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वास्तुकला का अद्वितीय नमूना है “ जराय का मठ ”

वास्तुकला का अद्वितीय नमूना है “ जराय का मठ ”

झांसी 17 फरवरी (वार्ता) उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित झांसी जिला यूं तो अपनी महान ऐतिहासिक परम्परा के लिए जाना जाता है लेकिन यह जिला अपने आंचल में वास्तुकला के भी कुछ शानदार नमूनों को भी छिपाये है जिनमे में से एक है बरूआसागर क्षेत्र में स्थित प्रतिहारकालीन मंदिर “ जराय का मठ ”।

प्रतिहारकालीन वास्तुकला के अद्वितीय नमूनों में शुमार यह मंदिर किसने बनवाया यह तो सही सही तौर पर बताया नहीं जा सकता है लेकिन इतिहासकारों का मानना है कि यह मंदिर करीब 1100 साल पहले नवीं शताब्दी में बनवाया गया। महाभारत काल की यक्षिणी “ जरा ” के नाम पर प्रतिहार काल में यह मंदिर बनवाया गया।

झांसी-मऊरानीपुर मार्ग पर स्थित पंचरथ शैली में बना यह मंदिर खजुराहो के मंदिरों के समान ही बनवाया गया है। पंचरथ शैली में एक ही स्थान पर पांच मंदिरों को बनाया जाता है जिसमें मध्य में स्थित किसी देवी देवता के मुख्य मंदिर के उत्तर-पूर्व, उत्तर-पश्चिम, दक्षिण-पश्चिम और दक्षिण-पूर्व में चार मंदिरों का निर्माण कराया जाता है।

प्रतिहारकाल मे अधिकतर मंदिर इसी पंचरथ शैली में बनाये गये और जराय का मठ भी इसी परम्परा का अनुसरण करता नजर आता है। चार दिवारी में एक टीले पर स्थित इस मठ के मुख्य मंदिर के आगे के दो लघु मंदिर कालक्रम में नष्ट हो गये लेकिन पीछे के दो लघु मंदिर आज भी मौजूद हैं जो इस मंदिर के पंचरथ शैली में बने होने के प्रमाण हैं। लघु मंदिरों मे कोई प्रतिमा नहीं है लेकिन बाहरी हिस्से पर बनी नाग बल्लियों का सुंदर और कलात्मक प्रदर्शन आकर्षण का मुख्य केंद्र है।

मंदिर मे देवमूर्तियों के अंकन के कारण माना जाता है कि यह मंदिर शक्ति की उपासना का मुख्य केंद्र रहा होगा। मंदिर का अलंकरण और शिल्प देखते ही बनता है। मंदिर के बाहरी भाग मे ऐसी कई मूर्तियां हैं जो खजुराहो की काम कला का प्रदर्शन करती नजर आती है। ऐसी छोटी छोटी मूर्तियां पूरे मठ में देखी जा सकती हैं। मंदिर के अंदर एक् गर्भगृह ,अंतराल और टूटा हुआ द्वार आज भी स्थित है।

सामान्यत: हिंदू मंदिरों के गर्भगृह वर्गाकार होते हैं लेकिन इसके विपरीत यहां का गर्भगृह आयताकार है जो विष्णु जी लेटी हुई अवस्था को दर्शाने के लिए बनाया जाता है। मुख्य मूर्ति के रूप में कभी इस मंदिर में मां अंबे की मूर्ति हुआ करती थी हालांकि रखरखाव के अभाव में आज पूरी तरह से नष्ट हो चुकी है।

कभी इस मंदिर के शिखर में 15 मंजिलें होती थी लेकिन समय के साथ और उचित रखरखाव के अभाव में एक तिहाई शिखर नष्ट हो चुका है फिर भी शिखर की पांच मंजिले आज भी देखी जा सकती हैं। शिखर का पुननिर्माण सत्रहवीं शताब्दी में किया गया उस समय बुंदेला शासकों द्वारा आसपास के और भी मंदिरों की मरम्मत करायी गयी।

मंदिर के प्रवेश द्वार का अलंकरण शानदार है, छोटे से दरवाजे पर ही लाजवाब नक्काशी की गयी है । दरवाजा पंचशाखाओं गंधर्व शाखा, मिथुन शाखा, स्तम्भ शाखा, देव शाखा और पत्र लता शाखा मे बना है। द्वार स्तम्भ के निचले हिस्से में मकरवाहिनी गंगा और कूर्मवाहिनी यमुना को अपने वाहनों सहित प्रदर्शित किया गया है। साथ ही नारी द्वारपालो की मूर्तियां कारीगरी का बेहतरीन नमूना है। यह दोनों ही प्रतिमाएं काफी बड़ी हैं जिनके रूप मे सौंदर्य के साथ साथ समानुपातिक कला का शानदार प्रदर्शन है।

विभिन्न भागों में विभक्त मंदिर में अंदर लक्ष्मी जी की प्रतिमा पूरी तरह खंडित है, जबकि बाहरी भागों में चारों ओर मूर्तियां हैं आठ दिग्पाल इन्द्र, अग्नि, वायु, वरुण, कुबेर, ईशान, यम और नैऋति। भगवान विष्णु, शिव। रथिकाओं में गजलक्ष्मी, महेश्वरी, सरस्वती, चक्रेश्वरी, पार्वती एवं दुर्गा शस्त्रों से सुसज्जित हैं। महिषासुर मर्दिनी, चतुर्भुजी देवी, हिरण्याकश्यप, नरसिंह की मूर्तियां भी हैं।

दरवाजे के ऊपर द्वार सरदल है जो चार पंक्तियों में विभक्त है। सबसे ऊपर की पंक्ति में पांच देवियों को नृत्य की मुद्रा में दिखाया गया है , इनमें से एक देवी सरस्वती जैसी प्रतीत होती हैं। दूसरी में आठ द्वार पाल जिन्हें दिग्पाल भी कहा जाता है को दिखाया गया है। इसी पंक्ति मे दो वराहों को एक दूसरे की ओर मुंह किये दर्शाया गया है जबकि इसके नीचे की पंक्ति में ब्रहमा,विष्णु और महेश को उकेरा गया है। चौथी और आखिरी पंक्ति में छह देवियों को दर्शाया गया है जिनमें मां लक्ष्मी और माहेश्वरी शामिल हैं।

मंदिर की तीनों दिशाओं उत्तर,पश्चिम और दक्षिणावर्ती भागों पर जालियों की कारीगरी देखते ही बनती है। इन जालियों की पच्चीकारी में ही बने देव प्रकोष्ठों में हिंदू देवी देवताओं को बैठे हुए दिखाया गया है।

यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित और राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया गया है। इसे किसी तरह का नुकसान पहुंचाने , आसपास निर्माण या खनन करने पर दो साल के कारावास या एक लाख रूपये का जुर्माना या दोनों ही सजाओं का प्रावधान है। इस तरह के संरक्षण के बाद अब यह मंदिर काफी अच्छी स्थिति में है।

वार्ता

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