तारा चंद बड़जात्या का नाम एक ऐसे फिल्मकार के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने पारिवारिक और साफ सुथरी फिल्म बनाकर लगभग चार दशकों तक सिने दर्शकों केदिल में अपनी खास पहचान बनायी।

फिल्म जगत में “सेठजी” के नाम से मशहूर महान निर्माता ताराचंद बड़जात्या का जन्म राजस्थान में एक मध्यम वर्गीय परिवार में 10 मई 1914 को हुआ था। उन्होंने अपनी स्नातक की शिक्षा कोलकाता के विद्यासागर कॉलेज से पूरी की। उनके पिता चाहते थे कि वह पढ़ लिखकर वैरिस्टर बने लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति खराब रहने के कारण ताराचंद को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। वर्ष 1933 में वह नौकरी की तलाश में मुंबई पहुंचे मुंबई में वह मोती महल थियेटर्स प्राइवेट लिमिटेड नामक फिल्म वितरण संस्था से जुड़ गये। यहां उन्हें पारश्रमिक के तौर पर 85 रुपये मिलते थे । वर्ष 1939 में उनके काम से खुश होकर वितरण संस्था ने उन्हें महाप्रबंधक के पद पर नियुक्त करके मद्रास भेज दिया ।

मद्रास पहुंचने के बाद ताराचंद और अधिक परिश्रम के साथ काम करने लगे। उन्होंने वहां के कई निर्माताओं से मुलाकात की और अपनी संस्था के लिये वितरण के सारे अधिकार खरीद लिये। मोती महल थियेटर्स के मालिक उनके काम को देख काफी खुश हुये और उन्हें स्वयं की वितरण संस्था शुरू करने के लिये उन्होंने प्रेरित किया। इसके साथ ही उनकी आर्थिक सहायता करने का भी वायदा किया। ताराचंद को यह बात जच गयी और उन्होंने अपनी खुद की वितरण संस्था खोलने का निश्चय किया।

15 अगस्त 1947 को जब देश स्वतंत्र हुआ तो इसी दिन उन्होंने “राजश्री” नाम से वितरण संस्था की शुरूआत की। वितरण व्यवसाय के लिये उन्होंने जो पहली फिल्म खरीदी वह थी “चंद्रलेखा”। जैमिनी स्टूडियो के बैनर तले बनी यह फिल्म काफी सुपरहिट हुयी जिससे उन्हें काफी फायदा हुआ। इसके बाद वह जैमिनी के स्थायी वितरक बन गये। इसके बाद ताराचदं ने दक्षिण भारत के कई अन्य निर्माताओं को हिन्दी फिल्म बनाने के लिये भी प्रेरित किया। ए.बी.एम , अंजली, वीनस, पक्षी राज और प्रसाद प्रोडक्शन जैसी फिल्म निर्माण संस्थायें उनके ही सहयोग से हिन्दी फिल्म निर्माण की ओर अग्रसर हुयी और बाद में काफी सफल भी हुयी। इसके बाद ताराचंद फिल्म प्रर्दशन के क्षेत्र से भी जुड़ गये जिससे उन्हें काफी फायदा हुआ। उन्होंने कई शहरों मे सिनेमा हॉल का निर्माण किया। फिल्म वितरण के साथ-साथ ताराचंद का यह सपना भी था कि वह छोटे बजट की पारिवारिक फिल्मों का निर्माण भी करें ।

         वर्ष 1962 में प्रदर्शित फिल्म “आरती” के जरिये उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रखा। फिल्म आरती की सफलता के बाद बतौर निर्माता वह फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गये। इस फिल्म से जुड़ा रोचक तथ्य है कि इस फिल्म के लिये अभिनेता संजीव कुमार ने स्क्रीन टेस्ट दिया जिसमें वह पास नहीं हो सके थे। ताराचंद के मन में यह बात हमेशा आती थी कि नये कलाकारों को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित होने का समुचित अवसर नहीं मिल पाता है। उन्होंने यह संकल्प किया कि वह अपनी फिल्मों के माध्यम से नये कलाकारो को अपनी प्रतिभा दिखाने का ज्यादा से ज्यादा मौका देंगे।

वर्ष 1964 में इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिये उन्होंने फिल्म “दोस्ती” का निर्माण किया जिसमें उन्होंने अभिनेता संजय खान को फिल्म इंडस्ट्री के रूपहले पर्दे पर पेश किया। दोस्ती के रिश्ते पर आधारित इस फिल्म ने न सिर्फ सफलता के नये आयाम स्थापित किये बल्कि अभिनेता संजय खान के करियर को भी एक नयी दिशा दी। इस फिल्म का यह गीत “चाहूंगा तुझे मै सांझ सवेरे” आज भी श्रोतओं के बीच काफी लोकप्रिय है ।

अभिनेता संजय खान के अलावा कई अन्य अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के सिने करियर को संवारने में भी ताराचंद का अहम योगदान रहा है जिनमें सचिन -सारिका की गीत गाता चल, अमोल पालेकर-जरीना बहाव चितचोर, रंजीता की अंखियों के झरोके से, रॉखी की जीवन मृत्यु, अरूण गोविल की सावन को आने दो, रामेश्वरी की दुल्हन वही जो पिया मन भाये, सलमान खान-भाग्यश्री की मैने प्यार किया जैसे सितारे शामिल है।

ताराचंद को मिले सम्मानों को देखा जाये तो उन्हें अपनी निर्मित फिल्म के लिये दो बार फिल्म फेयर के सर्वश्रेष्ठ फिल्मकार से नवाजा गया है। अपनी निर्मित फिल्मों से लगभग चार दशक तक दर्शको का भरपूर मनोरंजन करने वाले महान फिल्माकार ताराचंद बड़जात्या 21 सितंबर 1992 को इस दुनिया को अलविदा कह गये ।

वार्ता

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