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कुम्भ में निरंजनी अखाड़े में 150 नागा सन्यासियों को दी गयी दीक्षा

कुम्भ में निरंजनी अखाड़े में 150 नागा सन्यासियों को दी गयी दीक्षा

कुम्भ नगर, 28 जनवरी (वार्ता) अखाड़ों के आन-बान और शान कहे जाने वाले नागा संन्यासी बनने का क्रम जारी है और साेमवार को निरंजनी अखाड़े में 150 नागाओं को सन्यासी बनने की दीक्षा दी गयी।

श्री पंचायती तपोनिधि निरंजनी अखाड़ा के कुम्भ मेला अध्यक्ष परमिंदर पुरी ने बताया कि सोमवार को अखाड़ा में 150 नागा सन्यासियों को दीक्षा देने का कार्यक्रम किया गया। उन्होंने बताया कि सबसे पहले नागाओं का क्षौर क्रिया कराया गया। गंगा किनारे स्थित सेक्टर 16 में निरंजनी अखाड़े में युवा, बुजुर्ग गृहस्थों को नागा सन्यासी बनने की दीक्षा दी गयी। सभी गृहस्थ एक कोपिन (लंगोटी) धारण कर गंगा किनारे कतार में बैठे हुए थे। स्नान करने के बाद पंड़ित द्वारा मंत्रोच्चार के बीच उन्हें जनेऊ पहनाया गया।

महंत पुरी ने बताया कि कुम्भ मेले के दौरान दो बार दीक्षा दी जायेगी। एक बार सोमवार कोे और दूसरी बार चार मार्च शाही स्नान के बाद नागा सन्यासियों को दीक्षा देने का कार्यक्रम पुन: कराया जायेगा। उन्होंने बताया कि धर्म की रक्षा के लिए नागा बनाने से पहले संस्कार की परंपरा पूरी करायी गयी। पूर्व में सन्यास धारण किये हुए संतो को पूरे विधि-विधान से अखाडों की परंपरा के अनुसार क्षौर क्रिया कराई गयी।

उन्होंने बताया कि क्षौर क्रिया के बाद इनकी दशविधि स्नान कराया जाता है। इस स्नान के बाद उनके सारे पाप खत्म हो जाते हैं। यह मानव जीवन से अलग संत परिवेश में जीवन जीते हैं। अपना पिण्डदान करने के बाद सभी सांसारिक नाते रिश्तों से मुक्त हो गये। यह सभी आजीवन जमीन पर सोयेंगे। महंत पुरी ने बताया कि दीक्षा के बाद सभी नागा संन्याशी अपने गुरू की आज्ञा का पालन करेंगे और संसार के मोहमाया से दूर रहकर अपने आरध्य की सेवा करेंगे। इसके अलावा किसी के सामने शीश नहीं झुकाएंगे। यदि इनमें से कोई पुन: गृहस्थ में वापस नहीं लौटता। यदि कोई लौट भी गया तो उसे यहां के अखाड़ा के आचार्य द्वारा दिया गया गिरी, पुरी नाम से उनके वंशज जाने जाते हैं।

उन्होंने बताया कि नागा केवल कुम्भ और अर्द्ध कुम्भ में बनाया जाता है। प्रयागराज में बनने वाले नागा सन्यासी को राजराजेश्वर कहा जाता है। हरिद्वार में नागा बनने वाले को बर्फानी कहा जाता है और नासिक में बनने वाले को खिचड़ी नागा कहते हैं एवं उज्जैन में जिन्हे नागा परंपरा की दीक्षा दी जाती है उन्हें खूनी नागा कहते हैं।

महंत पुरी ने बताया कि इन नागाओं में दो प्रकार के दिगम्बर और श्री दिगम्बर कहा जाता है। श्री दिगम्बर आजीवन दिगम्बर रहते हैं लेकिन समाज में बाहर जाने पर वह वस्त्र धारण कर लेते हैं।

उन्होंने बताया कि नागा साधुओं का संबंध शैव परंपरा की स्थापना से है। हिन्दू संत धारा में नागा साधुओं का राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए अहम योगदान रहा है। नागा साधुओं का इतिहास बहुत पुराना है लेकिन आज भी ये लोग एक सामान्य व्यक्ति के लिए जिज्ञासा का केंद्र हैं। कालांतर में ये साधु योद्धा होते थे। हालांकि आज युद्ध नहीं होते है। ऐसे में इन साधुओं की दिनचर्या में भी फर्क पड़ा है। समय के साथ सब कुछ बदलता रहता है, लेकिन एक बात नहीं बदलती वह है नागा साधु बनने के लिए कड़ी प्रक्रिया से गुजरना, जो किसी सैनिक की ट्रेनिंग की तरह होती है।

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