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माघ मेला मानवता का भी ‘संगम’ है

माघ मेला मानवता का भी ‘संगम’ है

प्रयागराज,14 जनवरी (वार्ता) पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त: सलिला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती का जिस प्रकार प्रयागराज में संगम होता है उसी प्रकार माघ मेला परम्पराओं,भाषाओं और लोगों का भी अद्भुत संगम है।

त्रिवेणी के विस्तीर्ण रेती पर अलग-अलग भाषा, संस्कृति, परंपरा और पहनावे को एक साथ देखा और महसूस किया जा सकता है। यहां किसी को आने का आमंत्रण और निमंत्रण नहीं दिया जाता बावजूद इसके सब नियत तिथि पर

पहुंच कर एक माह का पौष पूर्णिमा के पावन पर्व पर श्रद्धा की डुबकी के साथ ही संयम, अहिंसा, श्रद्धा एवं कायाशोधन के लिए “कल्पवास” करते हैं।

मध्य प्रदेश के रीवां से शिक्षक पद से निवृत्त रामनरेश शुक्ल झूंसी स्थित एक शिविर में कल्पवास करने आए हैं। उन्होने बताया कि वह पिछले पांच साल से कल्पवास का सुख प्राप्त कर रहे हैं। अध्यापन के कारण माघ में कभी

कभी स्नान करने पत्नी अनीता शुक्ला के साथ आते थे। लेकिन उस दौरान इस आध्यात्मिक सुख से वंचित थे। लेकिन सेवानिवृत्त के बाद कल्पवास का अलौकिक सुख का अनुभव करते हैं।

उन्होने बताया कि संगम तट पर विभिन्न संस्कृतियाें, भाषा और परंपरा को मिलते देख “अनेकता में एकता” का बोध होता है।

श्री शुक्ल ने बताया कि प्रयाग प्रजापति का क्षेत्र है जहाँ गंगा और यमुना बहती हैं। उन्होने बताया कि मत्स्यपुराण में लिखा है कि साठ सहस्त्र वीर गंगा की और स्वयं सूर्य जमुना की रक्षा करते हैं। यहाँ जो वट है उसकी रक्षा स्वयं शूलपाणि करते हैं। पाँच कुंड हैं जिनमें से होकर जाह्नवी बहती है। माघ महीने में यहाँ सब तीर्थ आकर वास करते हैं। इससे इस

महीने का बहुत फल है।

गोरखपुर के समाजशास्त्र से स्नातकोत्तर का शिक्षण ग्रहण करने वाले मधुकर वर्मा ने बताया कि वह पिछले तीन साल से माघ स्नान करने आते हैं। उनके माता जानकी और पिता प्रवीन वर्मा यहां कल्पवास करते हैं। उन्होने

बताया कि यह उनका सौभाग्य है कि उन्हें उनके माता-पिता के कारण माघ महीने में संगम स्नान का पुण्य प्राप्त होता है। उन्होने बताया कि यहां आकर मिनी भारत का आभास होता है। संगम में एक साथ अमीर-गरीब, युवा-वृद्ध, महिला, बच्चे, विकलांग सभी एक साथ मिलकर जब डुबकी लगाते हैं तब अहसास होता है कि गंगा,यमुना और अदृश्य सरस्वती का ही संगम नहीं बल्कि मानवता भी मेला है।

उन्होंने बताया कि संगम तट पर विभिन्न भाषा, संस्कृति, परंपरा का प्रत्यक्ष दर्शन होता है। उन्होने बताया कि

पर्व में मेलजोल और मानवजीवन के उत्थान पर चिंतन मानवता को प्रगाढ़ करता है। स्नान और दान के माध्यम से दिनचर्या में जीता हुआ जीवन के प्रति उल्लास और प्रेम की एक ऐसी डगर बनाता है जिस पर चल कर मानवता के फूल

खिलाए जाते है।

मधुकर ने बताया कि दान,दया और परोपकार सहयोग के आधार पर विकसित हुयी मानवता का संगम को “माघ मेले” में साक्षात देखने को मिलता है। यहां तीर्थयात्रीगण को पवित्रता, मांगलिकता और अमरत्व के भाव मन स्नान करने का एक अवसर प्राप्त होता है। तीर्थयात्रीगण को पवित्रता, मांगलिकता और अमरत्व के भाव मंन स्नान करने का एक अवसर प्राप्त होता है।

आस्था के इस पावन पर्व में आकर्षण से खिंचे हुए देश विदेश से श्रद्धालु प्रयागराज की धरती पर मानवता के सजीव चित्रण को महसूस करते है। पर्यावारण,आपसी समरसता, हिंदू धर्म की मान्यताएं और जीवन को धन्य बनाने का लक्ष्य लिए कलपवासी एक मास तक संगम तट पर निवास करते हुए जीवन के विविध रूपों और रहस्यों का अवलोकन करते हैं।

दिनेश भंडारी

वार्ता

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