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कैफी ने कहा था अम्मा एक दिन बहुत बड़ा शायर बनकर दिखाउंगा

कैफी ने कहा था अम्मा एक दिन बहुत बड़ा शायर बनकर दिखाउंगा

.. पुण्यतिथि 10 मई के अवसर पर..

मुंबई 09 मई (वार्ता) हिंदी फिल्म जगत के मशहूर शायर और गीतकार कैफी आजमी की शेरो-शायरी की प्रतिभा बचपन के दिनो से ही दिखाई देने लगी थी।

उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ जिले के मिजवां गांव में 14 जनवरी 1919 को जन्मे सैयद अतहर हुसैन रिजवी उर्फ कैफी आजमी के पिता जमींदार थे। पिता हुसैन उन्हें उंची से उंची तालीम देना चाहते थे और इसी उद्वेश्य से उन्होंने उनका दाखिला लखनउ के प्रसिद्ध सेमिनरी ‘सुल्तान उल मदारिस’ में कराया था। कैफी आजमी के अंदर का शायर बचपन से जिंदा था। महज 11 वर्ष की उम्र से हीं कैफी आजमी ने मुशायरों मे हिस्सा लेना शुरू कर दिया था जहां उन्हें काफी दाद भी मिला करती थी लेकिन बहुत से लोग जिनमें उनके पिता भी शामिल थे ऐसा सोचा करते थे कि कैफी आजमी मुशायरों के दौरान खुद की नहीं बल्कि अपने बड़े भाई की गजलों को सुनाया करते हैं। एक बार पुत्र की परीक्षा लेने के लिये पिता ने उन्हें गाने की एक पंक्ति दी और उसपर उन्हें गजल लिखने को कहा। कैफी आजमी ने इसे एक चुनौती के रूप मे स्वीकार किया और उस पंक्ति पर एक गजल की रचना की द्यउनकी यह गजल उन दिनों काफी लोकप्रिय हुआ और बाद मे सप्रसिद्ध पार्श्व गायिका बेगम अख्तर ने उसे अपना स्वर दिया। गजल के बोल कुछ इसतरह से थे ..इतना तो जिंदगी में किसी की खलल पड़े ..ना हंसने से हो सुकून ना रोने से कल पड़े।

कैफी आजमी महफिलों में शिरकत करते वक्त नज्मों को बड़े प्यार से सुनाया करते थे। इसके लिये उन्हें कई बार डांट भी सुननी पड़ती थी जिसके बाद वह रोते हुये अपनी वालिदा के पास जाते और कहते,“अम्मा देखना एक दिन मै बहुत बड़ा शायर बनकर दिखाउंगा।” कैफी आजमी कभी भी उच्च शिक्षा की ख्वाहिश नही रखते थे। सेमिनरी मे अपनी शिक्षा यात्रा के दौरान वहां की कुव्यवस्था को देखकर कैफी आजमी ने छात्र संघ का निर्माण किया और अपनी मांग की पूर्ति नही होने पर छात्रो से हड़ताल पर जाने की अपील की। कैफी आजमी की अपील पर छात्र हड़ताल पर चले गये और इस दौरान उनका धरना करीब डेढ़ साल तक चला। लेकिन इस हड़ताल के कारण कैफी आजमी सेमिनरी प्रशासन के कोपभाजन बने और धरने की समाप्ति के बाद उन्हें सेमिनरी से निकाल दिया गया।

इस हड़ताल से कैफी आजमी को फायदा भी पहुंचा और इस दौरान उस समय के कुछ प्रगतिशील लेखको की नजर उनपर पड़ी जो उनके नेतृत्व को देखकर काफी प्रभावित हुये थे। कैफी आजमी के अंदर उन्हें एक उभरता हुआ कवि दिखाई दिया और उन्होंने उनको प्रोत्साहित करने एवं हर संभव सहायता देने की पेशकश की। इसके बाद एक छात्र नेता अतहर हुसैन के अंदर कवि कैफी आजमी ने जन्म ले लिया। वर्ष 1942 मे कैफी आजमी उर्दू और फारसी की उच्च शिक्षा के लिये लखनउ और इलाहाबाद भेजे गये लेकिन कैफी ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की सदस्यता ग्रहण करके पार्टी कार्यकर्ता के रूप मे कार्य करना शुरू कर दिया और फिर भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हो गये।

इस बीच मुशायरो मे कैफी आजमी की शिरकत जारी रही। इसी दौरान वर्ष 1947 मे एक मुशायरे मे भाग लेने के लिये वह हैदराबाद पहुंचे जहां उनकी मुलाकात शौकत आजमी से हुयी और उनकी यह मुलाकात जल्दी ही शादी मे तब्दील हो गयी। आजादी के बाद उनके पिता और भाई पाकिस्तान चले गये लेकिन कैफी आजमी ने हिंदुस्तान मे ही रहने का निर्णय लिया। शादी के बाद बढ़ते खर्चों को देखकर कैफी आजमी ने एक उर्दू अखबार के लिये लिखना शुरू कर दिया जहां से उन्हें 150 रूपये माहवार वेतन मिला करता था। उनकी पहली नज्म ‘सरफराज’ लखनऊ में छपी। शादी के बाद उनके घर का खर्च बहुत मुश्किल से चल पाता था। उन्होंने एक अन्य रोजाना अखबार मे हास्य व्यंग्य भी लिखना शुरू किया। इसके बाद अपने घर के बढ़ते खर्चों को देख कैफी आजमी ने फिल्मी गीत लिखने का निश्चय किया।

कैफी आजमी ने सबसे पहले शाहिद लतीफ की फिल्म ‘बुजदिल’ के लिये दो गीत लिखे जिसके एवज मे उन्हें 1000 रूपये मिले। इसके बाद वर्ष 1959 में प्रदर्शित फिल्म फिल्म कागज के फूल के लिये कैफी आजमी ने ..वक्त ने किया क्या हसीं सितम तुम रहे ना तुम हम रहे ना हम.. जैसा सदाबहार गीत लिखा। वर्ष 1965 में प्रदर्शित फिल्म ‘हकीकत’ में उनके रचित गीत ..कर चले हम फिदा जानों तन साथियो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों ..की कामयाबी के बाद कैफी आजमी सफलता के शिखर पर जा पहुंचे।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी कैफी आजमी ने फिल्म गर्म हवा की कहानी संवाद और स्क्रीन प्ले भी लिखे जिनके लिये उन्हे फिल्म फेयर के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। फिल्म हीर- रांझा के डॉयलाग के साथ-साथ कैफी आजमी ने श्याम बेनेगल की फिल्म ‘मंथन’ की पटकथा भी लिखी। लगभग 75 वर्ष की आयु के बाद कैफी आजमी ने अपने गांव मिजवां मे ही रहने का निर्णय किया। अपने रचित गीतों से श्रोताओं को भावविभोर करने वाले महान शायर और गीतकार कैफी आजमी 10 मई 2002 को इस दुनिया से रुखसत हो गये।

वार्ता

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