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हजारों साल पुराना मंदिर तसदीक करता है यही जन्मे थे भगवान परशुराम

हजारों साल पुराना मंदिर तसदीक करता है यही जन्मे थे भगवान परशुराम

शाहजहांपुर, 28 अप्रैल (वार्ता) उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर के जलालाबाद में जमदग्नि आश्रम से करीब दो किलोमीटर पूर्व दिशा मे हजारो साल पुराना मन्दिर और अवशेष भगवान परशुराम की जन्मस्थली की मान्यता को प्रमाणित करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार काल गणना के मुताबिक भगवान परशुराम करीब दस लाख वर्ष पूर्व ही पृथ्वी पर अवतरित हुये थे। परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि प्रसिद्ध भृगुवंश मे पैदा हुये थे। इनके पिता का नाम ऋचीक और माता का नाम सत्यवती था। इनके पिता का आश्रम गंगा और काली नदी के संगम के पास आधुनिक कन्नौज के उत्तर अश्वतीर्थ नामक स्थान पर था। मान्यता है कि उस समय इस भूभाग पर महर्षि विश्वामित्र के पिता राजा गाधि शासन करते थे। जमदग्नि की माता सत्यवती राजा गाधि की कन्या थी। महर्षि ऋचीक ने महर्षि अगत्स्य के अनुरोध पर जमदग्नि को महर्षि अगत्स्य के साथ दक्षिण मे कोंकण प्रदेश मे धर्म प्रचार का कार्य करने लगे। कोंकण प्रदेश का राजा जमदग्नि की विद्वता पर इतना मोहित हुआ कि उसने अपनी पुत्री रेणुका का विवाह इनसे कर दिया। इन्ही रेणुका के पांचवे गर्भ से भगवान परशुराम का जन्म हुआ। जमदग्नि ने गृहस्थ जीवन मे प्रवेश करने के बाद धर्म प्रचार का कार्य बन्द कर दिया और राजा गाधि की स्वीकृति लेकर इन्होने अपना जमदग्नि आश्रम स्थापित किया और अपनी पत्नी रेणुका के साथ वही रहने लगे। राजा गाधि ने वर्तमान जलालाबाद के निकट की भूमि जमदग्नि के आश्रम के लिये चुनी थी। जमदग्नि ने आश्रम के निकट ही रेणुका के लिये कुटी बनवाई थी आज उस कुटी के स्थान पर एक अति प्राचीन मन्दिर बना हुआ है जाे आज ‘ढकियाइन देवी’ के नाम से सुप्रसिद्ध है। 


           ‘ढकियाइन’ शुद्ध संस्कृत का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है वह देवी जिसका जन्म दक्षिण में हुआ हो। रेणुका कोंकण नरेश की पुत्री थी तथा कोंकण प्रदेश दक्षिण भारत में स्थित है। यह वही पवित्र भूमि है जिस पर भगवान परशुराम पैदा हुये थे। जलालाबाद से पश्चिम करीब दो किलोमीटर दूर माता रेणुका देवी तथा ऋषि जमदग्नि की मूर्तियों वाला अति प्राचीन मन्दिर इस आश्रम में आज भी मौजूद है तथा पास मे ही कई एकड़ मे फैली जमदग्नि नाम की बह रही झील भगवान परशुराम के जन्म इसी स्थान पर होने की प्रामाणिकता को और भी सिद्ध करती है। इस आश्रम पर हर साल तीन दिवसीय मेला लगता है जिसमे दूर दराज से आने वाले श्रद्धालु माता का आर्शीवाद पाते है। इसके अलावा हर साल यहां होने वाली देवी जात मे भक्तों की भारी भीड़ जुटती है। बताया जाता है कि जब भगवान परशुराम अपने महाविजय अभियान से वापस लौटे तब तक उनके सभी पूर्वजों का स्वर्गवास हो चुका था वापस लौटने पर उन्होने अपने पूर्वजों का जहां पिण्डदान किया वह स्थान उबरिया कहा गया। जलालाबाद से करीब पांच किलोमीटर दूर शाहजहांपुर रोड पर न केवल इस नाम का गांव मौजूद है बल्कि वहां काफी पुराना मन्दिर भी है जहां हर साल मेला भी लगता है। अपने महाविजय अभियान से वापस लौटने पर जहां लोगो ने भगवान परशुराम का स्वागत सत्कार किया उस स्थान को अतिपरा कहा गया जो अपभ्रंश होकर अतिबरा हो गया और इसी नाम से यहां गांव बसा हुआ है। कटका तथा गुनारा दोनो गांव भी भगवान परशुराम से जुड़े रहे जो आज भी मौजूद है। ग्राम कटका के पास ही भगवान परशुराम तथा सहस्त्रबाहु का महासंग्राम हुआ था। जबकि गुनारा का भटट परिवार इस आश्रम से सम्बन्धित रहा। जमदग्नि आश्रम से करीब दो किलोमीटर पूर्व दिशा मे भगवान परशुराम का हजारो साल पुराना मन्दिर है इस मन्दिर के सामने कई एकड़ मे फैला ताल ‘रामताल’ के नाम से विख्यात है। 


