मनोरंजनPosted at: Jan 8 2019 12:36PM रूमानी गीतों से श्रोताओं को दीवाना बनाया महेन्द्र कपूर ने
जन्मदिन 09 जनवरी के अवसर पर
मुंबई 08 जनवरी (वार्ता) बॉलीवुड में महेन्द्र कपूर का नाम एक ऐसे पार्श्वगायक के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने लगभग पांच दशक तक अपने रूमानी गीतों से श्रोताओं के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी है।
महेन्द्र कपूर का जन्म 09 जनवरी 1934 को अमृतसर में हुआ था। बचपन के दिनों से ही उनका रूझान संगीत की ओर था। उन्होंने संगीत की अपनी प्रारंभिक शिक्षा हुस्नलाल-भगतराम, उस्ताद नियाज अहमद खान, उस्ताद अब्दुल रहमान खान और पंडित तुलसीदास शर्मा से हासिल की।
मोहम्मद रफी से प्रभावित होने के कारण वह उन्हीं की तरह पार्श्वगायक बनना चाहते थे। अपने इसी सपने को पूरा करने के लिये वह मुंबई आ गये। वर्ष 1958 में प्रदर्शित व्ही शांताराम की फिल्म नवरंग में उन्होंने सी. रामचंद्र के संगीत निर्देशन में “आधा है चंद्रमा रात आधी” से बतौर गायक के रूप में अपनी पहचान बना ली। इसके बाद महेन्द्र कपूर ने सफलता की नयी ऊंचाइयों को छुआ और एक से बढ़कर एक गीत गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
वर्ष 1967 में प्रदर्शित फिल्म उपकार के गीत “मेरे देश की धरती सोना उगले” के लिए महेन्द्र कपूर को सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया। वर्ष 1972 को उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। उनको अपने करियर में तीन बार सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का फिल्म फेयरपुरस्कार दिया गया।
महेन्द्र कपूर को सर्वप्रथम वर्ष 1963 में गुमराह के गीत “चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएं” के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार मिला था। इसके बाद वर्ष 1967 में हमराज के गीत “नीले गगन के तले” और वर्ष 1974 में फिल्म रोटी कपड़ा और मकान के गीत “और नहीं बस और नहीं” के लिये सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया।
महेन्द्र कपूर ने हिंदी फिल्मों के अलावा कई मराठी फिल्मों के लिये पार्श्वगायन किया। उन्होंने लोकप्रिय टीवी धारावाहिक महाभारत का शीर्षक गीत भी गया था। अपनी मधुर आवाज से श्रोताओं के दिलों में खास पहचान बनाने वाले महेन्द्र कपूर 27 सितंबर 2008 को इस दुनिया को अलविदा कह गये।
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