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‘रक्षक सेना’ की सफलता से प्रेरित होकर ह्यूम ने की थी काग्रेंस की स्थापना

‘रक्षक सेना’ की सफलता से प्रेरित होकर ह्यूम ने की थी काग्रेंस की स्थापना

इटावा, 27 दिसंबर (वार्ता) देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की स्थापना की उत्तर प्रदेश के इटावा में 30 मई 1857 में क्रांतिकारियों से निपटने के लिये गठित की गई रक्षक सेना की सफलता से प्रेरित होकर की गई थी ।

इटावा के कलेक्टर रहे ए.ओ. ह्यूम ने 28 दिसंबर 1885 को बंबई में कांग्रेस की स्थापना अंग्रेज सरकार के लिए सेफ्टी वाल्व के रूप में की थी।

‘इटावा के हजार साल’ पुस्तक के अनुसार इटावा के कलेक्टर ए.ओ. ह्यूम ने इटावा में 30 मई 1857 को राजभक्त जमीदारों की अध्यक्षता में राजभक्त ठाकुरों की एक स्थानीय रक्षक सेना बनाई थी जिसका मकसद इटावा में शांति स्थापित करना था । इस सेना की सफलता को देखते हुए 28 दिसंबर 1885 को मुबंई में ब्रिटिश प्रशासक ह्यूम ने कांग्रेस की नींव रखी । ह्यूम के दिमाग में कांग्रेस के गठन की भूमिका अंग्रेज सरकार के लिए एक सेफ्टी वाल्व की तरह थी। उनका मानना था कि वफादार भारतीयों की एक राजनीतिक संस्था के रूप में कांग्रेस के गठन से भारत में 1857 जैसे भीषण जन विस्फोट के दोहराव से बचा जा सकता था।

इतिहासकारों के अनुसार वर्ष 1856 में ह्यूम इटावा के कलेक्टर थे। डलहौजी की संधि के कारण देशी राज्यों में अपने अधिकार हनन को लेकर ईस्ट इंडिया कंपनी के विरद्ध आक्रोश था। चर्बी लगे कारतूसों के कारण छह मई 1857 में मेरठ से सैनिक विद्रोह भड़का था। उत्तर प्रदेश तथा दिल्ली से लगे क्षेत्र ईस्ट इंडिया कंपनी ने संवेदनशील घोषित कर दिए। ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भारतीयों की संख्या भी अच्छी-खासी थी। अंग्रेज सैनिकों ने इटावा की सडकों पर गश्त तेज कर दी थी ।16 मई 1857 की आधी रात को सात हथियारबंद सिपाही इटावा में शहर कोतवाल ने पकड़ लिए। ये मेरठ के पठान विद्रोही थे जो अपने गांव फतेहपुर जा रहे थे। उन्होंने कमाडिंग अफसर कार्नफील्ड पर गोली चला दी लेकिन वह बच गया। उसने बदले में गोलियां दागना शुरू कर दिया। जिसमें चार मारे गए एवं तीन भाग गए।

पुस्तक में उल्लेख है कि डिप्टी कलेक्टर लक्ष्मण सिंह, कुंअर जोर सिंह तथा अन्य वफादारों ने अंग्रेज परिवारों को बढपुरा से आगरा पहुंचा दिया । इटावा के सैनिको ने ह्यूम और उसके परिवार को मार डालने की योजना बनाई, जिसकी भनक लगते ही 17 जून 1857 को ह्यूम वेश बदलकर इटावा से निकल कर बढपुरा पहुंच गए और सात दिन तक वे बढपुरा में छिपे रहे। 25 जून 1857 को ग्वालियर से अंग्रेजों की रेंजीमेंट इटावा आई तथा यहां पर पुन अंग्रेजों का अधिकार हो गया।

ह्यूम ने इटावा मे गुलामी के दौर मे अग्रेजो के लिये एक प्रार्थना स्थल चर्च का निर्माण कराया । उसके पास ही इटावा क्लब की स्थापना इसलिये कराई ताकि बाहर से आने वाले मेहमानो को रूकवाया जा सके क्योंकि इससे पहले कोई दूसरा ऐसा स्थान नही था जहां पर मेहमानो को रूकवाया जा सके । सिंतबर 1944 को हुई जोरदार वर्षा मे यह भवन धराशायी हो गया जिसे नंबवर 1946 मे पैतीस हजार रूपये खर्च करके पुननिर्मित कराया गया था।

इटावा में अपने कलेक्टर कार्यकाल के दौरान ह्यूम ने अपने नाम के अंग्रेजी शब्द के एचयूएमई के रूप में चार इमारतों का निर्माण कराया । 16 जून 1856 को हयूम ने इटावा के लोगो की जनस्वास्थ्य सुविधाओ को मददेनजर रखते हुये मुख्यालय पर एक सरकारी अस्पताल का निर्माण कराया तथा स्थानीय लोगो की मदद से ह्यूम ने खुद के पैसे से 32 स्कूलो को निर्माण कराया जिसमे 5683 बालक बालिका अध्ययनरत रहे । खास बात यह है कि उस वक्त बालिका शिक्षा का जोर ना के बराबर रहा होगा तभी तो सिर्फ दो ही बालिका अध्ययन के लिये सामने आई।

ह्यूम ने इटावा को एक बडा व्यापारिक केंद्र बनाने का निर्णय लेते हुये अपने ही नाम के उपनाम से हयूमगंज की स्थापना करके हाट बाजार खुलवाया जो आज बदलते समय मे होमगंज के रूप मे बडा व्यापारिक केंद्र बन गया है।

