जौनपुर 22 नवम्बर (वार्ता)उत्तर प्रदेश में जौनपुर के सरांवा गांव में स्थित शहीद लाल बहादुर गुप्त स्मारक पर आज हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकंन आर्मी व् लक्ष्मीबाई ब्रिगेड के कार्यकर्ताओं ने आज़ादी की महानायिका एवं वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की प्रिय सहेली झलकारी बाई का 189 वां जन्मदिन मनाया ।
इस अवसर पर कार्यकर्ताओं ने शहीद स्मारक पर मोमबत्ती व् अगरबत्ती जला कर उन्हें अपनी श्रंद्धाजलि दी । शहीद स्मारक पर उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए लक्ष्मीबाई ब्रिगेड की अध्यक्ष मंजीत कौर ने कहा कि भारत की स्वाधीनता के लिए 1857 में हुए संग्राम में पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी कन्धे से कन्धा मिलाकर बराबर का सहयोग दिया था। कहीं-कहीं तो उनकी वीरता को देखकर अंग्रेज अधिकारी एवं पुलिसकर्मी आश्चर्यचकित रह जाते थे। ऐसी ही एक वीरांगना थी झलकारी बाई, जिसने अपने वीरोचित कार्यों से पुरुषों को भी पीछे छोड़ दिया।
झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बर, 1830 को ग्राम भोजला जिला झांसी उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता मूलचन्द्र सेना में काम करते थे। इस कारण घर के वातावरण में शौर्य और देशभक्ति की भावना का प्रभाव था। घर में प्रायः सेना द्वारा लड़े गये युद्ध, सैन्य व्यूह और विजयों की चर्चा होती थी। उन्होंने कहा कि मूलचन्द्र जी ने बचपन से ही झलकारी को अस्त्र-शस्त्रों का संचालन सिखाया। इसके साथ ही पेड़ों पर चढ़ने, तैरने और ऊँचाई से छलांग लगाने जैसे कार्यों में भी झलकारी पारंगत हो गयी।
एक बार झलकारी बाई जंगल से लकड़ी काट कर ला रही थी, तो उसका सामना एक खूँखार चीते से हो गया। झलकारी ने कटार के एक वार से चीते का काम तमाम कर दिया और उसकी लाश कन्धे पर लादकर ले आयी।जब झलकारी युवा हुई, तो उसका विवाह झाँसी की सेना में तोपची पूरन कोरी से हुआ। जब झलकारी रानी लक्ष्मीबाई से आशीर्वाद लेने गयी, तो उन्होंने उसके शस्त्राभ्यास को देखकर उसे दुर्गा दल में भरती कर लिया। जब 1857 में अंग्रेजी सेना झांसी पर अधिकार करने के लिए किले में घुसने का प्रयास कर रही थी, तो झलकारी बाई शीघ्रता से रानी के महल में पहुँची और उन्हें दत्तक पुत्र सहित सुरक्षित किले से बाहर जाने में सहायता दी।
सं विनोद
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