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भारतीय सिनेमा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेष पहचान दिलायी मृणाल सेन ने

भारतीय सिनेमा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेष पहचान दिलायी मृणाल सेन ने

..जन्मदिवस 14 मई ..

मुंबई, 13 मई (वार्ता) भारतीय सिनेमा जगत में मृणाल सेन का नाम एक ऐसे फिल्मकार के तौर पर शुमार किया जाता है जिन्होंने अपनी फिल्मों के जरिये भारतीय सिनेमा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेष पहचान दिलाई।

14 मई 1923 को फरीदाबाद अब बंग्लादेश में जन्में मृणाल सेन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा फरीदाबाद से हासिल की । इसके बाद उन्होने कलकता के मशहूर स्काटिश चर्च कॉलेज से आगे की पढ़ाई पूरी की ।इस दौरान वह कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगे। कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के मृणाल सेन की रूचि फिल्मों के प्रति हो गयी और वह फिल्म निर्माण से जुड़े पुस्तकों का अध्यन्न करने लगे ।इस दौर में वह अपने मित्र ऋतविक घटक और सलिल चौधरी को अक्सर यह कहा करते कि भविष्य में वह अर्थपूर्ण फिल्म का निर्माण करेगे लेकिन परिवार की आर्थिक स्थित खराब रहने के कारण उन्हें अपना यह विचार त्यागना पड़ा और मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के रूप में काम करना पड़ा ।

लेकिन कुछ दिनों के बाद उनका मन इस काम में नही लगा और उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी। फिल्म के क्षेत्र में मृणाल सेन अपने करियर की शुरूआत कोलकाता फिल्म स्टूडियो में बतौर ..ऑडियो टेकनिशियेन ..से की । बतौर निर्देशक मृणाल सेन ने अपने करियर की शुरूआत वर्ष 1955 में प्रदर्शित फिल्म ..रात भौर ..से की । उत्तम कुमार अभिनीत यह फिल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह नाकाम साबित हुयी ।इसके बाद वर्ष 1958 में मृणाल सेन की ..नील आकाशे नीचे ..फिल्म प्रदर्शित हुयी ।फिल्म की कहानी एक ऐसे चीनी व्यापारी वांगलु पर आधारित होती है जिसे कलकता में रहने वाली बसंती अपने वामपंथी विचारधारा के जरिये प्रभावित करती है और वह अपने देश जाकर अपने साथियों के साथ मिलकर जापानी सेना विरूद्ध साथ छेड़े गये मुहिम में शामिल हो जाता है ।

फिल्म में वांगलु के किरदार की भूमिका काली बनर्जी ने निभायी जबकि बसंती का किरदार मन्जू डे ने निभायी । यूं तो फिल्म के सारे गीत लोकप्रिय हुये लेकिन खास तौर पर हेमंत मुखर्जी की आवाज में रचा बसा यह गीत ..वो नदी रे एकती कथा सुधाई रे तोमारे ..श्रोताओं के बीच आज भी शिद्वत के साथ सुने जाते है ।फिल्म जब प्रदर्शित हुयी तो फिल्म में वामपंथी विचारधारा को देखते हुये इसे दो महीने के लिये बैन कर दिया गया।फिल्म की सफलता के बाद वह कुछ हद तक बतौर निर्देशक अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुये।

मृणाल सेन की अगली फिल्म ..बैसे श्रवण..वर्ष 1960 में प्रदर्शित हुयी ।फिल्म की कहानी वर्ष 1943 में बंगाल में हुये भयंकर अकाल की पृष्ठभूमि पर आधारित होती है जिसमें लगभग 5 लाख लोग अकाल और भूखमरी से मारे गये थे ।फिल्म की कहानी की मुख्य पात्र माधवी मुखर्जी ने एक ऐसी महिला का किरदार निभाया जो अपनी उम्र से काफी बड़े युवक के साथ शादी कर अपना वैवाहिक जीवन बीता रही थी। इसी बीच द्धितीय विश्वयुद्ध और अकाल ने उसका वैवाहिक जीवन बिखर जाता है ।बाद में महिला खुद को फांसी लगा देती है ।

