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कल्पवासियों को स्नान के लिये नहीं मिल रहा स्वच्छ गंगा का पानी

कल्पवासियों को स्नान के लिये नहीं मिल रहा स्वच्छ गंगा का पानी

इलाहाबाद, 06 जनवरी (वार्ता) त्याग, तपस्या और संयम का प्रतीक माघ मेले में भले ही तमाम सार्वजनिक सुविधाएं पूरी करा दी गई हों लेकिन कल्पवासी और अन्य श्रद्धालु दूषित गंगा जल में स्नान करने को मजबूर हैं।

कल्पवासियों का कहना है कि प्रशासन की ओर से दावे तो बहुत किए गए परंतु उन्हें स्नान के लिए शुद्ध जल नहीं मिल पा रहा है। आस्था का केंद्रबिंदु मोक्षदायिनी पापनाशिनी गंगा की हालत बद से बदतर है। कल्पवासियों, श्रद्धालुओं और संत-महात्माओं ने माघ मास का पहला स्नान दूषित गंगा के पानी में ही किया।

मध्य प्रदेश के हटा दमोह के प्रकाश चन्द्र अग्रवाल और उनकी पत्नी श्रीमती सुनीता का कहना है कि वे पिछले 15 वर्ष से हर साल माघ में यहां एक सप्ताह के लिए एकांतवास में ध्यान, पूजा,पाठ के लिए आते रहे हैं। इस वर्ष माघ मेले मेे पूरा एक मास का कल्पवास करने के लिए आये हैं।

उन्होंने बताया कि हमारी आस्था प्रबल है। हम गंगाजल का स्पर्श कर ही धन्य हो जाते हैं। मोक्षदायिनी पापनाशिनी गंगा में एक डुबकी से ही सारे पाप धुल जाते हैं। शिक्षक श्री अग्रवाल पिछले अक्टूबर में अध्यापन कार्य से रिटायर हुये है।



श्री अग्रवाल ने बताया कि दूसरों का पाप धोते और मोक्ष देते गंगा आज खुद मैली हो गयी। इसको मोक्ष देने वाला (गंगा सफाई) कोई नहीं है। श्री अग्रवाल ने दुखी मन से बताया कि यहां हर माघ में पडने वाले छह स्नान पर्वों पर लाखों की संख्या में कल्पवासी और करोडों की संख्या में श्रद्धालु और स्नार्थी गंगा में आस्था की डुबकी लगाते हैं। गंगा मैली भले ही हो लेकिन वे उसमें डुबकी लगाना नहीं भूलते। गंगा कब साफ होगी शायद कोई नहीं जानता। गंगा तभी साफ हाे सकती है जब इसके तट पर लगने वाले टेनरीज, उद्योगों को अन्यत्र कहीं स्थापित किया जाये।

                          श्री अग्रवाल ने बताया कि लोगों को मोक्ष दिलाने वाली गंगा का पानी प्रदूषण के कारण काला पड़ रहा है। गंगा तट पर रहने वाले लोगों द्वारा नहाने, कपड़े धोने, टैनरीज, रसायन संयंत्र, कपड़ा मिलों, डिस्टिलरी, बूचड़खानों और अस्पतालों का अपशिष्ट के कारण गंगा में प्रदूषण बढ रहा है। औद्योगिक अपशिष्टों के कारण गंगा प्रदूषण चिन्तनीय है।

शिक्षक श्री अग्रवाल का कहना है कि गंगाजल न आचमन योग्य है, न/न स्नान के योग्य और न ही सिंचाई के योग्य रहा है। गंगा की पराभव का अर्थ होगा, हमारी समूची सभ्यता का अन्त। गंगा के जल में आर्सेनिक, फ्लोराइड एवं क्रोमियम जैसे जहरीले तत्व बड़ी मात्रा में मिलने लगे हैं।

श्रीमती सुनीता का कहना है तप, त्याग और संयम का पर्याय माघमेला मेला में कल्पवास करना किसी तपस्या से कम नहीं। पुराणों के अनुसार माघ मेला में कल्पवास करते हुए तीनो समय स्नान करना जहां कडी तपस्या है वहीं संत-महात्मा का धर्मिक प्रवचन सुनना और बचे हुए समय में अपने तंबुओं में भगवान को सुमिरना अदभुद सुखद अनुभूति प्रदान करता है। यह अनुभूति केवल महसूस की जा सकती है। इसकी व्याख्या नहीं की जा सकती।

