.. पुण्यतिथि 29 जुलाई के अवसर पर ..
मुंबई, 28 जुलाई (वार्ता) बॉलीवुड में अपने जबरदस्त कॉमिक अभिनय और मजाकिया भाव-भंगिमाओं से सिनेप्रेमियों को गुदगुदाने वाले जॉनी वाकर को बतौर अभिनेता अपने सपनों को साकार करने के लिये बस कंडक्टर की नौकरी भी करनी पड़ी थी।
मध्यप्रदेश के इंदौर शहर मे एक मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार में जन्में बदरूदीन जमालुदीन काजी उर्फ जॉनी वाकर बचपन से ही अभिनेता बनने का ख्वाब देखा करते थे। इंदौर में वह अक्सर लोगों की नकल उतार कर सबको हंसाया करते थे। उनके पिता जमालुदीन काजी एक कपड़ा मिल में मजदूर थे। कपड़ा मिल बंद हुई तो पूरा परिवार मुंबई आ गया। पिता के लिए अपने 15 सदस्यीय परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल हो रहा था। मुंबई में उनके पिता के एक जानने वाले पुलिस निरीक्षक थे जिनकी सिफारिश पर बदरूदीन को बंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट (बेस्ट) बसों में एक कंडक्टर की नौकरी मिल गयी। बदरूदीन का बस कंडकटरी करने का अंदाज काफी निराला था। वह अपने विशेष अंदाज मे आवाज लगाते माहिम वाले पेसेन्जर उतरने को रेडी हो जाओ लेडिज लोग पहले।
बदरूदीन इस नौकरी को पाकर काफी खुश हो गये क्योंकि उन्हे मुफ्त में ही पूरी मुंबई घूमने को मौका मिल जाया करता था। इसके साथ ही उन्हें मुंबई के स्टूडियो में भी जाने का मौका मिल जाया करता था। बदरूदीन यात्रियों का टिकट काटने के अलावा अजीबोगरीब किस्से-कहानियां सुनाकर यात्रियों का मन बहलाते रहते। इसके पीछे उनका मकसद यही था कि कोई उनकी अदाकारी को पहचान ले।
इसी दौरान बदरूदीन की मुलाकात फिल्म जगत के मशहूर खलनायक एन.ए.अंसारी और के.आसिफ के सचिव रफीक से हुयी। लगभग सात-आठ महीने के संघर्ष के बाद बदरूदीन को फिल्म अखिरी पैमाने में एक छोटा सा रोल मिला । इस फिल्म में उन्हें पारश्रमिक के तौर पर 80 रुपये मिले, जबकि बतौर बस कंडकटर उन्हें पूरे महीने के मात्र 26 रुपये ही मिला करते थे।
एक दिन उस बस में अभिनेता बलराज साहनी भी सफर कर रहे थे। वह बदरूदीन के हास्य व्यंगय के अंदाज से काफी प्रभावित हुये और उन्होंने बदरूदीन को गुरूदत्त से मिलने की सलाह दी। गुरूदत्त उन दिनों बाजी नामक एक फिल्म बना रहे थे।गुरूदत्त ने बदरूदीन की प्रतिभा से खुश होकर अपनी फिल्म बाजी में काम करने का अवसर दिया।
वर्ष 1951 में प्रदर्शित फिल्म बाजी के बाद बदरूदीन बतौर हास्य कलाकार अपनी पहचान बनाने में सफल हो गये। फिल्म बाजी के बाद वह गुरूदत्त के पसंदीदा अभिनेता बन गये। उसके बाद जॉनी वाकर ने गुरूदत्त की कई फिल्मों मे काम किया जिनमें आरपार, मिस्टर एंड मिसेज 55, प्यासा, चौदहवी का चांद, कागज के फूल जैसी सुपर हिट फिल्में शामिल है।
नवकेतन के बैनर तले बनी फिल्म टैक्सी ड्राइवर में बदरूदीन के चरित्र का नाम मस्ताना था। कई दोस्तों ने उन्हें यह सलाह दी कि वह अपना फिल्मी नाम मस्ताना ही रखे लेकिन बदरूदीन को यह नाम पसंद नही आया और उन्होने उस जमाने की मशहूर शराब जॉनी वाकर के नाम पर अपना नाम जॉनी वाकर रख लिया। फिल्म की सफलता के बाद गुरूदत्त उनसे काफी खुश हुये और उन्हें एक कार भेंट की। गुरूदत्त के फिल्मों के अलावा जॉनी वाकर ने टैक्सी ड्राइवर, देवदास, नया अंदाज, चोरी चोरी, मधुमति, मुगले आजम, मेरे महबूब, बहू बेगम, मेरे हजूर जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में अपने हास्य अभिनय से दर्शको का भरपूर मनोरंजन किया।