          भगवान परशुराम का मन्दिर करीब बीस फिट के एक ऊंचे टीले पर स्थित है मन्दिर के मुख्य द्वार पर एक विशालकाय फरसा लगा हुआ है। बताते है कि सन 1905 मे तत्कालीन तहसीलदार प्रभुदयाल ने मन्दिर के पास टीले की खुदाई कराई थी तब यह फरसा मिटटी मे दबा हुआ मिला था इसके अलावा खुदाई के दौरान खरोष्ठी लिपि मे लिखे दो शिलालेख भी मिले यह शिलालेख मन्दिर मे मौजूद नही है। तहसीलदार ने मलबे से निकले उस फरसे का परीक्षण करवाया था तो बताया गया था कि इस फरसे की उम्र करीब एक हजार साल पुरानी है। उस दौरान होते रहे आक्रमणो के दौरान मन्दिर का स्वरूप बनता बिगड़ता रहा परन्तु मन्दिर मे स्थापित भगवान परशुराम की मूर्ति वहीं है। यह मन्दिर कस्बे के मोहल्ला खेड़ा में स्थित है। इस मन्दिर की प्राचीनता का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है। कस्बे के दक्षिण दिशा मे निजाम शाह बर्री मियां की अति प्राचीन दरगाह है इस दरगाह से उर्दू में लिखी पुस्तक मिली थी जिसका नाम था ‘तस्वीरे मासूम उलू रऊफ रहनुमाये तरीकत’। इस प्राचीन पुस्तक के 170 वें पृष्ठ पर अंकित है कि जब शाह रहमतुल्ला आला राजकुमार मियां मुश्ताक दीवान के साथ इस कस्बे मे आये तो उस दौरान यहां आबादी नही थी उत्तर की ओर कुछ हिन्दू जोगी साधू रहते थे तथा मन्दिर स्थित था। इस विवरण से स्पष्ट होता है कि जब निजाम शाह बर्री मियां यहां आये तब भी यहां मन्दिर स्थापित था। इतिहासकारो के अनुसार निजाम शाह बर्री मियां अरब प्रान्त से धर्म का प्रचार करने 1034 हिजरी मे हिन्दुस्तान आये थे। हजारों साल पहले जोगी खेडा के नाम से पुकारे जाने वाला यह इलाका बाद मे परशुरामपुरी के नाम से विख्यात रहा। इतिहासकारों के अनुसार मुगल शासन के दौरान यहां शासक रहे हाकिम रहमत खां ने अपने मंझले पुत्र जलालुद्दीन का विवाह यहां आकर बसे अफगान कबीले युसुफजई मे किया था और यह पूरा इलाका अपनी पुत्रवधू को मेहर में दे दिया इसके बाद से इस क्षेत्र का नाम जलालाबाद प्रचलित हो गया। जो आज तक चला आ रहा है। लम्बे समय से की जा रही मांग के बाबजूद सरकार ने भलें ही इसे भगवान परशुराम की जन्मस्थली होने का दर्जा न दिया हो परन्तु प्रदेश ही नही बल्कि दूर- दूर तक भगवान परशुराम की यह पावन नगरी उनकी जन्मस्थली के रूप में विख्यात है। भगवान परशुराम कां लेकर शोध करने वाले देश के कई प्रान्तो के विद्वानो ने भगवान परशुराम से जुड़े देश तथा विदेश के तमाम स्थलो का गहन अध्ययन करने के बाद उन्होने जलालाबाद मे स्थित भगवान परशुराम मन्दिर, ऋषि जमदग्नि आश्रम तथा परशुराम से जुड़े अनेक स्थलो को सबसे ज्यादा प्रमाणिक मानते हुये इस नगरी को ही भगवान परशुराम की जन्मस्थली होना माना है। 


          आम जनमानस में इसी दृढता के चलते इस मन्दिर की महत्ता गहराई तक जमी हुई है। यहां साल भर मुण्डन संस्कार, अन्न प्रहसन तथा शादी के बाद वधू को मन्दिर पर भगवान के दर्शन कराने के बाद घर पर प्रवेश कराने के कार्यक्रम बराबर चलते रहते हैं। इसके अलावा भगवान परशुराम रामलीला कमेटी की ओर से हर साल क्वार के महीने मे रामलीला, रासलीला तथा नाटक आदि धार्मिक आयोजन कराये जाते हैं। जबकि भगवान परशुराम के जन्म दिवस बैशाख मास की अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम जन्म भूमि प्रबन्ध समिति यहां विशेष आयोजन कराती है जो पूरे सप्ताह चलते है। इसके तहत सप्ताह भर श्रीमद भागवत कथा तथा अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम का जलाभिषेक, इसी दिन आठ कुण्डीय विशाल यज्ञ के बाद परशुराम की भव्य शोभायात्रा मन्दिर से निकाली जाती है इसके बाद भण्डारे का आयोजन होता है। साथ ही समिति की ओर से हर पूर्णमासी को मन्दिर पर भजन कीर्तन के बाद भण्डारा होता है। भगवान परशुराम मन्दिर से जुड़ी एक अन्य संस्था ‘परशुराम सर्वजन कल्याण समिति’ की ओर से साल भर सामाजिक कार्यक्रम कराये जाते है। भगवान परशुराम जन्म भूमि को समर्पित उक्त संस्था इस क्षेत्र को पर्यटक स्थल के रूप मे विकसित कर भगवान परशुराम से जुड़े विभिन्न स्थलो का विकास तथा उनका संरक्षण कराने को लम्बे समय से आन्दोलन कर रही थी जिसपर भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने यहां को पर्यटन स्थल घोषित कर दिया है | 


 

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