उन्होंने कहा कि मेले में स्नानार्थी एक-दो दिन में स्नान कर वापस लौट जाते हैं। रह जातें हैं केवल कल्पवासी जिन्हें गंगा में स्नान करना होता है। गंगा के दूषित जल को देखकर मन व्यथित होता है। यहां हम एक माह तक रहकर भौतिक सुख का त्याग कर आलौकिक सुख की प्रप्ति के लिए आते हैं, यहां गंदगी देखने नहीं।


                      श्रीमती सुनीता ने आध्यात्मिक लहजे में बताया कि तीर्थराज प्रयाग में माघ मास में देवता भी स्नान करने आते हैं। तो फिर गंगा कैसे मैली हो सकती है। दूषित जरूर हैं। इस बार गंगा में पानी जरूर कम है। जगह जगह बालू के टीले नजर आ रहे हैं। दूषित होने के कारण या किसी अन्य कारण से पिछले पांच दिनों कई मरी हुई मछलियों को तैरते देख मन दु:खी हो जाता है। क्या यह वहीं अविरल और निरमल गंगा है जिसे कहा जाता है “ गंगा तेरा पानी अमृत”।

इलाहाबाद के पड़ोसी जिला प्रतापगढ़ के बीरापुर निवासी किसान राम सनेही और उनकी पत्नी रघुराजी देवी ने बताया कि वह गांव में कुछ साल पहले भागवत सुनने गये थे। उसमें माघ में संगम तट पर कल्पवास की महिमा का वर्णन सुनकर वह प्रभावित हुए। पिछले पांच साल से यहां हर साल कल्पवास करने आते हैं।

उन्होंने बताया कि कल्पवास की महिमा तारणहार है जिससे प्रेरित होकर यहां हजारों की संख्या में कल्पवासी कल्पवास करने आते हैं। उन्होंने बताया कि गंगा का पानी बहुत ही गन्दा है। गंगा का पानी गन्दा है जानने के बावजूद गंगा प्रदूषण पर उनकी आस्था कहीं भारी है जो सुबह, दोपहर और शाम को गंगा में आस्था की डुबकी लगाकर अपने तंबू में भगवान का भजन करने में तल्लीन हैं।


                          गंगा के पानी को दूषित होने पर साधु-संतों ने नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि प्रशासन की ओर से बार-बार घोषणा के बाद भी पहले ही स्नान पर साफ जल नहीं मिला है।

दंडी संन्यासियों का कहना है कि गंगा की सफाई करने के नाम पर अरबों रूपये खर्च किये जा चुके हैं लेकिन उसकी स्वच्छता में कहीं कोई सुधार नहीं हुआ है। संत-महात्मा, कल्पवासी और श्रद्धालु गंगा की रेती पर आध्यात्मिक उन्नति के लिए आते हैं, लेकिन उनकी आस्था का केंद्रबिंदु मोक्षदायिनी पापनाशिनी गंगा की हालत बद से बदतर है। नालों का गंदा पानी सीधे गंगाजल में मिल रहा है।

ओंकार अखाडे के महामंडलेश्वर ब्रम्हर्षि आचार्य कुश मुनि स्वरूप ने गंगा की अविरलता को लेकर किये जा रहे सभी प्रयासों को अपर्याप्त बताया। उन्होंने कहा कि गंगा को स्वच्छ नहीं करके अरबों रूपये गंगा में प्रवाहित कर दिये गये।

श्री कुश मुनि ने बताया कि स्वामी ब्रह्माश्रम जी महराज के जन्मदिन पर आश्रम में पहुंचे मंडलायुक्त डा आशीष गोयल से दंडी सन्यासियों ने बताया कि गंगा का जल नहाने योग्य नहीं है। इलाहाबाद के गंदे नालों का पानी सीधे गंगा में छोडा जा रहा है। मंडलायुक्त ने स्वीकार किया कि इलाहाबाद में कुल 64 नाले हैं जिनमें 32 नाले ही टैप हो पाये हैं।

आचार्य कुशमुनि ने कहा कि गंगा का पानी न/न नहाने योग्य और न ही आचमन योग्य है। उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक मानते हैं कि गंगा के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं और अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीवों को समाप्त कर देते हैं। किन्तु प्रदूषण के चलते इन लाभदायक विषाणुओं की संख्या में भी काफी कमी आई है।

इस बीच, सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता मनोज कुमार सिंह ने दावा किया कि संगम में पर्याप्त मात्रा में गंगाजल है। गंगाजल की कोई कमी नहीं है। गंगा का जलस्तर पहले अधिक था लेकिन स्नान नहीं होने के कारण घट गया है। स्नान से पहले फिर बढ जायेगा। जलस्तर घटने के कारण हो सकता है किसी कारण से पानी मटमैला हो गया हो परंतु उसमें गंध नहीं है।

 

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