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मुलायम के इटावा में आज भी शिद्दत से याद किये जाते हैं कांशीराम

मुलायम के इटावा में आज भी शिद्दत से याद किये जाते हैं कांशीराम

इटावा, 14 मार्च (वार्ता) दलितों की राजनीति की बदौलत देश के लोकप्रिय नेताओं में शुमार रहे बहुजन समाज पार्टी (बसपा) संस्थापक कांशीराम को आज भी समाजवादी पार्टी (सपा) संस्थापक मुलायम सिंह यादव के गृह जिले इटावा में पूरे आदर भाव के साथ याद किया जाता है।

इटावा के लोगो ने पहली बार कांशीराम को वर्ष 1991 के चुनाव मे जितवा कर संसद की दहलीज के पार पहुंचाया था। इसी वजह से कांशीराम को इटावा से खासा लगाव रहा है। यहां गौर करने वाली बात है कि इटावा लोकसभा क्षेत्र की अनारक्षित सीट पर हुये उस उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी कांशीराम समेत कुल 48 प्रत्याशी मैदान में थे। श्री कांशीराम को एक लाख 44 हजार 290 मत मिले जबकि उनके समकक्ष भाजपा प्रत्याशी लाल सिंह वर्मा को 22 हजार 466 मत कम मिले थे।

पंजाब के रोपड जिले में 15 मार्च, 1934 को जन्मे कांशीराम ने दलितों को एकजुट करके उन्हें राजनीतिक ताकत बनाने का अभियान 1970 के दशक में शुरू किया, कई वर्षों के कठिन परिश्रम और प्रभावशाली संगठन क्षमता का परिचय देते हुए उन्होंने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को सत्ता के गलियारों तक पहुँचा दिया।

विज्ञान स्नातक कांशीराम ने दलित राजनीति की शुरूआत बामसेफ नाम के अपने कर्मचारी संगठन के जरिए की, उन्होंने दलित कामगारों को एक सूत्र में बाँधा और उनके निर्विवाद रूप से उनके सबसे बडे नेता रहे। पुणे में डिफेंस प्रोडक्शन डिपार्टमेंट में साइंटिफिक असिस्टेंट के तौर पर काम कर चुके कांशीराम ने नौकरी छोडकर दलित राजनीति का बीडा उठाया।

बामसेफ के बाद उन्होंने दलित-शोषित मंच डीएस-फोर का गठन 1980 के दशक में किया और 1984 में बहुजन समाज पार्टी बनाकर चुनावी राजनीति में उतरे। 1990 के दशक तक आते-आते बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में निर्णायक भूमिका हासिल कर ली। कांशीराम ने हमेशा खुलकर कहा कि उनकी पार्टी सत्ता की राजनीति करती है और उसे किसी भी तरह से सत्ता में आना चाहिए क्योंकि यह दलितों के आत्मसम्मान और आत्मबल के लिए जरूरी है।

इटावा से 1991 मे सांसद बनने के बाद कांशीराम ने इलाहाबाद से वीपी सिंह के खिलाफ और अमेठी से राजीव गाॅधी के खिलाफ चुनाव लडा लेकिन नाकाम रहे। हालांकि उन्हे इटावा की अवाम ने वह ओहदा दिलाया जिसकी उन्हे लंबे समय से तलाश थी।

कांशीराम के पुराने साथी रहे खादिम अब्बास के पास कांशीराम से जुडी हुई ऐसी तस्वीरे है जो उनकी बसपा संस्थापक के प्रति प्रेम को उजागर करती है। एक तस्वीर में वह कांशीराम के नामाकंन के समय मौजूद है और दूसरी एक रोजअफतार समारोह मे जाने से पहले की है।

1991 के लोकसभा चुनाव में इटावा से बसपा सुप्रीमो कांशीराम को मुलायम की राजनीति ने 1,44,290 मत दिला कर जीत दिलाई थी जबकि मुलायम के खास रामसिंह शाक्य जनता पार्टी से प्रत्याशी थे और उन्हें मात्र 82624 मत मिले थे। मुलायम का कांशीराम के लिये यह आदर अचानक उभर कर सामने आया था जिसमें मुलायम ने अपने खास की पराजय करने में कोई गुरेज नहीं किया था।

