नई दिल्ली, 06 सितम्बर (वार्ता) उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसले में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के प्रावधानों को मनमाना और अतार्किक करार देते हुए दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बनाये गये समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति रोहिंगटन एफ नरीमन और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की संविधान पीठ ने धारा 377 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं का संयुक्त रूप से निपटारा करते हुए कहा कि एलजीबीटी समुदाय को हर वह अधिकार प्राप्त है, जो देश के किसी आम नागरिक को मिला हुआ है।
इस मामले में मुख्य न्यायाधीश के अलावा न्यायमूर्ति रोहिंगटन एफ नरीमन, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा ने अलग-अलग परंतु सहमति का फैसला सुनाया। न्यायालय का कहना था, “धारा 377 के कुछ प्रावधान अतार्किक और मनमाने हैं और हमें एक-दूसरे के अधिकारों का आदर करना चाहिए।’’
संविधान पीठ ने नृत्यांगना नवतेज जौहर, पत्रकार सुनील मेहरा, शेफ ऋतु डालमिया, होटल कारोबारी अमननाथ और केशव सूरी एवं व्यवसायी आयशा कपूर और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के 20 पूर्व तथा मौजूदा छात्रों की याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया। इन सभी ने दो वयस्कों द्वारा परस्पर सहमति से समलैंगिक यौन संबंध स्थापित करने को अपराध के दायरे से बाहर रखने का अनुरोध करते हुए धारा 377 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी।
सबसे पहले मुख्य न्यायाधीश ने खुद और अपने साथ न्यायमूर्ति खानविलकर की ओर से अपना फैसला सुनाया और कहा कि देश में सबको समानता का अधिकार है। समाज की सोच बदलने की जरूरत है। कोई भी अपने व्यक्तित्व से बच नहीं सकता है। समाज में हर किसी को जीने का अधिकार है। न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, “हमें पुरानी धारणाओं को बदलना होगा। एलजीबीटी समुदाय को हर वह अधिकार प्राप्त है जो देश के किसी आम नागरिक को मिला है। हमें एक-दूसरे के अधिकारों का आदर करना चाहिए।”
संविधान पीठ ने अाम सहमति से 158 साल पुरानी आईपीसी की धारा 377 के उस हिस्से को निरस्त कर दिया जिसके तहत परस्पर सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध अपराध था। न्यायालय ने हालांकि पशुओं और बच्चों के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के अपराध के मामले में धारा 377 के एक हिस्से को पहले की तरह अपराध की श्रेणी में ही बनाये रखा है।
न्यायालय ने कहा कि धारा 377 एलजीबीटी के सदस्यों को परेशान करने का हथियार था, जिसके कारण इससे भेदभाव होता है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एलजीबीटी समुदाय को अन्य नागरिकों की तरह समान मानवीय और मौलिक अधिकार हैं।
सुरेश.श्रवण
जारी.वार्ता