जॉनी वाकर की प्रसिद्धि का एक विशेष कारण यह था कि उनकी हर फिल्म में एक या दो गीत उनपर अवश्य फिल्माये जाते थे, जो काफी लोकप्रिय भी हुआ करते थे। वर्ष 1956 मे प्रदर्शित गुरूदत्त की फिल्म सी.आई.डी में उनपर फिल्माया गाना ‘ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां,जरा हट के जरा बच के ये है बंबई मेरी जान’ ने पूरे देश में धूम मचा दी। इसके बाद हर फिल्म में जॉनी वाकर पर गीत अवश्य फिल्मायें जाते रहे, यहां तक कि फाइनेंसर और डिस्ट्रीब्यूटर की यह शर्त रहती कि फिल्म मे जॉनी वाकर पर एक गाना अवश्य होना चाहिये।
फिल्म नया दौर में जॉनी वाकर पर फिल्माया गाना मै बंबई का बाबू या फिर मधुमति का गाना जंगल में मोर नाचा किसने देखा उन दिनों काफी मशहूर हुआ। गुरूदत्त तो विशेष रूप से जॉनी वाकर के गानों के लिये जमीन तैयार करते थे। फिल्म मिस्टर एंड मिसेज 55 का गाना जाने कहां मेरा जिगर गया जी, या फिल्म प्यासा का गाना सर जो तेरा चकराये काफी हिट हुआ। इसके अलावे चौदहवी का चांद का गाना मेरा यार बना है दुल्हा काफी पसंद किया गया।
जॉनी वाकर पर फिल्माये अधिकतर गानों को मोहम्मद रफी ने अपनी आवाज दी है लेकिन फिल्म बात एक रात की में उन पर फिल्माया गाना किसने चिलमन से मारा नजारा मुझे में मन्ना डे ने अपनी आवाज दी। जॉनी वाकर ने लगभग दस-बारह फिल्मों में हीरो के रोल भी निभाये। उनके हीरो के तौर पर पहली फिल्म थी पैसा ये पैसा जिसमें उन्होंने तीन चरित्र निभाये। इसके बाद उनके नाम पर निर्माता वेद मोहन ने वर्ष 1967 मे फिल्म जॉनी वाकर का निर्माण किया।
वर्ष 1958 में में प्रदर्शित फिल्म मधुमति के लिये उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया। इसके अलावे वर्ष 1968 मे प्रदर्शित फिल्म शिकार के लिये जॉनी वाकर सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किये गये।70 के दशक मे जॉनी वाकर ने फिल्मों मे काम करना काफी कम कर दिया, क्योंकि उनका मानना था कि फिल्मों मे कामेडी का स्तर काफी गिर गया है। इसी दौरान ऋषिकेष मुखर्जी की फिल्म आनंद मे जॉनी वाकर ने एक छोटी सी भूमिका निभायी। इस फिल्म के एक दृश्य मे वह राजेश खन्ना को जीवन का एक ऐसा दर्शन कराते है कि दर्शक अचानक हंसते-हंसते संजीदा हो जाता है।
वर्ष 1986 मे अपने पुत्र को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने के लिये जॉनी वाकर ने फिल्म पहुंचे हुये लोग का निर्माण और निर्देशन भी किया, लेकिन बॉक्स आफिस पर यह फिल्म बुरी तरह से नकार दी गयी। इसके बाद जॉनी वाकर ने फिल्म निर्माण से तौबा कर ली। इस बीच उन्हें कई फिल्मों में अभिनय करने के प्रस्ताव मिले जिन्हें जॉनी वाकर ने इंकार कर दिया लेकिन गुलजार और कमल हसन के बहुत जोर देने पर वर्ष 1998 में प्रदर्शित फिल्म चाची 420 मे उन्होंने एक छोटा सा रोल निभाया जो दर्शको को काफी पसंद भी आया। जॉनी वाकर ने पांच दशक के लंबे सिने कैरियर मे लगभग 300 फिल्मो में काम किया।अपने विशिष्ट अंदाज और हाव-भाव से दर्शको का मनोरंजन करने वाले महान हास्य कलाकार जॉनी वाकर 29 जुलाई 2003 को इस दुनिया से रूखसत हो गये ।
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प्रेम सतीश
वार्ता