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विख्यात लोक गायक हीरदा के निधन से उत्तराखंड में शोक की लहर

विख्यात लोक गायक हीरदा के निधन से उत्तराखंड में शोक की लहर

देहरादून, 13 जून (वार्ता) उत्तराखंड में कुमाऊं मंडल के विख्यात गीतकार, संगीतकार एवं गायक हीरा सिंह राणा के निधन पर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने शोक व्यक्त किया है।

प्रदेश के कुमाऊं मंडल के मूल निवासी और दिल्ली में गढ़वाली, कुमायूंनी और जौनसारी भाषा अकादमी के उपाध्यक्ष हीरा सिंह राणा (हीरदा) का शनिवार तड़के निधन का समाचार मिलते ही प्रदेश के लोक संगीत प्रेमियों में शोक व्याप्त हो गया।

श्री रावत ने लोक गायक और लोक संगीत के पुरोधा हीरा सिंह राणा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करने एवं परिवार को इस दु:ख को सहने की शक्ति देने की ईश्वर से प्रार्थना की है। उन्होंने कहा कि श्री हीरदा के निधन से लोक संगीत को अपूरर्णीय क्षति हुई है।

उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्डी लोक संगीत की शान, विख्यात लोक कलाकार और दिल्ली में गढ़वाली-कुमाऊँनी-जौनसारी भाषा अकादमी के पहले उपाध्यक्ष हीरा सिंह राणा का दिल्ली के विनोद नगर स्थित आवास में आज तड़के दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। वह 77 वर्ष के थी।

हीरा सिंह राणा का जन्म 16 सितंबर 1942 को मानिला डंढ़ोली, अल्मोड़ा में हुआ। उनकी माता नारंगी देवी, पिता मोहन सिंह थे। हीरा सिंह राणा की प्राथमिक शिक्षा मानिला में हुई थी। उन्होंने दिल्ली में सेल्समैन की नौकरी की लेकिन इसमें उनका मन नहीं लगा और इस नौकरी को छोड़कर वह संगीत की स्काॅलरशिप लेकर कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) चले गए और संगीत के संसार में पहुँच गए। इसके बाद श्री राणा ने प्रदेश के कलाकारों का दल नवयुवक केंद्र ताड़ीखेत 1974, हिमांगन कला संगम दिल्ली 1992, पहले ज्योली बुरुंश (1971), मानिला डांडी 1985, मनख्यु पड़यौव में 1987, के साथ उत्तराखण्ड के लोक संगीत के लिए काम किया।

श्री राणा ने कुमाउनी लोक गीत ‘रंगीली बिंदी, रंगदार मुखड़ी’, सौमनो की चोरा, ढाई विसी बरस हाई कमाला’, ‘आहा रे ज़माना’ की रचना करने के साथ उन्हें अपना सुर भी दिया। महज 15 साल की उम्र से पहाड़ की संस्कृति से जुड़कर लोक गीतों की रचना करने वाले हीरा सिंह राणा का नाम उत्तराखण्ड के प्रमुख गायक कलाकारों में प्रथम पंक्ति में आता है।

हीरा सिंह राणा को लोग हीरदा कुमाऊनी के नाम से भी पुकारते हैं।

हीरदा ने रामलीला, पारंपरिक लोक उत्सव, वैवाहिक कार्यक्रम से अपने गायन का सफ़र शुरू किया और बाद में आकाशवाणी नजीबाबाद, दिल्ली, लखनऊ ही नहीं अपितु देश-विदेश में भी अपनी बेहद सुरीली आवाज में उत्तराखण्डी लोक गीतों को नई पहचान दी।

सं. उप्रेती

वार्ता

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