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लोकरुचि


रसगुल्ले को भाैगोलिक पहचान मिलने से बंगाल में हर्ष की लहर

रसगुल्ले को भाैगोलिक पहचान मिलने से बंगाल में हर्ष की लहर

कोलकाता 15 नवम्बर (वार्ता) ढाई वर्ष के संघर्ष बाद रसगुल्ले की भौगोलिक पहचान (जीआई) हासिल करने से न केवल पूरे पश्चिम बंगाल में बल्कि राज्य से बाहर बंगाली समुदाय में हर्ष का माहौल है.


                      चेन्नई स्थित भौगोलिक पहचान (जीआई) रजिस्ट्रार की ओर से यह घोषणा की कि मिठाइयों में भारत की पहचान बना रसगुल्ला पश्चिम बंगाल की खोज है , न कि ओडिशा की जिससे दोनों राज्यों के बीच रसगुल्ले की जीआई को लेकर चल रहे विवाद पर विराम लग गया और इस खबर से पूरा बंगाल खुशी में झूम उठा.

                          मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्वीट के जरिये अपनी और समूचे बंग-बंधुओं की ओर से खुशी का इजहार किया, उन्होंने ट्वीट किया, “ सबके लिए खुशखबरी, हमें बहुत खुशी और गर्व हो रहा है कि बंगाल को रसगुल्ला के लिए जीआई का टैग मिला.

                      पश्चिम बंगाल सरकार ने 19 वीं शताब्दी के इतिहास का हवाला देते हुए दावा किया था कि नवीन चंद्र दास ने 1868 में सबसे पहले रसगुल्ले को बनाया और पेश किया था.

                        रसगुल्ले का कोलंबस माने जाने वाले नवीन चंद्र दास के पोते एवं मिठाई निर्माता के सी दास प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक धिमान दास ने इस उपलब्धि को मुख्यमंत्री की सक्रिय भूमिका का नतीजा बताया और उनके प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया और कहा कि राज्य सरकार ने जीआई टैग के विवाद को सुलझाने की दिशा में अथक प्रयास किया.

                       श्री दास ने यूनीवार्ता से कहा , “ हम मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सक्रिय योगदान के लिए आभारी हैं. मुख्यमंत्री ने 2015 में उसी समय अपने प्रशासन को दिशा-निर्देश दे दिये थे , जब ओडिशा ने अपने पक्ष में जीआई के लिए प्रयास शुरू किया, राज्य सरकार ने नवीन चंद्र दास द्वारा रसगुल्ले की खोज संबंधी दावे के पक्ष में सभी सूचनायें एवं दस्तावेज पेश किया.

                     राज्य के खाद्य प्रसंस्करण मंत्री अब्दुर रज्जाक मुल्लाह ने कहा, “ हम बहुत खुश हैं और काफी राहत भी महसूस कर रहे हैं,”

दूसरी तरफ ओडिशा के वित्त मंत्री शशि भूषण बेहरा ने रसगुल्ले के जी टैग पश्चिम बंगाल को दिये जाने पर नाखुशी जतायी, उन्होंने कहा, “ ,यह ओडिशा के साथ नाइंसाफी है.

                       ओडिशा सरकार ने रसगुल्ले के जीआई टैग के लिए पुन: दावा पेश करने का संकेत दिया है, उसका कहना है कि रसगुल्ले की शुरुआत ओडिशा में ही हुई थी और 12वीं शताब्दी से उड़िया लोग विश्वप्रसिद्ध पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर में भगवान को रसगुल्ले का भोग चढ़ाते आ रहे हैं.

                           पश्चिम बंगाल छायी खुशी का इजहार करते हुये कालेज की छात्रा सौम्या दास ने कहा कि मिठाई का जिक्र हो तो सबसे पहले लोगों की जबान पर रसगुल्ले का ही नाम आता है, पश्चिम बंगाल को रसगुल्ले का जीआई टैग मिलना हर्ष की बात है, सामाजिक कार्यकर्ता शिउली भट्टाचार्य ने का दो टूक कहना था, “ बंगाली मीन्ज रसगुल्ला.

                           उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल के खाते में पहले से ही 14 जीआई टैग हैं , जिनमें दार्जिलिंग टी, नक्क्षी कांथा, शांति निकेतन लेद गुड्स, द बांकुरा हार्स, लक्ष्मण भोग, किरास्पती, फजली आम, शांतिपुर, बालूचेरी और ढकाइनाल साड़ी, जोएनागर मोआ, वर्दमान सीताभोग और बिहीदाना, गोविंदाभोग और तुलइपंजी चावल प्रमुख हैं.

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