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लाॅकडाउन ने नन्ही गौरैया को दी संजीवनी

लाॅकडाउन ने नन्ही गौरैया को दी संजीवनी

इटावा 12 मई (वार्ता) कोरोना संक्रमण के चलते लाॅकडाउन ने जहां आम आदमी की जिंदगी को नीरस और चिंता में डाला है वहीं वायु और ध्वनि प्रदूषण में उल्लेखनीय गिरावट ने विलुप्तता के कगार पर जा पहुंची गौरैया चिड़िया को संजीवनी प्रदान कर दी है।

लाॅकडाउन के बाद जल,नभ,थल में प्रदूषण के स्तर में कई गुना गिरावट दर्ज की जा रही है जिसके चलते परिंदों की चहचहाट एक बार फिर वातावरण में संगीत के मधुर रस घोलने लगी है। आमतौर पर शरद ऋतु के आखिरी दौर में गौरैया चिड़िया के प्रजनन में बढ़ोत्तरी होती है और संयोग से उसी दौरान लाकडाउन की शुरूआत हुयी थी जिसका नतीजा है कि यहां अब बड़ी संख्या में गौरैया चिड़िया घर आंगन में फुदकती दिखायी दे रही हैं।

पिछले एक दशक के दौरान गौरैया चिड़िया की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की जा रही है। शहरी क्षेत्रों में नन्ही चिड़िया को देखा जाना दूभर हो गया था वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी यदा-कदा गौरैया नजर आती थी। पर्यावरणविद पक्षियों की संख्या में कमी के लिये विशेषकर ध्वनि और वायु प्रदूषण को जिम्मेदार मानते रहे हैं वहीं खेतों में रासायिक खाद के बढ़ते प्रचलन ने कई प्रजातियों को विलुप्ति की कगार पर पहुंचा दिया है।

कोरोना संक्रमण ने डर से समूची दुनिया लाकडाउन का सामना करने को विवश है हालांकि मानव जाति के लिये संकट के इस काल ने परिंदों को खुद का अस्तित्व बचाने का मौका दे दिया है। इटावा में सैकड़ाें ऐसे घर है जहां पर गौरैया चिड़िया ने इस दफा प्रजनन तो किया ही है बल्कि उनके बच्चे हर किसी को दिखना शुरू हो गए है । गौरैया के प्रजनन की जानकारी होने के बाद उसके घोसले और अंडों की सुरक्षा लोगों ने अपनी जान की तरह की है ।

फ्रैंडस कालौनी मुहाल मे रहने वाले वकील विक्रम सिंह यादव के घर गौरैया चिडिया नेे लाॅकडाउन के दरम्यान दो अंडे दिये । जिनमे से अब बच्चे बाहर आ चुके है। बच्चों की सुरमयी चहचहाट से गदगद विक्रम ने कहा कि वो बेहद खुश इस बात से बने हुए है कि उनका परिवार गौरैया संरक्षण की सही भूमिका अदा कर रहा है। यह बात दीगर है कि गौरैया उनके घर मे लगातार दो सालों से अपना घोंसला बना कर अंडे दे रही है। विक्रम की घर के बिजली के बोर्ड के पास बने घोसले में पले बढ़े बच्चे अब उड़ना सीख चुके है। विक्रम की ही तरह से कई ऐसे परिवार भी है जिनके घरो मे गौरैया चिड़िया ने ना केवल घोंसले बनाये है बल्कि अंडे के जरिये बच्चे भी जन्मे है। अब हर ओर उनकी चहचहाट मोहल्ले वालों के लिये आनंद का विषय बनी हुयी है।

पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फाॅर कंजर्वेशन आफ नेचर के महासचिव डा.राजीव चौहान ने कहा “ गौरैया को घरेलू चिड़िया कहा जाता है और यह हमारे हैबीटेशन में रहना पसंद करती है। लाॅकडाउन से हमारे दैनिक जीवन पर असर पडा है । हम लोगो की बहुत ही गतिविधियाॅ शहरों और देहातों में रुक गई । इसी बीच मे गौरैया को प्रजनन क्षेत्र मिल गए हैं इसी कारण गौरैया की आबादी में खासा इजाफा हुआ है। यह कहा जा सकता है कि इंसानी गतिविधियों से गौरैया को जो नुकसान हो रहा था वो नही हुआ जिसका इनको फायदा मिला है।”

