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लोकरुचि


खुश ‘नहीं’ है जमाना आज पहली तारीख है

खुश ‘नहीं’ है जमाना आज पहली तारीख है

लखनऊ 01 दिसम्बर (वार्ता) छह दशकों से ज्यादा समय से करोडों दिलाें को गुदगुदाने वाले सदाबहार गीत “ खुश है जमाना आज पहली तारीख है ” के उलट आज बैंकों के बाहर लंबी लंबी कतारों में खडे ज्यादातर वेतनभोगियों के चेहरों पर मायूसी और झुंझलाहट साफ नजर आ रही थी। वर्ष 1954 में रिलीज हुयी बालीवुड फिल्म “पहली तारीख” में अभिनेता और गायक किशोर कुमार अभिनीत इस गीत को आज भी महीने की पहली तारीख को हर दूसरे घर में गुनगुनाया देखा जा सकता है। वेतनभोगियों के लिये यह बडा दिन होता है लेकिन विमुद्रीकरण के जरिये कालाधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ नकेल कसने की मुहिम के 23वें रोज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खडे हुये लोगों के सब्र का बांध नकदी की समस्या के चलते दरकने लगा है। महीने के पहले दिन बैंको के बाहर वेतनभोगियों की लंबी कतार को संभालने के लिये बैंक प्रशासन को खासी मशक्कत करनी पडी वहीं लाइन में लगे लोग नकदी की समस्या को लेकर सरकार के फैसले पर नाक भौं सिकोडते नजर आये। लोगों का कहना था कि नोटबंदी के फैसले के तीन सप्ताह बीत जाने के बावजूद नकदी का संकट जस के तस है वहीं जमा निकासी पर आये दिन सरकार के नये दिशा निर्देश उन्हे परेशान कर रहे हैं। नकदी की समस्या का हवाला देकर संगठित और गैर संगठित प्रतिष्ठानों ने कर्मचारियों को वेतन देने की तारीख को आगे सरका दिया है वहीं कई मालिकान वेतन के तौर पर पुराने 500 और एक हजार रूपये के नोट देकर कर्मचारियों को टरका रहे हैं। अधिकांश सरकारी कर्मचारियों का वेतन और पेंशन हालांकि समय से उनके खाते में दिन तक क्रेडिट नही हुयी थी मगर र्बैंक में निकासी के लिये लंबी कतार और उनको मिलने वाली रकम में दो हजार रूपये के नोटों की खासी तादाद उनके लिये परेशानी का सबब बनी हुयी है।


उधर, नकदी की समस्या के अलावा कई अन्य तकनीकी कारणो से अधिसंख्य एटीएम मशीनों के ठप रहने से बैंक पर लगी कतार खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। बैंकों में कर्मचारियों और ग्राहकों के बीच कहासुनी की बढती घटनायें शहरों के साथ साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी आम होने लगी है। जनधन खातों में निकासी की सीमा बगैर केवाईसी के पांच हजार रूपये और सामान्य हालात में दस रूपये महीना निकासी तय करने का प्रतिकूल असर गरीब तबके पर देखा जा रहा है वहीं बचत और चालू खाते में निकासी की तय सीमा में खास रद्दोबदल न/न होने से वेतनभोगी और फुटकर व्यापारी आहत हैं। बडे नोटों पर रोक की कवायद के बावजूद खरीद फरोख्त में 1000 रूपये के नोट का इस्तेमाल अभी पूरी तरह थमा नही है। व्यापारी और नौकरीपेशा लोग चोरी छिपे इन नोटों का इस्तेमाल पुरानी देनदारी के एवज में गरीब और जरूरतमंदों पर करके अपने कर्तव्य की इतश्री कर रहे हैं। छोटे और मझोले कारखानों में कार्यरत दैनिक भाेगी कर्मचारी जनधन खातों में निकासी की रकम में बाध्यता से खासे नाराज हैं। उनका कहना है कि मालिकान नकदी की समस्या का हवाला देकर उन्हे वेतन के रूप में पांच सौ और एक हजार रूपये के नोट थमा रहे हैं। एक परिवार में अमूमन दो से तीन लोग अलग अलग कारखानो में कार्यरत है जिनकी कुल कमाई 15 से 20 हजार रूपये से महीने का खर्चा चलता है। कई परिवारों में चार लोगों के बीच एक जनधन खाता है जिस पर निकासी की सीमा ने उनके लिये भुखमरी का संकट खडा कर दिया है।


आशियाना में स्टेट बैंक आफ इंडिया की शाखा के बाहर कतार में खडे घनश्याम ने कहा “ कालेधन पर लगाम जरूरी है मगर नकदी की समस्या से निपटने के लिये सरकार जरूरत से ज्यादा समय ले रही है। सात हजार रूपये वेतन मिला है मगर 1000 रूपये के सात नोट पहले अपने खाते में जमा करवाना है फिर इसकी एवज में पांच हजार रूपये बैंक खाते से मिलेंगे। पूरा दिन खराब और फिर भी दो हजार रूपये कम। परिवार का खर्च कैसे चलेगा। राम ही जाने। ” राजाजीपुरम में एक बैंक शाखा में लगी कतार में धक्कामुक्की से परेशान 55 वर्षीय कमल किशोर वर्मा ने कहा “ अपने पैसे को पाने के लिये जिंदगी में पहली बार इन हालात का सामना करना पड रहा है। बैंक जाने से बचने के लिये किसी तरह खर्चे कम कर पिछला महीना काट लिया मगर अब मजबूरी है। महीने के राशन और अन्य जरूरी खर्च के लिये बैंक की चौखट में आना ही पडा। सोचा था कि कुछ दिनों में समस्या निपट जायेगी मगर भगवान जाने कब खत्म होगा नकदी का टोटा। ” पार्क राेड स्थित एसबीआई की विक्रमादित्य मार्ग शाखा में कार्यरत एक कर्मी ने कहा “ बैंक में भीड कम होने का नाम नही ले रही है। कल से तो वेतनभोगी कर्मचारियों की आवक ने वर्कप्रेशर और बढा दिया है। शाखा में सूचना विभाग के अलावा कई छोटी बडी कंपनियों के सैलरी अकाउंट हैं जिसमें से कई परिचित ग्राहक हैं। इस परिचय का फायदा उठाकर कर हर काेई अपना पैसा जल्दी पाने की जुगत में हैं। परेशानी यह है कि लाइन में खडी भीड का ख्याल करें या फिर बेलाइन सिफारिशी ग्राहकों का। ” चाैक निवासी एक गृहणी जुबेरा ने कहा “ कोई शक नही कि नोटबंदी से कालेधन पर थोडा बहुत लगाम लग सकेगी मगर इसके कारण नोटों के किल्लत ने हमारे लिये बडी मुसीबत खडी कर दी है। महरी को पैसा देना है। दूधवाले का भुगतान करना है। कामवाली बाई का हिसाब करना है। महीने भर तक घरेलू कूडा उठाने वाला और परचून वाले का हिसाब भी करना है। सब के सब अपना हिसाब मांग रहे हैं। वहीं बच्चे की फीस और कोचिंग फी भी जल्द चुकानी होगी। इसी महीने दो शादियों में भी जाना है। कुछ “व्यवहार” तो देना ही पडेगा मगर 24 हजार रूपये की रकम में यह कैसे होगा। सोच सोच कर माथा खराब हो रहा है। ” प्रदीप हिमांशु वार्ता

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