Friday, Apr 19 2024 | Time 15:05 Hrs(IST)
image
विशेष » कुम्भ


कुम्भ मेले में नागा साधु संत बने से है आकर्षण का केन्द्र

कुम्भ मेले में नागा साधु संत बने से है आकर्षण का केन्द्र

कुम्भ नगर 27 जनवरी (वार्ता) संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा भारत के जिस कुंभ मेले को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता दी है, उसी में देश के कोने से आये नागा साधु संत आकर्षण का केन्द्र बने हुये है।


        कुंभ भारतीय सभ्यता की ऐसी विशाल तस्वीर है जिसमें आस्था के साथ रहस्य, रोमांच से भरी नागा सन्यासियों और साधुओं की दुनिया पग पग पर देखने को मिलती है। कुंभ में एक से बढकर एक बाबा आये है। उससे भी बढकर उनका रहस्यमयी संसार है। कोई चुप रहकर बन गया है साइलेंट बाबा, तो कोई सोने से लदकर बन गया है गोल्डन बाबा, कोई एक टांग पर सालों खडे होकर बना है खड़ेश्वर बाबा, तो किसी ने सालों से सीधा नहीं किया अपना एक हाथ, तो किसी ने अपने सिर को बना लिया है जटाओं का जंगल।

        कुम्भ के अवसर पर पाप नाशिनी गंगा, श्यामल यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में डुबकी लगाकर अपनी आस्था को आयाम देते हैं। भस्म जिनका आभूषण, जटा जिनका मुकुट, निवस्त्र, हाथो में त्रिशूल लिए, चिलम के कश में मस्त, जुबान पर हर हर महादेव अपनी धुन में मगन रहने वाले नागा संन्यासियों से कुम्भ की शोभा हैं।

सदियों से नागा साधु संयासी कुंभ की पहचान रहे हैं। भस्म लिपटे निवस्त्र नागाओं की मढ़ियों में धधकती अग्नि के इर्द-गिर्द बैठे श्रद्धालु चिलम के एक कस की प्रतीक्षा करते हैं। नागा साधुओं को लेकर कुंभ जैसे मेले में बड़ी बेताबी से लोग इनके बारे में जानने के इच्छुक रहते हैं।

      कुम्भ मेले के दौरान प्रयागराज की धऱती पर बाबाओं का अद्भुत संसार बस गया है। तरह तरह के बाबा यहां पहुंचे हैं। इस कुंभ में आध्यात्मिक गोता लगाने के लिए एक से बढकर एक संत महात्मा पहुंचे हुए हैं लेकिन उसमें भी कुछ साधु बेहद खास है।

     कुम्भ मेले में अखाड़ों में ऐसे बाबाओं की बाढ़ आई हुई है। विदेशों से आए लोग इन बाबाओं के हठ को देखकर अचंभित हैं। बाबाओं की ये दुनिया लोगों को खूब लुभा रही है।  शिविर में नागा बाबाओं की तस्वीरे लेने की होड़ लगी है। कुछ बाबा तो ऐसे हैं जिनके शरीर पर केवल रूद्राक्ष ही रूद्राक्ष लदा है। उनका मुकुट भी रूद्राक्ष का ही है।

       इन्ही में से है बहल भिवानी के श्री रति गिरी महराज के डेरा के नागा संन्यासी शक्ति गिरी 70 किलो रूद्राक्ष शरीर पर धारण किए हैं। रूद्राक्ष का ही उनके सिर पर पांच किलो का मुकुट भी है। कुम्भ के दौरान शक्ति गिरी बाबा गंगा में डूब गये थे, किसी प्रकार इन्हें सकुशल गंगा से बाहर निकाला गया। श्री गिरी ने कहा,“ गंगा मइया ने हमें जीवनदान दिया है। यह रूद्राक्ष की महिमा है जिसे घारण करने के कारण ही शायद मां गंगा ने मुझे नया जीवन दिया है।

तंत्रसाधना की शक्ति सिद्ध पीठ कामाख्या के महंत मनाेज भारती ने बताया कि उन्हें याद नहीं कि उनकी दाढी कब से नहीं बनी। उन्होंने बताया कि उनकी दाढ़ी कम से कम आठ फिट लम्बी है। वह कभी कभार उसे गंगा की रेती से धोते हैं। इसमें साबुन एवं शैम्पू का प्रयोग नहीं किया जाता।

    जूना अखाड़ा की श्रीमहंत दया भारती की जटा भी दस फिट से अधिक है। उन्होंने बताया कि वह छह महीने में एक बार उपनी जटा को धोती हैं। इसकी बड़ी हिफाजत करनी पड़ती है। इनका कानपुर के बिठूर में आश्रम है।

     उन्होंने बताया कि अग्नेय शस्त्र हो या तलवार और लाठी तथा अन्य हथियार सभी कुछ चलाने में निपुण हैं। वह गाड़ी स्वयं ही चलाती हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें अकेले घूमने में किसी भी प्रकार की हिचक और ड़र नहीं लगता। ड़र किस बात का। किसी के अप्रत्याशित सामने आने पर डर क्या होता उसे पता चलता है, मुझे नहीं।

दिनेश भंडारी

वार्ता

There is no row at position 0.
image