फिल्म ..बैसे सावन ..की सफलता के बाद मृणाल सेन ने पांच अन्य फिल्मों का भी निर्माण किया लेकिन ये सभी न तो व्यवसायिक तौर पर सफल हुयी और ना ही समीक्षकों को पसंद आई ।इसके बाद मृणाल सेन ने वर्ष 1966 में उडि़या भाषा में ..माटिर मनीषा ..फिल्म का निर्माण किया लेकिन यह फिल्म भी टिकट खिड़की पर असफल साबित हुयी ।इन फिल्मों की असफलता के बाद निर्माताओं ने उनसे मुंह मोड़ लिया और अपनी फिल्मों में बतौर निर्देशक काम देना बंद कर दिया ।

वर्ष 1969 में एन.एफ.डी.सी की सहायता से मृणाल सेन ने फिल्म ..भुवन सोम ..का निर्माण किया।फिल्म की कहानी भुवन सोम नामक एक ऐसे कठोर और अनुशासनप्रिय अधिकारी पर आधारित होती है जिसे गांव जाने का मौका मिलता है और वहां के वातावरण में उसकी छवि में परिवर्तन हो जाता है और वह सबसे समान भेदभाव बरतने लगता है ।फिल्म में भुवन सोम के किरदार में उत्पल दत्त ने निभायी ।इस फिल्म से जुड़ा रोचक तथ्य यह भी है कि इसी फिल्म में अमिताभ बच्चन ने पहली बार अपनी आवाज दी थी ।..भुवन सोम ..के बाद मृणाल सेन ने इंटरभ्यू 1971 .कोलकाता 71 . 1972 . और पदातिक 1973 जैसी सफल फिल्मों का निर्देशन किया ।इन फिल्मों के बाद उनकी छवि एक ऐसे फिल्मकार के रूप में बन गयी जो अपनी फिल्म में वामपंथी विचारधारा से प्रभावित राजनीति को अपनी फिल्म के जरिये पेश करते थे ।

वर्ष 1976 में प्रदर्शित फिल्म .मृगया ..मृणाल सेन के सिने करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में एक है ।फिल्म में मृगया की टाईटिल भूमिका मिथुन चक्रवर्ती ने निभायी थी और उन्हें अपने दमदार अभिनय के लिये सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था ।यह मिथुन चक्रवर्ती के करियर की पहली फिल्म थी। वर्ष 1980 में प्रदर्शित फिल्म ..अकालेर साधने ..मृणाल सेन के सिने करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में एक है।मृणाल सेन निर्देशित इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ फिल्म और निर्देशन के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया था ।इसके अलावे बर्लिन फिल्म फेस्टिबल में भी

इसे सम्मानित किया गया

वर्ष 1982 में प्रदर्शित फिल्म ..खारिज ..मृणाल सेन के सिने करियर की हिट फिल्म में शुमार की जाती है ।फिल्म की कहानी एक ऐसे मध्यम वर्गीय परिवार के इर्द गिर्द घूमती है जिसका युवा नौकर रसोईघर में दम घुटने से मर जाता है जिससे उनका परिवार तनावग्रस्त हो जाता है ।फिल्म में अपने दमदार अभिनय के लिये अंजन दत्ता और ममता शंकर कांस फिल्म फेस्टिबल में ज्यूरी पुरस्कार से सम्मानित किये गये ।

मृणाल सेन को अपने चार दशक लंबे सिने करियर में मान-सम्मान खूब मिला। वर्ष 1981में मृणाल सेन को पदमभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।वर्ष 2005 को फिल्म उधोग के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।इन सबके साथ ही मृणाल सेन को उनकी फिल्मों के लिये कांस .बर्लिन .शिकागो .वेनिस जैसे कई फिल्म पेस्टिबल में विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।फिल्म के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के साथ ही वह समाज सेवा के लिये वर्ष 1998 से 2003 तक राज्य सभा सदस्य भी बनें।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी मृणाल सेन फिल्म निर्माण की कोई भी विद्या अछूती नहीं रही ।उन्होंने फिल्म निर्माण और निर्देशन के अलावा कई फिल्मों की कहानी और स्क्रीन प्ले भी लिखा ।वर्ष 2004 में उनकी आत्मकथा ण्आलवेज बिंग बार्न ..प्रकाशित हुयी ।वर्ष 2009 में इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिबल ऑफ केरल ने जब लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार की घोषणा की और मृणाल सेन वह पहले व्यक्ति बने जिन्हें लाइफ टाईम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मनित किया । अपनी निर्मित फिल्मों के जरिये दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने वाले मृणाल सेन 30 दिसंबर 2018 को इस दुनिया को अलविदा कह गये।

 

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