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1857 की भावना से अल्पसंख्यकों के उत्थान करेेंगे मोदी

1857 की भावना से अल्पसंख्यकों के उत्थान करेेंगे मोदी

नयी दिल्ली 25 मई (वार्ता) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज संकेत दिया कि देश अगले पांच साल के उनके राजनीतिक एजेंडे में अल्पसंख्यकों को भयभीत करके उनके वोट दोहन करने वाली राजनीति को समाप्त करने तथा उनका विश्वास जीत कर 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की उस भावना को जीवित करने का काम करेंगे जिससे हिन्दू मुसलमान कंधे से कंधा मिला कर गुलामी के विरुद्ध संघर्ष कर रहे थे।
श्री मोदी ने संसद के केन्द्रीय कक्ष में राजग संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद नवनिर्वाचित सांसदों और घटक दलों के नेताओं को सम्बोधित करते हुए अपने ‘सबका साथ सबका विकास’ के नारे को विस्तार किया और कहा, “सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास।” उन्होंने कहा, “2014 से 2019 तक हमने गरीबों के लिए सरकार चलाई और आज मैं बड़े संतोष के साथ कह सकता हूं कि ये सरकार देश के गरीबों ने बनाई है। 2014 में मैंने कहा था कि मेरी सरकार देश के दलितों, गरीबों, पीड़ितों, वंचितों, आदिवासियों को समर्पित है। आज फिर मैं कहना चाहता हूं कि पांच साल में हमने उस बात से अपने को ओझल नहीं होने दिया। ना कमजोर पड़े ना भटके।”
उन्होंने कहा कि देश में गरीबी एक राजनीतिक संकट के रूप में फैशन का हिस्सा बन गयी थी। विगत पांच साल में हमें ये भ्रमजाल में छेद करने में कामयाबी मिली है। उन्होंने कहा कि गरीबों के किये जाने वाले छल में छेद करने के साथ ही गरीबी को तेज गति से दूर करने का रास्ता मिला है। उन्होंने कहा कि घर बिजली पानी जैसी जरूरतें पूरी करना सभी का हक है, उनके लिए जूझने या जीवन खपाने की जरूरत नहीं है।
देश में गरीब एक राजनीतिक संवाद-विवाद का विषय रहा, एक फैशन का हिस्सा बन गया, भ्रमजाल में रहा। पांच साल के कार्यकाल में हम कह सकते हैं कि हमने गरीबों के साथ जो छल चल रहा था, उस छल में हमने छेद किया है और सीधे गरीब के पास पहुंचे हैं। देश पर इस गरीबी का जो टैग लगा है, उससे देश को मुक्त करना है। गरीबों के हक के लिए हमें जीना-जूझना है, अपना जीवन खपाना है।
प्रधानमंत्री ने अपनी रणनीति के संकेत देते हुए कहा कि देश में जैसा छल गरीबों के साथ किया गया वैसा ही छल अल्पसंख्यकों के साथ भी हुआ। दुर्भाग्य से देश के अल्पसंख्यकों को उस छलावे में ऐसा भ्रमित और भयभीत रख गया है, उससे अच्छा होता कि अल्पंसख्यकों की शिक्षा, स्वास्थ्य की चिंता की जाती। उन्होंने कहा कि वोटबैंक की राजनीति में काल्पनिक भय पैदा करके उन्हें दूर रखा गया। 2019 में वह अपेक्षा करने आये हैं कि हमें इस छल को भी छेदना है। हमें उनका विश्वास जीतना है।
उन्होंने कहा कि 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में सब लोग कंधे से कंधा मिला कर गुलामी के विरुद्ध एक साथ लड़े थे। तब बहुसंख्यक अल्पसंख्यक कुछ नहीं था। आज़ादी की 75वीं सालगिरह पर हमें फिर से देश में 1857 की उसी भावना को पुनर्जीवित करना है। सुराज, सुरक्षा एवं गरीबी से मुक्ति दिला कर उन्हें समान रूप से विकास का अवसर दिलाना है। सबको साथ में लेकर कंधे से कंधा मिला कर बहुत बड़े दायित्व को निभाना है। उन्होंंने कहा कि जो हमें वोट देते हैं वो भी हमारे हैं और जो हमारी निंदा करते हैं, वो भी हमारे हैं। मन में संकल्प करके देश के सभी वर्गों को हमें साथ लेना है।
