भारतPosted at: Aug 7 2019 7:07PM देश में मनोचिकित्सकों की कमी चिंता का विषय: न्यायमूर्ति दत्तू
नयी दिल्ली 07 अगस्त (वार्ता) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एच एल दत्तू ने देश में मनोचिकित्सकों की भारी कमी पर चिंता व्यक्त की है।
न्यायमूर्ति दत्तू ने आज यहां आयोग की मानसिक स्वास्थ्य पर राष्ट्रीय स्तर की समीक्षा बैठक उद्घाटन करते हुए कहा कि मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार के प्रयास किये गये हैं लेकिन उपलब्ध सुविधाओं और जरूरत में अभी भी काफी अंतर है। उन्होंने कहा कि आयोग इस क्षेत्र की गतिविधियों की निरंतर निगरानी करता है और इसी क्रम में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 के लागू होने के बाद जमीनी हकीकतों का मूल्यांकन करना जरूरी है।
मौजूदा स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि देश में 13500 मनोचिकित्सकों की जरूरत है लेकिन इनकी संख्या केवल 3827 है। इसी तरह 20250 नैदानिक मनोवैज्ञानियों की जरूरत है जबकि इनकी संख्या मात्र 898 है। इस क्षेत्र में अर्द्धचिकित्सक स्टाफ की भी भारी कमी है।
जेलों में बंद कैदियों की मानसिक समस्याओं का मुद्दा उठाते हुए उन्होंने कहा कि अधिनियम की धारा 103 के अनुसार उनके अधिकारों की रक्षा सरकार का दायित्व है। उच्चतम न्यायालय ने भी हाल ही के अपने एक फैसले में इस बात पर जोर दिया है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में विशेष सचिव संजीव कुमार ने केन्द्र की ओर से उठाये जा रहे कदमों का उल्लेख करते हुए संबंधित पक्षों से और सक्रिय भागीदारी का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि अब तक केवल 19 राज्यों ने मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम को लागू किया है। देश की 10.6 फीसदी वयस्क आबादी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रही है। उन्होंने इस क्षेत्र की स्थिति के बारे में विचार विमर्श के आयोग के प्रयासों की सराहना की।
बैठक में आयोग के महासचिव जयदीप गोविंद, संयुक्त सचिव दिलीप कुमार और सदस्य न्यायमूर्ति पी सी पंत , , राज्य आयोगों के सदस्यों , गैर सरकारी संगठनों तथा अन्य संस्थाओं के प्रतिनिधि मौजूद थे।