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जयशंकर की एससीओ से आतंकवाद, अतिवाद, पृथकतावाद से समझौता न करने की पुरज़ोर अपील

जयशंकर की एससीओ से आतंकवाद, अतिवाद, पृथकतावाद से समझौता न करने की पुरज़ोर अपील

इस्लामाबाद/नयी दिल्ली, 16 अक्टूबर (वार्ता) विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को बल दिया कि शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्य देशों के बीच सहयोग संबंध तभी बढ़ेगा जब सदस्य देश एक दूसरे की सम्प्रभुता का बराबरी के आधार पर सम्मान करें और समूह आतंकवाद अतिवाद और पृथकतावाद इन तीन बुराइयों के विरुद्ध किसी प्रकार का कोई समझौता न किये जाने का रूख अख्तियार करे।

श्री जयशंकर एससीओ की बैठक में शामिल होने के लिये अभी इस्लामाबाद में हैं।

संगठन के शासनाध्यक्षों की बैठक को सम्बोधित करते हुये विदेश मंत्री ने कहा कि इस फोरम का प्राथमिक उद्देश्य आतंकवाद, पृथकतावाद और अतिवाद का मुकाबला करना है। यह उद्देश्य आज के समय में और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।

विदेश मंत्री ने कहा, “इसके लिये ईमानदार चर्चा, विश्वास और अच्छे पडोसी धर्म के साथ साथ एससीओ घोषणापत्र के प्रति प्रतिबद्धता जरूरी है। एससीओ के लिए इन तीन बुराइयों के खिलाफ मज़बूती से खड़े रहने और कोई समझौता न करने की जरूरत है।”

श्री जयशंकर के इस व्यतव्य से पहले पाकिस्तान और चीन ने कल एक संयुक्त बयान जारी किया था जिसमें कश्मीर का भी उल्लेख किया गया था। उन्होंने कहा कि एससीओ के सामने विश्व की वर्तमान संकटपूर्ण परिस्थितियों का सामना करने का सामर्थ्य और चुनौतियों का जवाब देने की दक्षता रखने की जरूरत है।

उन्होंने कहा, “सदस्य देशों के बीच सहयोग, परस्पर सम्मान सार्वभौमिक सम्मानता, क्षेत्रीय अखंडता और सम्प्रभुता का सम्मान तथा वास्तविक भागीदारी पर आधारित होना चाहिये न की एकतरफा एजेंडा पर।”

श्री जयशंकर ने कहा कि केवल खासकर व्यापार और आवाजाही की मार्ग के लिये विश्व की कुछ अच्छी परिपाटियों को अपना लेने से एससीओ की प्रगति नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण और पुनर्संतुलन आज की हकीकत है और इसे आगे बढ़ाना इस मंच के सदस्यों की जिम्मेदारी बनती है।

उन्होंने कहा कि औद्योगिक क्षेत्र में परस्पर सहयोग से प्रतिस्पर्धा क्षमता बढ़ाई जा सकती है और श्रम बाजार का विस्तार हो सकता है। उन्होंने सूक्ष्म लघु, एवं मंझोले उद्यमों (एमएसएमई) साझा संपर्क सुविधाओं, पर्यावरण संरक्षण, जलवायु संरक्षण जैसे मुद्दों पर सहयोग बढाए जाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि इस समय दुनिया बहुध्रुवीय हो रही है इसके साथ वैश्विकरण भी बढ़ रहा है जिससे व्यापार, निवेश, संपर्क ऊर्जा के प्रवाह और अन्य क्षेत्रों में सहयोग के अवसर भी बढ़ रहे हैं।

विदेश मंत्री ने कहा कि यदि हम इस दिशा में काम करें तो इससे क्षेत्र का बड़ा भला होगा, लेकिन यदि हम केवल व्यापार और पारगमन के क्षेत्र में दुनिया की कुछ अच्छी परिपाटियों को अपनी सुविधा के अनुसार चुनते हैं तो उससे प्रगति नहीं होने वाली।

श्री जयशंकर ने कहा कि भारत ने अपनी और से विश्व स्तर की कई पहल की हैं और राष्ट्रीय स्तर पर भी कई नये प्रयास कर रहे हैं जो एससीओ के देशों के लिये महत्वपूर्ण हैं। इसी सन्दर्भ में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन, आपदा प्रतिरोधी मज़बूत अवसंरचना के विकास के लिये गठबंधन, डिजिटल सार्वजनिक संरचना और महिलाओं के नेतृत्व में विकास को प्रोत्साहन जैसी भारत की कुछ पहलों का उल्लेख किया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विकम संगठनों की सञ्चालन व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता पर भी बल दिया।

विदेश मंत्री ने कहा, “संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में स्थायी और अस्थायी श्रेणी की सदस्यता दोनों के सन्दर्भ में व्यापक सुधार आवश्यक है।” उन्होंने कहा कि एससीओ को इन सुधारों की बात उठाने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिये न की ऐसे महत्वपूर्ण मामले में पीछे रहना चाहिये।

श्री जयशंकर का यह व्यक्तव्य इस सन्दर्भ में महत्वपूर्ण है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों ने भारत को परिषद् का स्थायी सदस्य बनाये जाने के प्रस्ताव का खुल कर समर्थन किया है, जबकि वीटो का अधिकार रखने वाले एक मात्रा एशिआई सदस्य चीन का इस विषय पर रवैया स्पष्ट नहीं है।

मनोहर. समीक्षा, उप्रेती

वार्ता

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