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कलवरी से अरिहंत तक,समुद्र में धाक है भारतीय पनडुब्बियों की

कलवरी से अरिहंत तक,समुद्र में धाक है भारतीय पनडुब्बियों की

नयी दि​ल्ली 19 नवम्बर (वार्ता ) कभी अंग्रेजों द्वारा 'नादान और अपरिपक्व' करार देकर पनडुब्बी की ताकत से वंचित रखी गयी भारतीय नौसेना ने लंबा सफर तय करते हुए अपनी अत्याधुनिक परमाणु पनडुब्बी बनाकर न केवल दुनिया के चुनिंदा देशों में जगह बनायी है बल्कि वह हिन्द प्रशांत क्षेत्र में एक बड़ी समुद्री ताकत बनकर उभरी है।
पचास साल पहले 08 दिसम्बर 1967 को रूस से खरीदी गयी पहली पनडुब्बी आईएनएस कलवरी के साथ देश की विशाल समुद्री सीमाओं की निगरानी का नया अध्याय शुरू करने वाली नौसेना आज अत्याधुनिक पनडुब्बियों से लैस है और पनडुब्बी शाखा के गौरवमयी इतिहास की स्वर्ण जयंती मना रही है। यह भी संयोग ही है कि लगभग तीन दशक की सेवा के बाद 1996 में विदा हुई देश की पहली पनडुब्बी आईएनएस कलवरी इसी साल नये अवतार में एक बार ​फिर नौसेना बेड़े में शामिल हो रही है और समुद्र की गहराइयों में भारत का परचम लहराने के लिए तैयार है। इससे यह बात पूरी तरह चरितार्थ हो जाती है कि पनडुब्बियों को इतिहास से मिटाया नहीं जा सकता , क्योंकि उनके नाम अनंतकाल तक चलते रहते हैं।
अभी नौसेना बेड़े में अरिहंत जैसी देश में बनी अत्याधुनिक परमाणु पनडुब्बी तथा रूस से ली गयी आईएनएस चक्र के अलावा 13 परंपरागत पनडुब्बियां शामिल हैं। फ्रांस के सहयोग से स्कोर्पिन श्रेणी की उन्नत प्रौद्योगिकी और हथियार प्रणालियों से लैस छह पनडुब्बियां देश में ही बनायी जा रही हैं।
नौसेना को पनडुब्बी की ताकत हासिल करने के लिए शुरूआती दिनों में बड़ी जद्दोजहद करनी पड़ी थी। दरअसल 1947 में देश तो आजाद हो गया लेकिन हमारी नौसेना की बागडोर 1958 तक अंग्रेज अफसरों के हाथ में ही थी। भारत की भू राजनीतिक स्थिति, लंबी समुद्री सीमा और बढते समुद्री व्यापार को देखते हुए जब नौसेना के भारतीय अधिकारियों ने अंग्रेज नौसेना प्रमुख से नौसेना को पनडुब्बियों से लैस करने का सुझाव दिया तो उन्होंने इसे यह कहते हुए इसे दरकिनार कर दिया कि भारतीय नौसेना अभी 'काफी युवा और अपरिपक्व' है। उनका कहना था कि पनडुब्बी संवेदनशील और खतरनाक ​हथियार प्रणाली है जिससे कभी भी हादसा हो सकता है और भारतीय नौसेना इस तरह की स्थितियों से निपटने में सक्षम नहीं है तथा किसी अनहोनी की स्थिति​ में उसका आत्मबल डगमगा जायेगा। उसके पास पनडुब्बी संचालन से जुड़ी ढांचागत सुविधाएं भी नहीं हैं।
संजीव टंडन
जारी वार्ता

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