इस हार के बाद रामसिंह शाक्य और मुलायम के बीच मनुमुटाव भी हुआ लेकिन मामला फायदे नुकसान के चलते शांत हो गया। कांशीराम की इस जीत के बाद उत्तर प्रदेश में मुलायम और कांशीराम की जो जुगलबंदी शुरू हुई इसका लाभ उत्तर प्रदेश में 1995 में मुलायम सिंह यादव की सरकार काबिज होकर मिला। दो जून 1995 को हुये गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा बसपा के बीच बढी तकरार इस कदर हावी हो गई कि दोनो दल एक दूसरे को खत्म करने पर अमादा भी हुए ।

वर्ष 2019 के संसदीय चुनाव मे सपा बसपा ने एक बार से गठजोड किया लेकिन गठजोड का फायदा बसपा को तो मिला लेकिन सपा को इसका कोई फायदा नही मिला उल्टे मायावती ने सपा के वोट बैंक छिटकने का आरोप लगा दिया जिससे तल्खी बरकरार है ।

कांशीराम जिस समय चुनाव लड रहे थे, मुलायम आये दिन अनुपम होटल फोन करके उनका हालचाल तो लेते ही रहते थे,साथ ही होटल मालिक को यह भी दिशा निर्देश देते रहते थे कि कांशीराम हमारे मेहमान है उनको किसी भी तरह की कोई कठिनाई नही होनी चाहिए।

अनुपम होटल के मालिक रहे बल्देव प्रसाद वर्मा बताते है कि चुनाव लडने के दौरान कांशीराम उनके अनुपम होटल मे करीब एक महीने रहे थे । वैसे अनुपम होटल के सभी 28 कमरो को एक महीने तक के लिये बुक करा लिया गया था लेकिन कांशीराम खुद कमरा नंबर छह मे रूकते थे और सात नंबर मे उनका सामान रखा रहता था । इसी होटल मे कांशीराम ने अपने चुनाव कार्यालय भी खोला था ।


वर्मा बताते है कि उस समय मोबाइल फोन की सुविधा नही हुआ करती थी और कांशीराम के लिये बडी संख्या मे फोन आया करते थे, इसी वजह से कांशीराम के लिये एक फोन लाइन उनके कमरे मे सीधी डलवा दी गई थी जिससे वो अपने लोगो के संपर्क मे लगातार बने रहते थे। मुलायम अमूमन फोन पर कहते थे कि कांशीराम हमारे मेहमान है उनको किसी भी प्रकार की तकलीफ नही होनी चाहिये लेकिन वो कभी होटल मे आये नही कभी। इतना जरूर है कि कांशीराम और मुलायम की फोन पर लंबी बातचीत जरूर होती थी ।

उन्होने बताया कि कांशीराम के चुनाव मे गाडियो के लिये डीजल आदि की व्यवस्था देखने वाले आर.के.चैधरी बाद मे उत्तर प्रदेश मे सपा बसपा की सरकार मे परिवहन मंत्री बने । कांशीराम को नीला रंग सबसे अधिक पंसद था इसी वजह से उन्होने अपनी कंटेसा गाडी को नीले रंग से ही पुतवा दिया था पूरे चुनाव प्रचार मे कांशीराम ने सिर्फ इसी गाडी से प्रचार किया ।

नब्बे के दशक मे उत्तर प्रदेश के अयोध्या मे बाबरी मसजिद के विध्वंस के बाद ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा उड गए जयश्री राम, बाकी राम झूठे राम असली राम कांशीराम ’ नारा लगा- ‘ इस नारे ने राजनीतिक बिसात मे खासा परिवर्तन किया । यह नारा इटावा के खादिम अब्बास ने दिया था। खादिम आज भले ही बसपा की मुख्यधारा मे ना हों लेकिन वे आज भी कांशीराम से खासे प्रभावित रहे हैं, इसीलिए बसपा से निकाले जाने के बाद आज तक किसी भी दल का हिस्सा नहीं बने हैं।

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