श्री मोदी ने नये सांसदों का आह्वान किया, “संविधान को साक्षी मानकर हम संकल्प लें कि देश के सभी वर्गों को नई ऊंचाइयों पर ले जाना है। पंथ-जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। हम सबको मिलकर 21वीं सदी में हिंदुस्तान को नई ऊंचाइयों पर ले जाना है। सबका साथ, सबका विकास और अब सबका विश्वास ये हमारा मंत्र है।”
उन्होंने सांसदों को मीडिया के मोह और सार्वजनिक बड़बोलेपन से बचने की सलाह दी और कहा कि कई साथी छपास एवं दिखास के रोग में फंस जाते हैं। पहले आकर्षण लगने वाली यह चीज़ यह एक प्रकार का नशा है और हम इसके शिकार हो जाते हैं।। इससे बच कर चलना है। उन्होंने कहा कि कभी कभी छोटी मोटी बातें बहुत बड़े कामों में व्यवधान डालतीं हैं। हमारा मोह हमें संकट में डालता है। इसलिए हमारे नए और पुराना साथी इन चीजों से बचें क्योंकि अब देश माफ नहीं करेगा। हमारी बहुत बड़ी जिम्मेदारियां है। हमें इन्हें निभाना है। वाणी से, बर्ताव से, आचार से, विचार से हमें अपने आपको बदलना होगा।
श्री मोदी ने कहा कि कभी हमारे मन में कुछ आ सकता है। हमारे दल में हमारे बराबर के दावेदार थे। पर हमारे भीतर का कार्यकर्ता भाव जिन्दा रहना चाहिए। हमें भी आदत हो जाती है। उनका दायित्व है सबको सचेत करें। उन्होंने कहा कि सांसदों को समझना चाहिए कि हम न हमारी हैसियत से जीतकर आते हैं, न कोई वर्ग हमें जिताता है, न मोदी हमें जिताता है। हमें सिर्फ देश की जनता जिताती है। हम जो कुछ भी हैं मोदी के कारण नहीं, जनता जनार्दन के कारण हैं। हम यहां अपनी योग्यता के कारण नहीं हैं, जनता जनार्दन के कारण हैं।
उन्होंने कहा कि हमें जनादेश है और जन के आदेश का पालन करना है और उसी भाव से चलना है। सार्वजनिक जीवन में व्यक्ति को जनता से उसी प्रकार से भोजन शक्ति पाना चाहिए जैसे एक गर्भस्थ शिशु अपनी मां से गर्भनाल से पाता है।
उन्होंने सांसदों से ज़मीनी और विनम्र व्यवहार की अपेक्षा करते हुए सत्ता-भाव न भारत का मतदाता स्वीकार करता है, न पचा पाता है। हम चाहे भाजपा या राजग के प्रतिनिधि बनकर आए हों, जनता ने हमें स्वीकार किया है सेवाभाव के कारण। हमारे अंदर सेवा भाव बढ़ता जाएगा तो उसी के साथ सत्ता भाव कम होता जाएगा और हम देखेंगे कि सेवा भाव बढ़ने के साथ ही हमारे प्रति जनता जनार्दन का अाशीर्वाद बढ़ता जाएगा। हमारे लिए और देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए सेवा भाव से बड़ा कोई मार्ग नहीं हो सकता है।
उन्होंने कहा, “युग बदल चुका है। वीआईपी संस्कृति से देश को बड़ी नफरत है। हम भी नागरिक हैं तो कतार में क्यों खड़े नहीं रह सकते। हमें जनता को ध्यान में रखकर खुद को बदलना चाहिए। लाल बत्ती हटाने से कोई आर्थिक फायदा नहीं हुए, पर जनता के बीच अच्छा संदेश गया है।”
प्रधानमंत्री ने नये सांसदों को अपने स्टाफ के चयन में सतर्कता बरतने और दलालों के चंगुल से बचने की भी सलाह दी।
श्री मोदी ने कहा कि 2019 का चुनाव सकारात्मक वोट का चुनाव था। आचार्य विनोबा भावे कहते थे कि चुनाव बांट देता है, दूरियां पैदा करता है, दीवार बना देता है, खाई पैदा कर देता है लेकिन 2019 के चुनाव ने दीवारों को तोड़ने और दिलों को जोड़ने का काम किया है।
सचिन टंडन
वार्ता

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