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कोजागरा: रात भर जागे तो मिलेगा अमृत पान का मौका

कोजागरा: रात भर जागे तो मिलेगा अमृत पान का मौका

दरभंगा 22 अक्टूबर (वार्ता) शारदीय नवरात्र के बाद मिथिलांचलवासी नवविवाहितों के लिए खासा महत्व रखने वाले लोक पर्व कोजागरा को लेकर हर तरफ धूम है।

लोकमान्यता है कि आश्विन पूर्णिमा की रात्रि में पूनम की चांद से अमृत की वर्षा होती है और जो जागता है वही अमृत का पान भी करता है। खासकर नवविवाहित वर अपने विवाह के पहले वर्ष में इस अमृत का पान करें तो उनका दाम्पत्य जीवन सुखद बना रहता है।इसी कामना को लेकर यह लोक पर्व मिथिला में पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। कोजागरा पर्व को लेकर बाजारों में हलचल देखी जा रही है। लोक पर्व कोजागरा अर्थात को-जागृति। कोजागरा के रात्रि जगने वाले व्यक्ति अमृत पान के भागी होते हैं।

लोक संस्कृति विशेषज्ञ शंकर देव झा के अनुसार,मिथिला में नवविवाहित वरों के यहां आश्विन पूर्णिमा को कोजागरा का विशेष उत्सव मनाने की परम्परा रही है। मिथिलांचल में ब्राह्मण, कर्ण कायस्थ, गंधवरिया राजपूत, पोद्दार वैश्य, धानुक, केवट, सोनार आदि विभिन्न जातियों में इस पर्व को मनाने की परम्परा है। मिथिला में किम्वदंत्ती है कि चन्द्रमा से जो अमृत की बूंदे टपकी उसी ने मखाना का रूप ले लिया है।

        री झा ने बताया कि ऐसा भी कहा जाता है कि स्वर्ग में भी पान और मखान दुर्लभ है। इसी लिए कोजागरा के दिन कम से कम एक फोका मखान और एक खिल्ली पान खाना आवश्यक माना जाता है। कोजागरा के दिन मिथिलांचल में प्रत्येक घर में लक्ष्मी पूजा की भी परिपाटी है। इस दिन घर में रखे तिजौरी की पूजा की भी परम्परा है। लोग चाँदी और सोने के सिक्के को लक्ष्मी मानकर पूजा करते हैं और उसका स्पर्श घर के सभी सदस्य कर महालक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। प्रसाद के रूप में पान, मखाना, बतासा, मिठाई का वितरण किया जाता है।

कोजागरा के अवसर पर वर पक्ष के यहाँ आये अतिथियों के बीच जहाँ पान, मखाना, बतासा, मिठाई का वितरण किया जाता है वहीं सम्पन्न लोगों द्वारा शाकाहारी व्यंजनों तथा दही-चूड़ा-चीनी, खाजा, लड्डू आदि का भोज किया जाता है। सारा भोज्य पदार्थ वर वालों के यहां वधू पक्ष की ओर से भेजा जाता है। वधू पक्ष की ओर से वर पक्ष के यहाँ प्रचुर मखाना, दही, चूड़ा, मिठाई, पान आदि भार के रूप में भेजा जाता है। वहीं वर के लिये नये कपड़े, जूते, घड़ी, छत्ता अन्य साजो-सामान सहित पूरे परिवार के लिये वस्त्रा एवं अन्य सामग्रियाँ भी भेजी जाती है। मिथिला में कोजागरा के भार की बड़ी प्रसिद्धि है। यह भार देखने-दिखाने के लिये होता है।

इस दिन नवविवाहित वर का अपने यहाँ चुमाओन होता है। वह अपने साले (पत्नी के भाई) के साथ पचीसी खेलता है। इस चुमाओन के लिये डाला, पीढ़ी, दुर्वाक्षत सहित चाँदी की बनी कौड़ी और थाल भी ससुराल से भेजा जाता हैं। जाहिर है कि किसी भी बेटी वाले के लिये कोजागरा का भार उसकी प्रतिष्ठा का प्रश्न होता है। अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिये वधू पक्ष कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखता है।


          कोजागरा की रात्रि में मिथिलांचल के घरों में महिलाओं द्वारा खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रात भर रखा जाता है और सुबह उसे घर के सभी लोग खाते हैं। मान्यता है कि आश्विन पूर्णिमा की रात्रि में जो ओस की बूंदे खिर में गिरती हैं वह अमृत होता है।

कोजागरा के रात जागने के उद्देश्य से पहले राजा-महाराजाओं, जमीनदारों द्वारा कौमुदी महोत्सव का आयोजन किया जाता था। लेकिन अब न राजा रहे न जमीनदार। बावजूद आज भी मिथिलांचल के गांवों में लोगों के सहयोग से गीत-संगीत एवं नाटक का आयोजन किया जाता है, ताकि लोग रात्रि भर जाग कर इसका आनन्द तो ले ही साथ ही चन्द्रमा से मिलने वाले अमृत का भी पान कर सके।

लोक पर्व कोजागरा को लेकर मिथिलांचल के नवविवाहित वरों के घरों के आंगन में अरिपन बनाने की भी परम्परा है। लोक मान्यता अनुसार, कोजागरा में यह अरिपन बनाना घर में लक्ष्मी के आगमन के स्वागत में जरूरी माना जाता है। संध्या में लोक गीतों के साथ मां लक्ष्मी के आगमन में प्रतिक्षा की जाती है।

सं.सतीश

वार्ता

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