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ब्रज के विकास के समर्पित थे मोतीलाल वोरा

ब्रज के विकास के समर्पित थे मोतीलाल वोरा

मथुरा 22 दिसम्बर (वार्ता) देश की राजनीति में एक लम्बे समय तक अपना स्थान बनाये रखने वाले उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल मोतीलाल वोरा ब्रजवासी न होने के बावजूद ब्रज के विकास के प्रति समर्पित थे।

श्री वोरा के जीवन की यात्रा उनके जन्म दिन पर पूरी हो गई। उनके निधन से मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लोगों को तो आघात पहुंचा ही है साथ ही उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए यह अपूरणीय क्षति है। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के रूप में वे जिस प्रकार ब्रज में हर महीने आते थे तथा यहां की समस्याओं की जानकारी लेते थे,उससे ब्रजवासी उनके बहुत निकट थे। हालांकि उन्होंने प्रदेश के हर जिले का दौरा किया तथा वहां की समस्याओं को हल करने की कोशिश की ।

कांग्रेस विधानमंडल दल के पूर्व नेता प्रदीप माथुर ने कहा कि वृन्दावन और मांट के बीच बना यमुना पुल दिवंगत नेता की देन है तो शेरगढ़ के यमुना पुल की एक प्रकार से उन्होंने आधार शिला बनाई। श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर बना महाभारत का रथ भी एक प्रकार से उन्ही की देन है। जन्मस्थान पर जब महाभारत का रथ उसके मुख्य द्वार पर बनाने की बात आई तो अधिकारियों ने उसे बनाने की इजाजत नही दी।

हिन्दूवादी नेता और श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान की प्रबंन्ध समिति के सदस्य गोपेश्वरनाथ चतुर्वेदी ने बताया कि श्री वोरा जब श्रीकृष्ण जन्मस्थान दर्शन के लिए आए थे तो उन्होंने इस रथ को बनाने की इजाजत दे दी थी तथा समाचार पत्रों में भी इसका प्रकाशन हुआ था। इस रथ को बनने से रोकनेवाले अधिकारियों को यह नागवार गुजरा और उन्होंने बाद अपने अधीनस्थ अधिकारियों को इसके लिए परेशान जरूर किया।

उस समय के राज्यपाल के स्टाफ आफिसर मथुरा के पूर्व जिलाधिकारी हरे कृष्ण पालीवाल से उन्होंने कहा था कि मथुरा के विकास के लिए कोई परियोजना आवे तो उसे प्राथमिकता पर लेकर शुरू किया जाना चाहिए। उन्होंने मथुरा के चुनिन्दा लोगों से यह भी कहा था कि वे मथुरा के विकास के लिए परियोजनाएं भिजवाएं , मथुरा की हर परियोजना को पूरा किया जाएगा तथा उसके लिए धन की कमी इसलिए नही होने दी जाएगी किं इसका लाभ यहां आनेवाले तीर्थयात्रियों को भी मिलेगा। यह बात अलग है कि तत्कालीन जिलाधिकारी सदाकांत ने इस ओर ज्यादा ध्यान नही दिया जिसके कारण मथुरा का चतुर्दिक विकास हो पाता। श्री वोरा जब भी मथुरा आते यहां के लोगों से मिलकर यहां के विकास की चर्चा करते और उसे पूरा करने का आदेश अधिकारियों को देते। अपने राज्यपाल के कार्यकाल के अंतिम समय में लोगों ने जब उनसे गोवर्धन का विकास कराने को कहा तो उन्होंने गोवर्धन की स्थिति देखने का निश्चय किया लेकिन उस समय का प्रशासन उनका ऐसा प्रोग्राम बनाता कि अन्य कार्यक्रमों में व्यस्त होने के कारण वे गोवर्धन नही पहुंच पाते थे और हेलीकोप्टर के उ़ड़ने का समय हो जाता।

राज्यपाल के पद से त्यागपत्र देने के बाद जब वे गोवर्धन आए तो उन्होंने उस समय कहा था कि उन्हें वहां पहले ही आना चाहिए था तथा गोवर्धन की व्यवस्थाएं तो वैष्णोदेवी जैसी होनी चाहिए।

मोतीलाल वोरा चूंकि स्वयं पत्रकार थे इसलिए वे पत्रकारों की समस्या और उनके उत्तरदायित्व को समझते थे। उन्होने प्रशासनिक व्यवस्था के खिलाफ छपने वाले समाचार को कभी अन्यथा नही लिया बल्कि उसके पीछे की कमी को जानकर उसे दूर कराने का प्रयास किया । उन्होंने मथुरा में पत्रकारों के लिए कालेानी बनाने का भी आदेश तत्कालीन जिलाधिकारी सदाकांत को दिया था यह बात दीगर है कि उस समय के जिलाधिकारी ने इसमें कोई रूचि नही दिखाई और मथुरा में पत्रकार कालोनी नही बन सकी।

वे गोभक्त थे तथा राजभवन की उनकी दिनचर्या गायों को रोटी खिलाने से शुरू होती थी। उनका कहना था कि गाय को प्लास्टिक खाने से रोका जाना चाहिए और यह काम गोशाला में ही हो सकता है पर चूंकि राज्यपाल के रूप में वे सभी कार्यों को देख नही सकते थे और अधिकारियों पर ही निर्भर रहना पड़ता था इसलिए बहुत सी जनक्लयाणकारी योजनाएं उस समय नही शुरू हो पाईं। वे चाहते थे कि प्रदेश के विद्यार्थी मेडिकल या इंजीनियरिंग की शिक्षा के लिए दूसरे राज्यों में न जाये और यहीं पर अधिक से अधिक इंजीनियरिंग कालेज या मेडिकल कालेज खुलें। यही कारण है कि जब अखिलेश दास ने लखनऊ में बनारसीदास इंजीनियरिंग कालेज खोलने की इच्छा जाहिर की तो उन्होंने शासन की ओर से इसमें भरपूर मदद की।

वे यद्यपि मूल रूप से कांग्रेसी थे लेकिन राज्यपाल का दायित्व निभाते समय उन्होंने सभी के साथ समान व्यवहार किया और यदि कहीं कांग्रेसियों की गलती थी तो उसे उसी रूप में लिया। उनके कार्यकाल में राज्यपाल के दरवाजे जनता के लिए हर दिन न केवल खुले रहते थे बल्कि उन्होंने राजभवन में आनेवाले हर व्यक्ति की मदद करने की कोशिश की । वे न केवल यह कहा करते थे कि ‘मनुष्य है वही कि जो मनुष्य के लिए मरे’ बल्कि मनसा ,वाचा, कर्मणा से उन्होंने जीवनपर्यन्त इसका पालन किया।

सं प्रदीप

वार्ता

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