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लोकरुचि


कल्पवास करने से मन, वचन और कर्म होते हैं शुद्ध

कल्पवास करने से मन, वचन और कर्म होते हैं शुद्ध

प्रयागराज,19 जनवरी (वार्ता) मोक्षदायिनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती के विस्तीर्ण रेती पर बसे तंबुओं के आध्यातमिक नगरी “माघ मेला” में कल्पवासियों का कहना है कि कल्पवास करने से कर्म, वचन और मन तीनों की शुद्धता के साथ शरीर स्वस्थ और जीवन अनुशासित बनता है।

उनका कहना है कि कल्पवास करना किसी कठित तपस्या से कम नहीं होता। कल्पवासी यहां किसी सुविधा के उद्देश्य से नहीं आता। उसका उद्देश्य होता है कि माघ मास में जिस त्रिवेणी में देवता भी अदृश्य रूप से स्नान करने पहुंचते हैं उसी गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन जल में पुण्य की डुबकी लगाते हुए तट पर तपस्या करें। एक माह तक यहां रहकर जो आध्यात्मिक शक्ति मिलती है वह ग्यारह महीने तक ऊर्जावान रखती है।

कल्पवासियों का मानना है कि कल्पवास करने वालों की कल्पवास की प्रतीक्षा में जीवन की अभिलाषा बढ़ जाती है। मन, विचार पवित्र हो जाता है। कल्पवास करने से कई पीढियां भी तर जाती हैं। त्रिवेणी के तट पर संतों की सेवा करने का, कथा, भागवत और साधु-संतों की वाणसी से वैदिक ऋचाओं को सुनकर मन में पवित्रता का बोध होता है।

त्रिवेणी तट पर खुले आसमान के नीचे एकांत में जर्जर काया लेकिन चेहरे पर अद्भुत कांति लिए बुजुर्ग ने बताया कि उन्हें खुद नहीं पता कि उनका नाम क्या है, वह कहां के रहने वाले हैं। उन्होने बताया कि जो शुकुन प्रयाग में त्रिवेणी में स्नान के बाद पूजा-पाठ का मिलता है वह अन्यत्र संभव नहीं। यहां पहुंचने वाला बहुत भाग्यशाली होता है। जिसका प्रारब्ध

होता है वहीं यहां की रेती को नमन, संगम स्नान का सुख प्राप्त करता है।

दिनेश प्रदीप

जारी वार्ता

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