उन्होने कहा कि गौरैया घोसलें के लिये सुरक्षित और एकांत जगह खोजती है और यही कारण है कि उनके घोसले आबादी के बीच होने के बावजूद ऐसी जगह पाये जाते है जहां लोगों की नजर उन पर न पड़े। यह जीव अपने खाने पीने का सामान भी आम लोगों के बीच रह कर ही जुटाता है। लाॅक डाउन में गौरैया को प्राकृतिक वास से बहुत ही आसानी से मिला जिसकी वजह से गौरैया काफी सारी दिख रही है।

लाॅकडाउन के कारण माॅल बगैरह बंद होने के कारण अपने-अपने घरों में लोग अनाज तो सुखा रहे हैं जिससे गौरैया को आसानी से खाने को मिलने लगा है ।

डा चौहान ने बताया कि पहले अमूमन देखा जाता था कि घरों को साफ करने के चक्कर में लोग अपने अपने घरों में बनने वाले घोसले आदि को एक करके नष्ट कर देते थे। अब लाॅक डाउन के बाद लोगों की सोच और समझ बदल गई है । अधिकतर लोगों ने खुद को प्रकृति की ओर जोड़ना शुरू कर दिया है जिसका नतीजा यह है कि लोग गौरैया को अब तब्वजो देने लगे है ।

उन्होने बताया कि लाॅकडाउन के बाद बहुत सारे बदलाव एकाएक दिखने लगे है । लोगो को आक्सीजन मिलने लगा है । ध्वनि प्रदूषण के कारण पहले लोगों को प्राकृतिक तौर पर आनंद की अनुभूति नहीं हो पाया करती थी अब लाॅक डाउन ने उस आनंद की अनभूति को वापस कर कर दिया है। पर्यावरणविद का कहना है कि असल में गौरैया चिड़िया के प्राकृतिक वास पूरी तरीके से गायब हो गए थे । इसके साथ ही इंसानों ने अपनी संस्कृति में भी बदलाव किया था । इसी की वजह से जीव जंतुओं के लिए भोजन का अकाल पड़ना शुरू हो गया । जिसका असर हर जीव जंतु पर पड़ा है । उन्हीं में से एक गौरैया चिडिया भी है ।

भर्थना के रहने वाले कृषि विभाग के सेवानिवृत्त अधिकारी ब्रजेश कुमार यादव बताते है कि लाॅकडाउन से पहले जहाॅ उनके यहाॅ एक या दो गौरैया चिडिया दिखाई देती है जो अब 25 की तादात मे दिख रही है । इन गौरैया चिड़िया को देखने के बाद बच्चे के साथ साथ घर के बडे भी खुश है । 

अखिलेश सरकार में गौरैया के संरक्षण की दिशा में चलाए गए प्रदेश व्यापी अभियान का यह असर हुआ लोगो को यह समझ आ गया कि गौरैया गायब हो रही है । उसको बचाने की दिशा में घोसले आदि लगाने से भी काफी कुछ बदलाव हुआ है लेकिन लाॅक डाउन ने तो गौरैया को मानो नया जीवनदान ही दे दिया हो ।

गौरैया की लगातार संख्या घटने के कारण साल 2010 से गौरैया दिवस मनाया जा रहा है । 2012 मे उत्तर प्रदेश मे अखिलेश सरकार बनने के बाद गौरैया को बचाने की दिशा मे वन विभाग की ओर से कई कार्यक्रमो का आयोजन किया गया जिससे गौरैयो को बचाने की दिशा मे लोग सक्रिय हुए लेकिन योगी सरकार आने के बाद इस प्रकिया पर पहले की तरह सक्रियता नही रही है।

इटावा सफारी पार्क के उपनिदेशक सुरेश चंद्र राजपूत बताते है कि इटावा सफारी पार्क मे जहाॅ बडी तादात मे गौरैया चिडिया देखी जा रही है जिसकी संख्या अनुमानित कम से कम से कम दस हजार के बीच आंकी जा सकती है । चंबल के बीहडो मे तो इनकी संख्या इतनी है कि इनका झुंड देख कर खुश होना लाजिमी है। असल मे लॉक डाउन के बाद लोगो की आवाजाही ना ले बराबर है इसलिए गौरैया बड़ी तादात में दिखना शुरू हो गयी है। 

सं प्रदीप

वार्ता

 

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