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एक मुट्ठी नमक बना गांधी ने ललकारा था अंग्रेज हुकुमत को

एक मुट्ठी नमक बना गांधी ने ललकारा था अंग्रेज हुकुमत को

(प्रसून लतांत)

नयी दिल्ली, 06 अप्रैल (वार्ता) राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का नमक सत्याग्रह केवल नमक कर के खात्मे तक सीमित नहीं था बल्कि इसके जरिये उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत को सीधी चुनौती दी और उसे यह अहसास कराया कि उसका शासन ज्यादा दिन टिकने वाला नहीं है।

जन—जन की भारी भागीदारी और अहिंसक तरीके से चलाये जाने के कारण नमक सत्याग्रह दुनिया के दस महत्वपूर्ण आंदोलनों में शूमार किया जाता है और इससे गांधी दुनिया की नजर में आ गये थे। गांधी दांडी यात्रा करके समुद्र तट पर पहुंचे और एक मुट्ठी नमक बना कर अंग्रेजों के कानून को तोड़ने के साथ ही आजादी के लिए पूरे देश को एकजुट कर दिया था। इससे अंग्रेजों को यह अहसास हो गया कि भारत में उनका राज बहुत दिनों तक टिकने वाला नहीं है।

नमक कानून तोड़ने के लिए महात्मा गांधी ने 1930 में 12 मार्च को अहमदाबाद के अपने सत्याग्रह आश्रम से दांडी यात्रा शुरू की। विदेशी मीडिया ने इस यात्रा की कामयाबी को लेकर आशंकाएं जतायी थी , लेकिन 61 वर्षीय महात्मा गांधी और उनके 78 सत्याग्रहियों ने उनकी आशंकाओं को निराधार साबित कर दिया। वह 24 दिनों में 340 मील की पदयात्रा करते हुए छह अप्रैल को दांडी पहुंचे।

मुट्ठी भर नमक बनाकर गांधी ने खुद को भले ब्रिटिश हुकूमत की नजर में गुनाहगार बना लिया , लेकिन अपनी हिम्मत और दृढ़ता के कारण वह आजादी के आंदोलन के एकछत्र नायक बनकर उभरे। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने उस समय कहा कि महात्मा जी के त्याग और देशप्रेम को हम सभी जानते ही हैं, पर इस यात्रा के द्वारा हम उन्हें अब एक योग्य और सफल रणनीतिकार के रूप में भी पहचानेंगे। गांधी नमक कानून तोड़ने के बाद अहमदाबाद आश्रम नहीं लौटे। वह दांडी के पास ही कराड़ी में एक आम के पेड़ के नीचे खजूर की पत्तियों से बनी झोपड़ी में ही रहने लगे थे। उन्हें चार मई, 1930 को मध्य रात्रि में गिरफ्तार कर लिया गया।

नमक सत्याग्रह में न केवल देश के सभी जातियों और धर्मों के लोगों ने हिस्सा लिया बल्कि गांधी के समकालीन कई नेताओं ने भी खुद को इसमें पूरी तरह से झोंक दिया था। उस समय ब्रिटिश हुकूमत का अत्याचार चरम पर था। गांधी जनता के असंतोष को संगठित करने की कोशिश में थे। इस बीच बल्लभ भाई पटेल की कर्मभूमि गुजरात के आनंद से सटे करमसद और बारडोली में किसानों ने टैक्स अदायगी से इनकार कर दिया और वे इस आंदोलन को पटेल के नेतृत्व में आगे बढ़ाने लगे थे। किसानों के बीच पटेल की अच्छी पैठ को देखते हुए गांधी ने उन्हें ही नमक सत्याग्रह की पूरी बागडोर सौंपी। पटेल ने ही दांडी यात्रा की पूरी योजना बनाई और मार्ग निर्धारित किया।

दांडी यात्रा की तैयारी चल ही रही थी कि सात मार्च 1930 को पटेल गिरफ्तार कर लिए गए और दो दिन बाद ही उन्हें तीन महीने कैद की सजा भी सुना दी गई। गांधी ने अगले दिन पटेल की सजा के खिलाफ लोगों से लड़ाई शुरू करने की अपील की। उनकी अपील पर 11 मार्च को अहमदाबाद शहर में 75 हजार लोग आश्रम के आसपास जुट गये और पटेल की सजा के खिलाफ लड़ाई लड़ने का संकल्प लिया। ग्यारह मार्च की रात अविस्मरणीय बन गयी क्योंकि गांधी अगली सुबह विश्वप्रसिद्ध दांडी यात्रा का अभूतपूर्व इतिहास लिखने के लिए दांडी की ओर कूच कर गए। इस यात्रा से गांधी के नेतृत्व में पूरा देश एकजुट हो गया पर उन्होंने इसका सारा श्रेय पटेल को देते हुए कहा था “यह मेरा सरदार है। ये नहीं होते तो शायद मेरा आंदोलन सफल नहीं होता।”

दांडी यात्रा की कामयाबी का ब्रिटिश हुकुमत का सही आकलन नहीं कर पायी। वह पटेल को कैद कर निश्चिंत हो गई थी लेकिन देश की जनता और स्वाधीनता सेनानियों ने एक नया ही इतिहास लिख दिया। करीब अस्सी हजार लोगों की गिरफ्तारी हुयी जिनमें पटेल और गांधी के अलावा कई और बड़े नेता शामिल थे। मुंबई में नमक सत्याग्रह का केंद्र धरासना था, जहां सरकार केे दमन चक्र का सबसे भयानक रूप देखने को मिला। सरोजिनी नायडू, इमाम साहब और मणिलाल के नेतृत्व में करीब पचीस हजार सत्याग्रहियों को धरासना नमक कारखाने पर धावा बोलने से पहले ही लाठियों से खूब पीटा गया। यहां की घटना तो अहिंसक क्रांति की मिसाल बन गई।

दांडी यात्रा में गांधी जैसे—जैसे आगे बढ़ रहे थे, उनकी ताकत बढ़ती जा रही थी और अंग्रेज शासकों की बेचैनी। दांडी यात्रा के साथ देश के अन्य स्थानों पर भी इस तरह की यात्राओं का आयोजन किया गया और नमक कानून तोड़ा गया।

जय टंडन

वार्ता

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