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धरती से आकाश को जोड़ती है पतंगे

धरती से आकाश को जोड़ती है पतंगे

 पटना 13 जनवरी(वार्ता)मकर संक्राति के दिन पतंग उड़ाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। संक्राति के दिन लोग चूड़ा-दही खाने के बाद मकानों की छतों , खुले मैदानों की ओर दौड़े चले जाते है और पतंग उड़ाकर आनंदित होते हैं। भारत के अलावा चीन, इंडोनेशिया, थाइलैंड, अफगानिस्तान, मलेशिया और जापान जैसे अन्य एशियाई देशों के अलावा कनाडा, अमेरिका, फ्रांस, स्विटजरलैंड, हालैंड और इंगलैंड आदि देशो में भी पतंग उड़ाने की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। प्राय: यह माना जाता है कि पतंग का आविष्कार ईसा पूर्व चीन में हुआ था । जापान में पतंगे उड़ाना और पतंगोत्सव एक सांस्कृतिक परंपरा है । यहां पतंग तांग शासन के दौरान बौद्ध भिक्षुओं के माध्यम से पहुंची। भारत में पतंग परंपरा की शुरआत शाह आलम के समय 18 वीं सदी में मानी गयी है लेकिन भारतीय साहित्य में पतंगो की चर्चा 13वीं सदी से ही की गयी है। मराठी संत नामदेव ने अपनी रचनाओं में पतंग का जिक्र किया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार पतंगे कागजी परिंदे हैं जो दिल की धड़कनों को डोर के सहारे आसमान में लहराते है। 


           प्राचीन काल में जापान के लोगो में विश्वास था कि पतंगो की डोर वह जरिया है जो पृथ्वी को स्वर्ग से मिलाती है। चीन के लोगो में विश्वास है कि अगर पतंग उड़ाकर छोड़ दी जाये तो उनका दुर्भाग्य आसमान में गुम हो जायेगा और यदि कोई कटी हुयी पतंग उनके घर में प्रवेश करती है तो यह उनके लिए शुभ होगा। जापान का थिरोन ओजोको म्यूजियम विश्व का सबसे बड़ा पतंग संग्रहालय है। यहां पतंगों की अनेक विलक्षण आकृतियां हैं। कहीं अबाबेल पक्षियों की हू-ब-हू आकृति है तो कहीं पवन चक्की का भ्रम पैदा करने वाले नमूने। ज्यादातर स्थानीय पतंगो पर आकर्षक रंग के मुखौटे बने होते हैं। संग्रहालय की एक रोचक बात यह है कि यहां आप पतंगे बनाना सीख सकते हैं। यदि कोई दिक्कत हो तो यहां मौजूद प्रशिक्षकों की मदद ली जा सकती है। जापान के थिरोन में हर वर्ष जून में पतंगोत्सव का आयोजन किया जाता है। नाकानोगूजी नदी के दोनों किनारों पर इस खेल का आयोजन किया जाता है। 


          चीन के वेइफांग में 13000 वर्ग फुट क्षेत्र में बना पतंग संग्रहालय स्थापित है। इस संग्रहालय को देखकर ऐसा लगता है कि मानो कोई दैत्य आसमान में उड़ रहा है। संग्रहालय में पतंगो के अलावा तितलियों, चिड़ियों और कीटों की आकृतियां है। वर्ष 1984 में यहीं पर पहला अंतर्राष्ट्रीय पतंगोत्सव हुआ था इसलिये इसे पतंगो की राजधानी भी कहा जाता है। कलात्मक पतंगो का संग्रह करने के मामले में भारत भी पीछे नहीं है। अहमदाबाद के संग्रहालय में देश-विदेश की कई बहुमूल्य पतंगे संग्रहित हैं। इनमें ज्यामितीय आकृति का सहारा लेकर करतब दिखाते पशु-पक्षियों की आकृति वाले चित्र पतंगो पर बेल बूटे का संयोजन किया हुआ है। संग्रहालय को देखकर प्रसिद्ध फिल्मकार श्याम बेनेल ने कहा था कि यह सौन्दर्य का अद्भूत नमूना है। अमेरिकी चित्रकार बोरिस ने कहा था कि यह संग्रहालय मानो आकाश में उड़ता हुआ प्रतीत होता है। फ्रांस मे पंतगो की लोकप्रियता को देखते हुये वहां एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन होता है। काईट पैन नामक इस पत्रिका को श्रेष्ठ प्रकाशन के लिये काइट बेटफोर्ड पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। इस पत्रिका में दुनिया भर के पतंग बाजार, उन्हें उड़ाने और बनाने के तरीकों और पतंगो के अंतर्राष्ट्रीय उत्सव आदि की कई रोचक जानकारियां दी जाती है 


 

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