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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी


पैसे के खेल से तीन साल के बच्चे भी हो जाते हैं स्वार्थी

पैसे के खेल से तीन साल के बच्चे भी हो जाते हैं स्वार्थी

लंदन 27 जून(वार्ता) धन सिर्फ बड़ों में ही घमंड नहीं लाता बल्कि इसके दुष्प्रभाव से तीन साल के बच्चे भी अछूते नहीं रहते। पैसे से थोड़ी देर खेलने वाले बच्चे भी स्वार्थी बन जाते हैं। दो अलग अलग देशों में बच्चों पर पैसे के प्रभाव का पता लगाने के लिए किये गये शोध से पता चला है कि धन सच में सभी फसादों की जड़ है। ‘डेली मेल ’में प्रकाशित शोध रिपोर्ट के अनुसार अगर बच्चों को थोडी देर भी खेलने के लिए पैसे दिये जाते हैं तो वे दूसरों की मदद करने में कम रूचि लेते हैं और स्वार्थी बन जाते हैं। पहला अध्ययन पोलैंड में किया गया, जहां तीन साल के बच्चों के एक समूह को नोट और कागज छांटने के लिए दिये गये। इसके बाद सभी बच्चों को दूसरे कमरे में ले जाया गया, जहां एक शोधकर्ता ने उन सभी से कहा कि दूसरों बच्चों पर भी इसी तरह का परीक्षण किया जा रहा है वह इसमें मदद करें। इसके बाद शोधकर्ता ने सभी बच्चों को एक-एक बास्केट दिया और कहा कि वे कमरे के एक कोने में रखी जितनी कलर पेंसिल हो सके, वे बास्केट में डालें ताकि दूसरों बच्चों के परीक्षण में आसानी हो। शोधकर्ता ने देखा कि जिन बच्चों ने नोट छांटे थे, वे कागज छांटने वाले बच्चों के मुकाबले कम मदद कर रहे थे। दूसरा अध्ययन अमेरिका में तीन से छह साल के बच्चों के एक समूह पर किया गया। अध्ययन की शुरूआत में ही उन सबसे कहा कि सामान का इस्तेमाल करने के बाद उन्हें अपना क्लासरूम साफ करके निकलना है। साथ ही उन्हें अपनी कुर्सी भी जगह पर रखने के कहा गया। इसके बाद सभी बच्चों को पैसे से भरा एक छोटा बक्सा दिया गया और कहा गया कि वे जितनी देर चाहें, इससे खेल सकते हैं। शोधकर्ताओं ने सभी बच्चों के खेलने का समय नोट किया । इसके बाद सभी बच्चों को दूसरे कमरे में जाने के लिए कहा गया ताकि यह देखा जा सके कि वे कहे अनुसार अपना क्लासरूम साफ करके निकले हैं या नहीं। दूसरे कमरे में सभी बच्चों को अधिकतम तीन खिलौने चुनने की आजादी दी गयी, जिससे वे दूसरे स्कूल के बच्चों के साथ खेलें। उनसे यह भी पूछा गया कि क्या वे दूसरे स्कूल के बच्चों को खुश करने के लिए अपने खिलौने उनके साथ बांटना चाहते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि जो बच्चे ज्यादा देर तक पैसे से खेल रहे थे, वे ज्यादा स्वार्थी हो गयेे थे, मदद नहीं करना चाह रहे थे और अपने खिलौने भी नहीं देना चाहते थे।

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