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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी


केजीएम में सार्वजनिक क्षेत्र का स्टेम सेल बैंक

केजीएम में सार्वजनिक क्षेत्र का स्टेम सेल बैंक

लखनऊ, 09 मई (वार्ता) उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में सार्वजनिक क्षेत्र का स्टेम सेल बैंक शीघ्र शुरू हो रहा है। विश्वविद्यालय के ट्रान्सफ्यूजन मेडिसिन विभाग की एक परियोजना के तहत स्टेम सेल बैंक थैलेसीमिया और सिकल सेल एनीमिया रोगियों के लिए स्टेम सेल थेरेपी में मदद करेगा। प्रस्ताव को राज्य चिकित्सा शिक्षा विभाग से मंजूरी मिलनी बाकी है। चिकित्सा शिक्षा विभाग के सूत्रों ने बताया कि बुनियादी ढांचे की लागत समेत इस प्रस्ताव पर करीब नौ करोड़ रूपये खर्च हो सकते हैं। स्टेम सेल सर्वव्यापी हैं और यह शरीर के अंदर किसी भी कोशिका के रूप में आकार ले सकती हैं। यदि स्टेम सेल को अग्नाशय में डाला जाता है,अग्नाशयी हो जाती हैं, जबकि जिगर में, वह लीवर कोशिका बन जाती है। ये ऐसी कोशिकाएं होती हैं, जिनमें शरीर के किसी भी अंग को कोशिका के रूप में विकसित करने की क्षमता होती है। इसके साथ ही ये अन्य किसी भी प्रकार की कोशिकाओं में बदल सकती है। वैज्ञानिकों के अनुसार इन कोशिकाओं को शरीर की किसी भी कोशिका की मरम्मत के लिए प्रयोग किया जा सकता है। यह मानव अस्थि मज्जा में पाया जाता है और नाभि गर्भनाल से प्राप्त किया जा सकता है जिसमें रक्त वाहिकाओं को शामिल किया जा सकता है। गर्भनाल गर्भ में बच्चे को माता से जोड़कर विकास के लिए आवश्यक पोषण प्रदान करती हैं।


भारत के अलावा अमेरिका, यूरोप, चीन, दक्षिण पूर्व एशिया में स्टेम सेल के चिकित्सीय उपयोग पर अनुसंधान चल रहा है। उत्तर प्रदेश में लखनऊ के संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसजीपीजीआईएमएस) और केजीएमयू दोनों विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज के लिए स्टेम सेल की क्षमता का पता लगाने की कोशिश कर रही हैं। एसजीपीजीआई ने अभी तक स्वयं को एलेजनिक (स्टेम कोशिकाओं को किसी व्यक्ति के अस्थि मज्जा से निकाला गया) का उपयोग करने पर रोक लगा दिया है, जबकि केजीएमयू ने नाभि गर्भ से निकाले स्टेम कोशिकाओं का इस्तेमाल किया है। केजीएमयू के आधान चिकित्सा विभाग के प्रमुख प्रोफेसर तूलिका चंद्र ने आज यहां संवाददाताओं को बताया, “ कई निजी क्षेत्र स्टेम सेल बैंक जैसे लाइफ सेल और कॉर्ड लाइफ इंडिया भारत में काम कर रहे हैं लेकिन वे केवल उन लोगों की सेवा करते हैं जिन्होंने अपने बच्चों के कॉर्ड जमा किये है, जबकि हमारी बैंक हर किसी की मदद करेगी। ” एक अधिकारी ने कहा कि स्टेम सेल बैंक दावा करती है कि इसके शुरू होने के 2-3 वर्षों के भीतर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो जायेगा। प्रो चन्द्र ने कहा, “ ग्लोबल स्टडीज से पता चलता है कि नाभिक वाले स्टेम कोशिकाएं ऐसे बच्चों पर असाधारण परिणाम पैदा कर सकती हैं। सफलता दर 70-75 प्रतिशत के आसपास है और जल्दी उपचार शुरू करने से इसके और बेहतर परिणाम हासिल किया जा सकता है। ”


थैलेसीमिया एक अनुवांशिक रक्त विकार है जिसमें मानव शरीर की हेमोग्लोबिन पैदा करने वाले तंत्र ठीक से काम करना बन्द कर देते हैं। इसके लिए रोगियों को हर 2-3 सप्ताह में रक्ताधान प्रकिया से गुजरना पडता है। अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण इसका अगला बचाव का तरीका है, लेकिन इसका सही मिलान ढूंढना आसान नहीं है। केजीएमयू ने गत फरवरी में स्टेम सेल थेरेपी के लिए पंजीकरण प्रक्रिया शुरू की थी और अब तक 44 परिवार इससे जुडे हैं। उन्होंने बताया, थैलेसीमिक्स में, जब स्टेम सेल को अस्थि मज्जा में डाल दिया जाता है, वे सामान्य कोशिकाओं के विकास को प्रोत्साहित करते हैं और समय के साथ, ये सामान्य कोशिकायें दोषपूर्ण कोशिकाओं से अधिक हो जाती है। केजीएमयू ने रीढ़ की हड्डी की चोट के मामलों पर नाभिक गर्भनाल रक्त स्टेम कोशिकाओं के इस्तेमाल पर पहले से ही पायलट प्रोजेक्ट किया है। दिनेश प्रदीप वार्ता

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