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नियमित जांच से गुर्दा रोग पर पाया जा सकता है काबू

नियमित जांच से गुर्दा रोग पर पाया जा सकता है काबू

(प्रदीप दुबे से)

लखनऊ 07 मार्च (वार्ता) नियमित जांच और लक्षणों की पहचान की बदौलत साइलेंट किलर के रूप में देश में तेजी से पांव पसार रहे गुर्दा संबंधी रोगों पर काबू पाया जा सकता है।

चिकित्सकों के अनुसार व्यायाम, खानपान और स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही किडनी रोग के तेजी से पनपने के मुख्य कारकों में है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार गुर्दा से संबधित रोगों के मामले में भारत 21वीं पायदान पर है। देश में हर साल डेढ़ लाख से अधिक लोग किडनी की बीमारियों की वजह से अपनी जान गंवा बैठते हैं। इसका खतरनाक पहलू यह है कि ज्यादातर मामलाें में बीमारी का पता एडवांस स्टेज में चलता है।

कानपुर के गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कालेज के नेफ्रोलाजी विभाग में एसोसियेट प्रोफेसर समीर गोविल ने ‘यूनीवार्ता’ से कहा “स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह रवैया गुर्दा से संबधित रोगियों की तादाद में वृद्धि कर रहा है। ज्यादातर लोग सूजन, पेट दर्द, बुखार और थकान जैसे लक्षणों का इलाज डाक्टर की बजाय मेडिकल स्टोर में ढूढते हैं और जब उन्हे आराम नहीं होता तो वह डाक्टर या अस्पताल का रूख करते हैं। स्वास्थ्य के प्रति लोगों का लचर रवैये उनकी बडी बीमारी की वजह बनता है।”

उन्होंने कहा कि वास्तव में 40 साल की उम्र पूरी कर चुके लोगों को नियमित अंतराल में ब्लड प्रेशर, लीवर, किडनी, ब्लड शुगर और लिपिड प्रोफाइल समेत अन्य स्वास्थ्य संबंधी जांचे कराते रहना चाहिये। बीमारी की आगाेश से बचने का इससे मुफीद तरीका और कोई नही हो सकता। उक्त रक्तचाप और मधुमेह से ग्रसित लोगों को विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। किडनी से संबधित बीमारियों की मुख्य वजह मधुमेह और उक्त रक्तचाप है। एेसे मरीजों को रक्तचाप हर रोज और मधुमेह की जांच हर तीन महीने में कराती रहना चाहिये।

                        डा़ गोविल ने कहा कि गुर्दे रक्तशोधन का काम करते हैं। इस प्रक्रिया में ये खून से विषैले तत्व और शरीर से अनावश्यक पानी को पेशाब के माध्यम से शरीर के बाहर निकाल देती हैं, इसलिए अगर किडनियां ठीक ढंग से काम न करें तो सेहत बिगड़ने लगती है।

चिकित्सक ने कि हाथ-पैरों और आंखों के नीचे सूजन, सांस फूलना, भूख न लगना और हाजमा ठीक न रहना, खून की कमी से शरीर पीला पड़ना, कमजोरी, थकान, बार-बार पेशाब आना, उल्टी व जी मिचलाना, पैरों की पिंडलियों में खिंचाव होना, शरीर में खुजली होना आदि लक्षण बताते हैं कि किडनियां ठीक से काम नहीं कर रही हैं।

उन्होंने कहा कि किडनी खराब होने पर स्थायी इलाज तो किडनी ट्रांसप्लांट ही है, लेकिन जब तक ट्रांसप्लांट नहीं होता, इसका अस्थायी हल डायलिसिस है। अगर मरीज खान-पान में संयम बरते, नियमित रूटीन फॉलो करे और समय पर डायलिसिस करवाता रहे तो वह लंबा जीवन जी सकता है।

एक प्रतिशत बच्चों में किडनी में सूजन या गड़बड़ी का पता गर्भावस्था के दौरान किए जाने वाले अल्ट्रासाउंड टेस्ट से ही चल जाता है। अगर किसी बच्चे की किडनियों का आकार ठीक नहीं है तो बच्चे का जन्म होते ही इसका इलाज करवाया जा सकता है।


          डा गोविल ने कहा कि मैग्नीशियम किडनी की सही काम करने में मदद करता है, इसलिए ज्यादा मैग्नीशियम वाली चीजें, जैसे कि गहरे रंग की सब्जियां खाएं। खाने में नमक, सोडियम और प्रोटीन की मात्रा घटा दें। न्यूट्रिशन से भरपूर खाना, एक्सरसाइज और वजन पर कंट्रोल रखने से भी किडनी की बीमारी की आशंका को काफी कम किया जा सकता है।

अंडे की सफेदी,लहसुन,स्ट्रॉबेरी, रसभरी, जामुन आदि किडनी के लिए बहुत अच्छे होते हैं, साथ ही मूत्र संक्रमण को भी रोकते हैं।

उन्होंने बताया कि किडनी की बीमारी को सीधे डायलिसिस से जोड़ दिया जाता है। दरअसल डायलिसिस तब कराया जाता है, जब किडनी डैमेज तकरीबन 95 प्रतिशत तक हो। लोगों को लगता है कि बहुत सारा पानी पीना किडनी डैमेज के सारे मरीजों के लिए फायदेमंद होता है, लेकिन ऐसा नहीं है। एसोसिएटेड हार्ट डिसीज और लिवर की कुछ बीमारियों से पीड़ित मरीजों को सीमित मात्रा में पानी पीने की सलाह दी जाती है।

चिकित्सक ने कहा कि खराब जीवनशैली की वजह से उच्च रक्तचाप, मधुमेह, यूरिक एसिड और कॉलेस्ट्रॉल बढऩे की समस्या युवाओं में आम है। इन समस्याओं से किडनी खराब होने का खतरा सर्वाधिक होता है। उन्होंने जीवनशैली संतुलित करने के साथ व्यायाम करने पर जोर दिया।

उन्होेंने कहा कि एक तरफ विदेश में पिज्जा, बर्गर जैसे फास्ट फूड के खिलाफ और सलाद और व्यायाम के समर्थन में माहौल बन रहा है, वहीं हमारे देश में इस तरह के भोजन और इस तरह की जीवनशैली जोर पकड़ रही है।

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