हयूम ने अपने कार्यकाल के दौरान इटावा शहर मे मैट्रिक शिक्षा के उत्थान की दिशा मे काम करना शुरू किया। जिस स्कूल का निर्माण ह्यूम ने 17500 रूपये की रकम के जरिये कराया वो 22 जनवरी 1861 को बन कर के तैयार हुआ और हूयम ने इसको नाम दिया हयूम एजूकेशन स्कूल। इस स्कूल के निर्माण की सबसे खास बात यह रही कि हयूम के प्रथमा अक्षर एच शब्द के आकार का रूप दिया गया। आज इस स्कूल का संचालन इटावा की हिंदू एजूकेशलन सोसाइटी सनातन धर्म इंटर कालेज के रूप मे कर रही है।

हिंदु एजूकेशन सोसायटी इस बाबत बेहद खुश है क्योंकि वो काग्रेस संस्थापक निर्मित स्कूल की रखवाली करके अपने आप को अभीभूत महसूस करते है । हिंदु एजूकेशन सोसाइटी संचाालित सनातन धर्म इंटर कालेज के प्रधानाचार्य संजय शर्मा का कहना है कि हयूम साहब ने स्कूल का निर्माण तो कराया लेकिन संचालन के लिये इस स्कूल को हिंदु एजूकेशन सोसायटी को ही बेच दिया करीब 40 हजार रूपये मे हयूम साहब ने इस स्कूल को बेचा और आज यह स्कूल सनातन धर्म इंटर कालेज के नाम से संचालित हो रहा है।

1857 के गदर के बाद इटावा मे हयूम ने एक शासक के तौर पर जो कठिनाईया आम लोगो को देखी उसको जोडते हुये 27 मार्च 1861 को भारतीयो के पक्ष मे जो रिपोर्ट अग्रेज सरकार को भेजी। उससे ह्यूम के लिये अंग्रेज सरकार ने नाक भौह तान ली और उन्हे तत्काल बीमारी की छुट्टी नाम पर ब्रिटेन भेज दिया। एक नंबवर 1861 को हूयूम ने अपनी रिर्पाेट को लेकर अंग्रेज सरकार ने माफी मागी तो 14 फरवरी 1963 को पुनः इटावा के कलक्टर के रूप मे तैनात कर दी गई।

भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के पूर्व संरक्षण अधिकारी और पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर के महासचिव डा. राजीव चौहान कहना है कि एलन आक्टेवियन हयूम यानि ए.ओ.हयूम को पक्षियो से खासा प्रेम काफी रहा है । इटावा मे अपनी तैनाती के दौरान अपने आवास पर हयूम ने 165 से अधिक चिडियो का संकलन करके रखा था। एक आवास की छत ढहने से सभी की मौत हो गई थी । इसके अलावा कलक्टर आवास मे ही बरगद का पेड पर 35 प्रजाति की चिडिया हमेशा बनी रहती थी । साइवेरियन क्रेन को भी हयूम ने सबसे पहले इटावा के उत्तर सीमा पर बसे सोंज बैंडलैंड मे देखे गये सारस क्रेन से भी लोगो को रूबर कराया था।


इटावा काग्रेंस इकाई के पूर्व अध्यक्ष उदयभान सिंह यादव का कहना है कि ए.ओ.हयूम और इटावा का गहरा नाता रहा है और हमेशा रहेगा । ह्यूम के बारे मे हर कोई जानता है कि उन्होने इटावा मे ही काग्रेस की स्थापना का खाका खींच लिया था । कहा जाता है कि 1857 के गदर के बाद हयूम के मन मे यह बात घर कर गई कि प्रखर राष्ट्रवाद की जो आग सारे देश मे फैल गई है उसको बिना भारतीयो का साथ लेकर किसी भी सूरत मे कामयाबी नही पाई जा सकती है। तभी हयूम ने 1858 मे दुबारा अपनी तैनाती के दौरान स्थानीय रक्षक सेना का गठन किया जिसके जरिये हयूम ने इटावा मे पनपे जनअसंतोष को शांत करने मे ना केवल कामयाबी पाई बल्कि अपने मिशन मे कामयाब भी हुआ और 1867 मे इटावा से हटने के बाद 1885 मे भारतीय राष्ट्रीय यूनियन का गठन किया जो बाद मे इंडियन नेशनल काग्रेस के रूप मे तब्दील हो गई।

समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी काग्रेंस के संस्थापक ए.ओ. ह्यूम की याद सैफई मे हुई इंटरनेशल सारस कांफ्रेस मे ताजा कर चुके है । ए.ओ.हयूम की छवि पक्षी विज्ञानी के तौर पर भी रही है। इटावा मे जिला कलेक्टर के कार्यकाल के दौरान उनके बगंले पर साईबेरियन सारसो को खासा संरक्षण मिला करता था वो अलग बात है कि अर्से से इटावा मे साइबेरियन सारस की आवाजाही को नही देखा गया है । सबसे खास बात यह है कि ए.ओ.हयूम भले ही कांग्रेस संस्थापक हो लेकिन कांग्रेस के छोटे से लेकर किसी भी बड़े नेता ने उनको आज तक याद करने जरुरत नही समझी ।

अखिलेश यादव यह कहते है कि इटावा बहुत बडा शहर है खास कर जहॉ पर काग्रेंस की स्थापना हुई । काग्रेंस के लोगो को जरूर इटावा आना चाहिए और धन्यवाद देना चाहिए इस घरती को अगर ए.ओ.हयूम ने पार्टी न बनाई होती तो शायद आज काग्रेंस ना होती।

सं प्रदीप

वार्ता

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