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औषधीय गुणों की खान है देव वृक्ष ‘पारिजात’

औषधीय गुणों की खान है देव वृक्ष ‘पारिजात’

लखनऊ 12 नवम्बर (वार्ता) हिन्दू धर्म ग्रंथों में देव वृक्ष की संज्ञा से नवाजे गये दुलर्भ प्रजाति का ‘पारिजात’ वास्तव में औषधीय गुणों की खान है। आयुर्वेद में इस वृक्ष के तने से लेकर शिखा तक में जटिल और असाध्य रोगों के निदान का वर्णन किया गया है।

अपनी नायाब खूबसूरती और विशेष गुणों के कारण यह वृक्ष सदियों से लोगों के आकर्षण और कौतूहल का केन्द्र बना हुआ है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस वृक्ष को संरक्षित घोषित किया है। राजधानी लखनऊ और बाराबंकी में पारिजात के वृक्ष को निहारने के लिये हर रोज बडी तादाद में लाेग पहुंचते है। लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान में पारिजात काे देखने के लिये दर्शक खासतौर पर आते हैं।

हिन्दू पुराणों में पारिजात को देव वृक्ष की संज्ञा से नवाजा गया है। मान्यता है कि इस वृक्ष को स्पर्श करने मात्र से ही शरीर की थकान छू मंतर हो जाती है।

प्राणि उद्यान के निदेशक राजेन्द्र कुमार सिंह ने ‘यूनीवार्ता’ को बताया कि प्राणि उद्यान में पारिजात के चार वृक्ष हैं। वन्यजीवों को निहारने आने वाले दर्शकों में कई ऐसे होते है जो विशेष रूप से यहां पारिजात वृक्ष को देखने के लिये आते हैं।

श्री सिंह ने बताया कि आयुर्वेद में देव वृक्ष को खास स्थान दिया गया है। पारिजात में औषधीय गुणों का भण्डार है। पारिजात बावासीर के लिए रामबाण औषधि है। पारिजात के एक बीज का सेवन प्रतिदिन किया जाये तो बावासीर रोग ठीक हो जाता है। पारिजात के बीज का पेस्ट बनाकर गुदा पर लगाने से बावासीर के रोगी को बडी राहत मिलती है।

पारिजात के फूल हदय रोग के निदान के लिए भी उत्तम माने जाते हैं। इनके फूलों का या रस का सेवन करने से हृदय रोग से बचा जा सकता है। पारिजात की पत्तियों को पीस कर शहद में मिलाकर सेवन करने से सूखी खांसी ठीक हो जाती है। इसी तरह पारिजात की पत्तियों को पीसकर त्वचा पर लगाने से त्वचा संबंधी रोग ठीक हो जाते है।

उन्होंने बताया कि पारिजात की पत्तियों से बने हर्बल तेल का भी त्वचा रोगों में भरपूर इस्तेमाल किया जाता है। पारिजात की कोपल को अगर पांच काली मिर्च के साथ महिलाएं सेवन करें तो स्त्री रोग में लाभ मिलता है। वहीं पारिजात के बीज जहां हेयर टानिक का काम करते है तो इसकी पत्तियों का जूस क्रोनिक बुखार को ठीक कर देता है। गुर्दे के रोगों में यह पेड़ लाभकारी होता है। इस पेड़ की छाल में पानी की मात्रा बहुतायत होती है जो मलेरिया ज्वर में उपयोगी होता है। इस वृक्ष का फल लम्बा, भूरा होता है और इसे चाव से खाया जाता है। इसका गूदा पाचक तथा स्वाद में खट्टा होता है।

हिन्दू धर्म ग्रंथो में पारिजात के बारे में कई किवदंतिया प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार परिजात वृक्ष की उत्पत्ति समुन्द्र मंथन से हुई थी। जिसे इन्द्र ने अपनी वाटिका में रोप दिया था। हरिवंश पुराण के अनुसार पारिजात के अदभुद फूलों को पाकर सत्यभामा ने भगवान कृष्ण से जिद की कि पारिजात वृक्ष को स्वर्ग से लाकर उनकी वाटिका में रोपित किया जाए। श्री कृष्ण ने पारिजात वृक्ष लाने के लिए नारद मुनि को स्वर्ग लोक भेजा मगर इन्द्र ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया जिस पर कृष्ण ने स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर दिया और पारिजात प्राप्त कर लिया। पारिजात छीने जाने से रूष्ट इन्द्र ने इस वृक्ष पर कभी न फल आने का शाप दिया।

पारिजात वृक्ष का उल्लेख भगवत गीता में भी मिलता है। पारिजात वृक्ष का उल्लेख पारिजातहरण नरकवधों नामक अध्याय में की गई है। हरिवंश पुराण में ऐसे ही एक वृक्ष का उल्लेख मिलता है,जिसे छूने मात्र से देव नर्तकी उर्वशी की थकान मिट जाती थी।

प्राणि उद्यान के निदेशक ने बताया कि वृक्षों के पौराणिक महत्व एवं दुर्लभता को देखते हुए राज्य सरकार ने संरक्षित वृक्ष घोषित किया है। उनका कहना है कि पारिजात वृक्ष से जन आस्था जुडा है। इस कारण इस वृक्ष को संरक्षण दिये जाने की निरंतर आवश्यकता है। इस वृक्ष की एक विशेषता यह भी है कि इसमें कलम नहीं लगती ,इसी कारण यह वृक्ष दुर्लभ वृक्ष की श्रेणी में आता है। केन्द्र सरकार ने पारिजात वृक्ष पर डाक टिकट भी जारी किया ताकि अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर इसकी पहचान बन सके।

उन्होंनेेे बताया कि पारिजात वृक्ष कल्प वृक्ष का ही एक प्रकार है। इसका वैज्ञानिक नाम एडेनसोनिया डिजीटाटा है। इसका फूल खूबसूरत सफेद रंग का होता है जो कि सूखने के बाद सुनहरे रंग का हो जाता है। इस फूल में पांच पंखडुियां होती हैं। किवदंती के अनुसार इसकी शाखायें सूखती नहीं बल्कि सिकुड़ जाती हैं तथा शुष्क तने में ही समाहित हो जाती हैं। वर्तमान में इस वृक्ष को भारतीय वनस्पति अनुसंधान केन्द्र लखनऊ में चिन्हित किया गया है।

श्री सिंह ने बताया कि इस प्रजाति के चार वृक्ष प्राणि उद्यान में उपलब्ध हैं। जिनमें से एक राजकीय संग्राहलय परिसर में तथा बाकी के तीन वृक्ष काला मृग अौर सारस गृह के पास है। पारिजात के गोरस इमली, विलायत इमली, कल्पवृक्ष आदि अन्य नाम हैं।

उन्होंने बताया कि पारिजात का एक विशाल वृक्ष लखनऊ से सटे जिले बाराबंकी में रामनगर क्षेत्र के गांव बोरोलिया में मौजूद है। लगभग 50 फीट तने और 45 फीट उंचाई के इस वृक्ष की ज्यादातर शाखाएं भूमि की ओर मुड़ जाती है और धरती को छूते ही सूख जाती है। एक साल में सिर्फ एक बार जून माह में सफेद व पीले रंग के फूलो से सुसज्जित होने वाला यह वृक्ष न सिर्फ खुशबू बिखेरता है, बल्कि देखने में भी सुन्दर लगता है।

दुर्लभ प्रजाति के इस वृक्ष के बारे में एक मान्यता यह भी है कि पारिजात नाम की एक राजकुमारी हुआ करती थी जिसे भगवान सूर्य से प्यार हो गया था, लेकिन अथक प्रयास करने पर भी भगवान सूर्य ने पारिजात के प्यार को स्वीकार नहीं किया, जिससे खिन्न होकर राजकुमारी पारिजात ने आत्महत्या कर ली थी। जिस स्थान पर पारिजात की कब्र बनी वहीं से पारिजात नामक वृक्ष ने जन्म लिया। इसी कारण पारिजात वृक्ष को रात में देखने से ऐसा लगता है जैसे वह रो रहा हो, लेकिन सूर्य उदय के साथ ही पारिजात की टहनियां और पत्ते सूर्य को आगोश में लेने को आतुर दिखाई पड़ते हैं। उन्होंने बताया कि ज्योतिष विज्ञान में भी पारिजात का विशेष महत्व बताया गया है।

पूर्व वैज्ञानिक एवं ज्योतिष के जानकार गोपाल राजू की माने तो धन की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने में पारिजात वृक्ष का उपयोग किया जाता है। यह पूजा साल के पांच मुहुर्त होली, दीवाली, ग्रहण, रवि पुष्प तथा गुरू पुष्प नक्षत्र में की जाए तो उत्तम है। पारिजात वृक्ष के वे ही फूल उपयोग में लाए जाते है,जो वृक्ष से टूटकर गिर जाते है। यानि वृक्ष से फूल तोड़ने की पूरी तरह मनाही है।

उन्होंने बताया कि वनस्पति शास्त्रियों के अनुसार इस वृक्ष की आयु एक से पांच हजार वर्ष तक आंकी गयी है। दुनिया में इस पेड़ की सिर्फ पांच प्रजातियां पाई जाती है। जिनमें से एक डिजाहाट है। पारिजात वृक्ष इसी डिजाहाट प्रजाति का है।

वार्ता

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